Osho Shunya Samadhi: Transcending Ego for Ultimate Liberation & Inner Peace
Osho Shunya Samadhi is a profound meditative state where the ego dissolves completely, leading to ultimate liberation (Moksha) and inner peace. Osho describes Shunya (emptiness) as the state of absolute stillness and pure consciousness, where the mind ceases its chatter, and one experiences oneness with existence. This transcendental journey helps individuals detach from false identities and desires, allowing them to embrace the present moment and attain spiritual awakening. Through Shunya Samadhi, Osho guides seekers to experience divine bliss, freeing themselves from the cycles of suffering and illusion. This ultimate path of silence and awareness unveils the secrets of enlightenment and eternal joy. 🕉️✨
क्या तुम सच में हो? या केवल एक कल्पना हो? क्या तुम वही हो, जो तुम अब तक समझते आए हो? या यह बस तुम्हारे अहंकार की छाया है? अगर तुम्हारे भीतर सब कुछ मिट जाए, हर विचार, हर पहचान, हर इच्छा, तब क्या शेष बचेगा? यही प्रश्न तुम्हें भीतर की गहराइयों में ले जाएगा, और जब तुम इस गहराई में प्रवेश करोगे, तो एक विराट शून्य तुम्हारे सामने खड़ा होगा। यह वही शून्यता है, जिसे तुम समझ नहीं पाते, जिससे तुम डरते हो, जिससे तुम भागते हो। लेकिन इसी शून्य में समाधि है। इसी शून्य में परम सत्य छिपा है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
ओशो कहते हैं कि मन हमेशा कुछ न कुछ पकड़कर रखना चाहता है, क्योंकि उसे लगता है कि अगर वह खाली हो गया, तो उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। यही अहंकार की पहली चाल है। तुम किसी चीज़ को छोड़ नहीं सकते, क्योंकि छोड़ते ही डर सताने लगता है। यह अहंकार ही तुम्हें घेरे रखता है। यह तुम्हें यह विश्वास दिलाता है कि तुम हो, कि तुम्हारी एक पहचान है, कि तुम अपने विचारों और इच्छाओं से अलग कोई चीज़ नहीं हो। लेकिन यह अहंकार ही सबसे बड़ा धोखा है। अहंकार कोई वस्तु नहीं, कोई ठोस चीज़ नहीं, यह बस एक परछाईं है, एक भ्रम है। अगर तुम इसे पहचान सको, तो तुम्हें पहली दरार दिखेगी। और जब यह दरार पड़ेगी, तब पूरी इमारत गिर सकती है। लेकिन तुम्हारे भीतर इतनी हिम्मत है? क्योंकि अहंकार गिरते ही जो पहला अनुभव आता है, वह है डर। तुम्हें लगेगा कि जैसे कोई तुम्हारी ज़मीन खींच रहा है, तुम्हें लगेगा कि जैसे तुम समाप्त हो रहे हो। और यही वह क्षण है, जहाँ अधिकांश लोग पीछे हट जाते हैं। वे कहते हैं—नहीं, यह संभव नहीं, मैं जो हूँ, वह समाप्त नहीं हो सकता। और वे लौट जाते हैं, अपने अहंकार की पुरानी गुफा में।
ओशो कहते हैं कि जब तुम आत्मसमर्पण की बात सुनते हो, तो तुम्हें लगता है कि यह हार मानने जैसा है। लेकिन आत्मसमर्पण कोई पराजय नहीं, यह अहंकार से पूर्ण मुक्ति है। गुलामी तो तुम अभी कर रहे हो—अपने विचारों की, अपनी पहचान की, अपने अस्तित्व की। तुम्हें लगता है कि तुम स्वतंत्र हो, लेकिन वास्तव में तुम अपनी ही कैद में बंद हो। आत्मसमर्पण का अर्थ है, इस कैद को तोड़ देना। लेकिन यह सरल नहीं, क्योंकि तुमने इस अहंकार में पूरी उम्र बिता दी है। अब तुम इसे छोड़ने की सोच भी नहीं सकते, क्योंकि अगर इसे छोड़ दो, तो तुम कौन बचोगे? कौन रहेगा? यही सबसे बड़ा प्रश्न है। जब तक 'मैं' बचा रहता है, तब तक सत्य प्रकट नहीं होता। जब तक अहंकार खड़ा है, तब तक ध्यान केवल एक खेल बना रहता है। जब तक 'मैं' गिर नहीं जाता, तब तक ध्यान भी अहंकार का हिस्सा ही बना रहता है। लेकिन जब अहंकार गिरता है, तब पहली बार ध्यान घटित होता है। तब पहली बार शून्य तुम्हारे सामने आता है। तब पहली बार तुम देख पाते हो कि सत्य क्या है।
ओशो कहते हैं कि लोग सोचते हैं कि शून्य का अर्थ है कुछ न होना। लेकिन शून्य का अर्थ है सब कुछ होना। जब तुम 'कुछ' होते हो, तो तुम सीमित होते हो। जब तुम 'कुछ नहीं' होते, तो तुम असीमित हो जाते हो। लेकिन यह इतनी आसान बात नहीं है, क्योंकि तुम्हारा मन सीमित रहना चाहता है। मन को असीमता से डर लगता है। उसे लगता है कि अगर सब कुछ खो गया, तो फिर क्या रहेगा? और यही डर तुम्हें रोक लेता है। लेकिन ध्यान रखना, जब तक तुम अपने इस झूठे अस्तित्व को पकड़े रखोगे, तब तक तुम कभी सत्य तक नहीं पहुँच सकते। ध्यान कोई साधारण विधि नहीं, यह एक छलांग है। यह केवल बैठने और आँखें बंद करने की प्रक्रिया नहीं, यह संपूर्ण अस्तित्व में कूदने की प्रक्रिया है। लेकिन लोग ध्यान भी अहंकार के साथ ही करते हैं। वे सोचते हैं कि ध्यान करने से वे विशेष हो जाएँगे, कि ध्यान से वे दूसरों से ऊँचे उठ जाएँगे। लेकिन अगर ध्यान भी अहंकार को मजबूत कर रहा है, तो वह ध्यान नहीं, बस एक और बंधन है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
ओशो कहते हैं कि ध्यान तब तक पूर्ण नहीं होता, जब तक ध्यान करने वाला भी समाप्त न हो जाए। जब तक ध्यान करने वाला बचा है, तब तक ध्यान अहंकार का ही विस्तार है। लेकिन जब ध्यान करने वाला भी खो जाता है, जब केवल ध्यान रह जाता है, जब केवल मौन बचता है, जब केवल शून्य बचता है, तब पहली बार समाधि घटित होती है। समाधि का अर्थ है संपूर्ण विलय। जब तक तुम अलग खड़े हो, जब तक तुम सोचते हो कि तुम हो, तब तक यह संभव नहीं। और यही सबसे बड़ी कठिनाई है, क्योंकि तुम्हें लगता है कि अगर तुम मिट गए, तो फिर क्या बचेगा? लेकिन जब तुम मिट जाओगे, तब पहली बार अस्तित्व का वास्तविक स्वरूप तुम्हारे सामने आएगा। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
ओशो कहते हैं कि शून्यता कोई नकारात्मकता नहीं, यह सबसे बड़ी पूर्णता है। यह कोई रिक्त स्थान नहीं, यह अनंत का द्वार है। लेकिन इसे अनुभव करने के लिए तुम्हें अपने सारे झूठ छोड़ने होंगे। यह कोई साधारण बात नहीं, यह तुम्हारे पूरे अस्तित्व को हिलाने वाली बात है। और यह तभी संभव है, जब तुम अपने भीतर एक गहरा संकल्प कर लो कि अब कुछ भी पकड़ कर नहीं रखना है। अब बस बह जाना है, अब बस समर्पित हो जाना है। और जब तुम ऐसा कर सकोगे, जब तुम इस छलांग को लगा सकोगे, तब पहली बार तुम्हें अहसास होगा कि तुम कभी थे ही नहीं। जो कुछ भी तुम समझते थे, वह बस एक सपना था। और जब यह सपना टूटता है, तो जो शेष बचता है, वही सत्य है।
ओशो कहते हैं कि यह केवल एक विचार नहीं, यह केवल एक धारणा नहीं, यह केवल एक तर्क नहीं। यह अनुभव है, और जब तक तुम इसे स्वयं अनुभव नहीं करते, तब तक यह केवल शब्द ही रहेगा। लेकिन यदि तुममें साहस है, यदि तुममें स्वयं को पूरी तरह मिटा देने की क्षमता है, तो यह केवल शब्द नहीं रहेगा, यह तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा सत्य बन जाएगा। और यही वह द्वार है, जिसके पार शून्य समाधि है। यह कोई सिद्धांत नहीं, यह कोई दर्शन नहीं, यह केवल एक जीवंत सत्य है। और इस सत्य में प्रवेश करने के लिए तुम्हें अपने अहंकार से मुक्त होना पड़ेगा, अपनी सभी धारणाओं से मुक्त होना पड़ेगा, अपने सभी बंधनों से मुक्त होना पड़ेगा। यह सरल नहीं, लेकिन यदि तुममें पर्याप्त प्यास है, यदि तुममें पर्याप्त साहस है, तो तुम इसे पा सकते हो।
लेकिन प्रश्न यह है—क्या तुम तैयार हो? क्या तुम इस छलांग को लगाने के लिए तैयार हो? क्या तुम अपने अहंकार को पूरी तरह मिटाने के लिए तैयार हो? क्योंकि जब तक तुम इस छलांग को नहीं लगाते, तब तक तुम केवल किनारे पर खड़े हो। लेकिन जो इस छलांग को लगा देता है, वह पहली बार जीने का अनुभव करता है। अब यह निर्णय तुम्हारे हाथ में है—क्या तुम किनारे पर खड़े रहोगे? या इस शून्य में छलांग लगाओगे?" Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब किसी मार्ग के सामने कोई जानकारी बनती है, जब तुम किसी चीज को पकड़ने की आवश्यकता चोड़ देते हो, तब वैराग्य की यात्रा प्रारंभ हो जाती है. यह कोई बाह्य नहीं, यह कोई नियम नहीं, यह केवल एक मौनिक स्थिति है. जिसमें तुम कार्या का होना बंध हो जाता है, तुम किसी के प्रियास को बार-बार चोड़ते हो, तब तुम सच में प्रवेश करते हो.
वैराग्य की साची त्याग में नहीं, बल्कि आंतरिक स्वतंत्रता है. लोग संसार को छोड़ने को ही वैराग्य समझते हैं, लेकिन ओशो कहते हैं कि संसार से भागना वैराग्य नहीं, बल्कि उसमें रहकर भी असक्त रहना ही विवेक वैराग्य है. जब तुम भीतर तिरिक्षा से स्वतंत्र रहते हो, जब तुम किसी चीज को पकड़ने की आवश्यकता भी नहीं करते, तब तुम वास्तविक वैराग्य में कुदे होते हो.
ओशो कहते हैं कि वास्तविक मुक्ति का अर्थ कोई उपलब्धि नहीं, बल्कि पहचान के झूठे परदे गिरने की प्रक्रिया है. जब व्यक्ति पूरी तरह से एक निर्मल्बन्ध को चोड़ देता है, तब वह जो शेष रहता है, वही मुक्ति है.
वैराग्य की साची त्याग में नहीं, बल्कि आंतरिक स्वतंत्रता है.
ओशो कहते हैं कि ध्यान का उद्देश्य मन को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि उसे स्वतः विलीन होने देना है। ध्यान कोई प्रयास नहीं, कोई साधना नहीं, यह केवल एक जागरूकता की स्थिति है। तुम ध्यान करने की कोशिश नहीं कर सकते, तुम केवल इतना कर सकते हो कि ध्यान को घटित होने दो। जैसे ही तुम कुछ भी करने का प्रयास छोड़ते हो, ध्यान अपने आप गहराने लगता है। जैसे ही तुम कुछ बनने की इच्छा छोड़ते हो, समाधि का द्वार खुलने लगता है।
समाधि के चार स्तर हैं—साविकल्प समाधि, निर्विकल्प समाधि, ध्यान समाधि और शून्य समाधि। पहले दो स्तरों में अभी भी विचारों की हलचल बनी रहती है, लेकिन धीरे-धीरे विचार विलीन होते जाते हैं। ध्यान समाधि में मन पूरी तरह शांत हो जाता है, और जब ध्यान करने वाला भी समाप्त हो जाता है, जब कोई अनुभव करने वाला नहीं बचता, तब शून्य समाधि घटित होती है। यही अंतिम अवस्था है, जहाँ केवल मौन रह जाता है, केवल शून्यता शेष रहती है।
ओशो कहते हैं कि चेतना के भी चार स्तर हैं—जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय। सामान्यतः मनुष्य जाग्रत अवस्था में रहता है, लेकिन यह भी एक प्रकार की नींद ही है। स्वप्न और गहरी नींद में भी वह बस चलता रहता है, बहता रहता है, लेकिन वह कभी वास्तव में जागता नहीं। जब वह तुरीय अवस्था में प्रवेश करता है, तब पहली बार उसे सच्चा बोध होता है कि वह कौन है। ध्यान इसी तुरीय अवस्था का प्रवेशद्वार है, और जब ध्यान पूर्ण होता है, तब ध्यान करने वाला भी समाप्त हो जाता है—यही शून्य समाधि है।
ओशो कहते हैं कि ध्यान कोई अभ्यास नहीं, यह एक छलांग है। यह केवल बैठकर आँखें बंद करने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि अस्तित्व में कूद जाने की, विलीन हो जाने की प्रक्रिया है। जब तुम स्वयं को पूरी तरह मिटा देते हो, जब तुम अपने 'मैं' को पूरी तरह छोड़ देते हो, तब ध्यान घटित होता है। ध्यान किसी साधना का परिणाम नहीं, बल्कि छोड़ने की परम अवस्था है। और जो पूरी तरह छोड़ सकता है, वही शून्य समाधि को उपलब्ध होता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
ओशो कहते हैं कि प्रेम का अर्थ "किसी से प्रेम करना" नहीं, बल्कि "प्रेम होना" है। प्रेम कोई संबंध नहीं, कोई लेन-देन नहीं, यह केवल एक अवस्था है। जब व्यक्ति अहंकार से मुक्त हो जाता है, तब प्रेम अपने आप प्रवाहित होने लगता है। प्रेम कोई भावना नहीं, यह कोई आकर्षण नहीं, यह केवल अस्तित्व की सबसे गहरी धारा है। जब प्रेम केवल दूसरे व्यक्ति पर केंद्रित नहीं होता, जब वह अस्तित्व के प्रति खुल जाता है, तब वह करुणा बन जाता है।
सच्चा प्रेम अहंकार से मुक्त होता है—यह समर्पण और शांति लाता है। लोग प्रेम को एक बंधन बना लेते हैं, लेकिन प्रेम बंधन नहीं, यह मुक्ति है। जब प्रेम में स्वामित्व की भावना आ जाती है, तब वह प्रेम नहीं रह जाता, वह केवल एक समझौता बन जाता है। प्रेम तो केवल बहता है, यह किसी को बाँधता नहीं, यह किसी से कुछ चाहता नहीं। जब प्रेम पूरी तरह से निःस्वार्थ होता है, जब उसमें कोई अपेक्षा नहीं होती, तब वह ईश्वर का स्वरूप बन जाता है।
ओशो कहते हैं कि करुणा और ध्यान साथ चलते हैं—ध्यान के बिना करुणा खोखली होती है, और करुणा के बिना ध्यान अधूरा रहता है। जब व्यक्ति भीतर पूर्ण शांति में होता है, तब करुणा स्वयं बहने लगती है। करुणा कोई भावनात्मक चीज़ नहीं, यह केवल मौन से उपजती है। ध्यान व्यक्ति को भीतर मौन में ले जाता है, और यही मौन करुणा को जन्म देता है। और जब करुणा और ध्यान एक साथ होते हैं, तब अस्तित्व के प्रति संपूर्ण विश्वास जन्म लेता है।
ओशो कहते हैं कि जब व्यक्ति अस्तित्व पर संपूर्ण विश्वास कर लेता है, तब उसमें अहंकार और भय समाप्त हो जाते हैं। जब व्यक्ति को यह बोध हो जाता है कि वह स्वयं कुछ नहीं कर रहा, कि सब कुछ अपने आप घट रहा है, तब वह तनाव से मुक्त हो जाता है। तब वह किसी चीज़ के लिए परेशान नहीं होता, किसी चीज़ से डरता नहीं, किसी चीज़ को पकड़ने की कोशिश नहीं करता। तब वह केवल बहता है, जैसे एक नदी समुद्र में मिल जाने के बाद भी प्रवाहित होती रहती है।
ओशो कहते हैं कि मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि एक परिवर्तन है—जैसे कोई पुराने वस्त्र बदलकर नए वस्त्र धारण कर लेता है। जो व्यक्ति स्वयं को केवल शरीर मानता है, उसे मृत्यु का भय होता है, लेकिन जो व्यक्ति स्वयं को शरीर से परे देख पाता है, वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है। मृत्यु केवल एक द्वार है, यह कोई विनाश नहीं, यह केवल एक परिवर्तन है। जब व्यक्ति इस सत्य को जान लेता है, तब वह मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
पुनर्जन्म कर्मों के अनुसार चलता है—जो कार्य अधूरे रह जाते हैं, जो इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं, वे व्यक्ति को पुनः जन्म लेने के लिए बाध्य कर देती हैं। जब शून्य समाधि प्राप्त होती है, तब पुनर्जन्म का चक्र समाप्त हो जाता है। तब व्यक्ति के लिए कुछ भी शेष नहीं रहता, तब कोई बंधन नहीं बचता, तब कोई इच्छा नहीं रहती, तब वह केवल मौन में विलीन हो जाता है। यही मोक्ष है।
ओशो कहते हैं कि मोक्ष किसी दूसरे लोक में जाने का नाम नहीं, यह कोई भविष्य की घटना नहीं, यह अभी और यहीं उपलब्ध है। जब व्यक्ति अपने सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है, जब उसमें कुछ भी जोड़ने या घटाने की कोई आकांक्षा नहीं रहती, तब वह मोक्ष को उपलब्ध हो जाता है। मोक्ष का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति कहीं चला जाता है, इसका अर्थ केवल इतना है कि वह इस जीवन को पूरी तरह से जान लेता है, उसे जी लेता है, उसे स्वीकार कर लेता है। तब वह केवल प्रवाहित होता है, बिना किसी बाधा के, बिना किसी जड़ता के। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
🌟 अंतिम निष्कर्ष
शून्य समाधि केवल एक साधना नहीं, यह एक परम अनुभव है। जब ध्यान, प्रेम और आत्मसमर्पण एक साथ होते हैं, तब व्यक्ति अहंकार से मुक्त होकर शून्य समाधि में प्रवेश करता है। यह ग्रंथ हमें असली स्वतंत्रता और आनंद का मार्ग दिखाता है—जहाँ कुछ भी पकड़ने की जरूरत नहीं, केवल बहने की जरूरत है। जो स्वयं को पहचान लेता है, उसे परमात्मा को खोजने की जरूरत नहीं पड़ती—क्योंकि वह स्वयं परमात्मा हो जाता है।
📌 अंतिम संदेश:
"तुम जो भी हो, उसे छोड़ दो। जहाँ भी हो, वहीं ठहर जाओ। बस शून्य में प्रवेश करो—वहीं सत्य है, वहीं परम आनंद है, वहीं मोक्ष है।"