Rishabh Gita, Bhishma's Wisdom Unveiling Profound Insights on Hope, Desire & Inner Peace from the Mahabharata. This sacred discourse, delivered by Bhishma Pitamah to Yudhishthira during the Shanti Parva, explores the intricate dynamics of human desires, the power of hope, and the path to true inner peace. Rishabh Gita teaches seekers the art of detachment, cultivating wisdom, and realizing the transient nature of worldly attachments, ultimately guiding them toward self-realization and Moksha (liberation). These timeless teachings, enriched with the essence of Sanatan Dharma, inspire a journey of spiritual growth and inner tranquility. 🕉️✨
महाभारत केवल युद्ध की कथा नहीं है, बल्कि यह जीवन के गूढ़ रहस्यों और शिक्षाओं का भंडार भी है। इसमें अनेक प्रसंग ऐसे हैं, जो हमें धर्म, नीति, जीवन के सत्य और मनुष्य के स्वभाव की गहरी समझ प्रदान करते हैं। ऐसा ही एक प्रसंग है ऋषभगीता, जिसमें भीष्म पितामह युधिष्ठिर को आशा के स्वभाव और उसके दुखद प्रभावों के बारे में बताते हैं।
युधिष्ठिर ने आशा के विषय में भीष्म पितामह से प्रश्न किया: -
हे पितामह! जब मैंने दुर्योधन की कथा सुनी, तो एक गहरी सांस लेकर सोचने लगा। मुझे हमेशा यह उम्मीद थी कि दुर्योधन हमारी वनवास की अवधि समाप्त होने पर हमें हमारा राज्य लौटा देगा। लेकिन जब स्वयं श्रीकृष्ण के समझाने पर भी उसने युद्ध से पीछे हटने से इंकार कर दिया, तब मेरी सारी आशाएँ चूर-चूर हो गईं।
जब हमारी आशाएँ पूर्ण नहीं होतीं, तब उनका टूटना अत्यंत दुःखदायी होता है। ऐसी परिस्थिति में मनुष्य के मन में उत्पन्न होने वाले शोक किस प्रकार समाप्त हो सकते हैं? कृपया इस विषय में मुझे ज्ञान प्रदान करें।
युधिष्ठिर के इस प्रश्न पर शांतनुनंदन भीष्म ने गहरी सांस लेते हुए उत्तर दिया: -
हे राजन! आशा अत्यंत बलवती होती है, और इसकी प्रवृत्ति ऐसी होती है कि यह कभी-कभी जीवन को भी संकट में डाल सकती है।
इसके बाद भीष्म पितामह ने एक कथा सुनाई:
प्राचीनकाल में हैहय वंश के एक राजकुमार का नाम सुमित्र था। एक दिन वह वन में गया और वहाँ उसने एक अत्यंत तेज़ दौड़ने वाले हिरण को देखा। वह हिरण कभी घने वृक्षों के झुरमुटों में छिप जाता, कभी ऊँचे-नीचे स्थानों से छलांग लगाकर भाग जाता। राजकुमार सुमित्र ने अपने धनुष को कसकर पकड़ा और तेज़ी से उसका पीछा करने लगा।
वह समतल भूमि, घने वनों, गहरी घाटियों और ऊँचे पहाड़ों को पार करता हुआ हिरण के पीछे भागा। लेकिन बहुत समय तक दौड़ने के कारण वह अत्यंत थककर चूर हो गया। जब उसने चारों ओर देखा, तो उसे एहसास हुआ कि हिरण अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। उसकी सारी आशा टूट गई, और वह बहुत दुखी होकर पास के एक आश्रम में पहुँचा, जहाँ ऋषियों की सभा लगी हुई थी। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
राजकुमार ने उन महान ऋषियों को प्रणाम कर पूछा, हे मुनियो! यह जो आशा होती है, वह इतनी पीड़ादायक क्यों होती है? क्या इसका कोई उपाय है?
उनमें से एक महान ऋषि, जिनका नाम ऋषभ था, मुस्कुराए और बोले, हे राजकुमार! आशा अत्यंत दुर्बल और दुखदायी होती है। यह मनुष्य को अंतहीन कष्ट देती है, इसलिए इसे त्याग देना ही अच्छा है।
फिर ऋषभ मुनि ने एक और कथा सुनाई:
भूतकाल में भूरिद्युम्न नामक एक राजा था। उसका एक पुत्र था, जिसका नाम वीरद्युम्न था। एक दिन उसका घोड़ा कहीं खो गया, तो राजा स्वयं उसे ढूँढने के लिए निकला। वह घोड़े को ढूँढते-ढूँढते अनेक स्थानों से गुजरता हुआ अंततः बदरिकाश्रम तक पहुँच गया। लेकिन वहाँ भी जब उसे अपना घोड़ा नहीं मिला, तो उसकी आशा टूट गई और वह अत्यंत दुखी होकर वहाँ के मुनियों के पास गया। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
वहाँ एक मुनि थे, जिनका नाम तनु था। वे बहुत ऊँचे और कृशकाय (पतले) थे। जब राजा ने उनसे अपना दुख बताया, तो मुनि तनु बोले, हे राजन! निराश मत होओ। यह आशा ही है, जो मनुष्य को सबसे अधिक कष्ट देती है। इस संसार में कोई भी ऐसा नहीं है, जो आशा से मुक्त हो। लेकिन जो व्यक्ति आशा में लिप्त रहता है, वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता।
इसके बाद मुनि ने समझाया कि –
कई बार हम दुष्ट, क्रूर और आलसी लोगों से भी कुछ अपेक्षा करने लगते हैं, लेकिन जब वे हमारी आशा के अनुरूप कार्य नहीं करते, तो हमें अत्यंत पीड़ा होती है। आशा शरीर को भी कमजोर कर देती है और मन को भी कष्ट पहुँचाती है। जब कोई अपना खो जाता है, तब उसकी आशा भी जलाकर भस्म कर देने वाली होती है। वृद्ध लोग जब अपने संतान की ओर आशा भरी निगाहों से देखते हैं, तब भी वे दुखी होते हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
इसलिए, हे राजन! जो व्यक्ति सुख चाहता है, उसे चाहिए कि वह व्यर्थ की आशाओं को त्याग दे।
जब मुनि तनु ने यह कहा, तो वे अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हो गए और राजा को आशा त्यागने की सीख देकर अंतर्ध्यान हो गए।
इसके बाद युधिष्ठिर ने फिर से भीष्म पितामह से धर्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रश्न किया।
यह कथा हमें यह सिखाती है कि अत्यधिक आशा दुख का कारण बनती है। यदि हम अपनी इच्छाओं को सीमित रखें और जीवन को जैसा है, वैसा ही स्वीकार करें, तो हम शांति और सुख प्राप्त कर सकते हैं। जो व्यक्ति निरर्थक आशाओं को त्याग देता है, वही सच्चे सुख का अनुभव कर सकता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh