The Gita Mahatmya, or the "Glory of the Gita," is a revered text that extols the significance and spiritual benefits of the Bhagavad Gita. One of the most esteemed versions of the Gita Mahatmya is found in the Padma Purana, specifically in its Uttara Khanda (Chapters 175 to 192). This section presents narratives and teachings that highlight the profound impact of the Bhagavad Gita on devotees and scholars alike.
Shrimad Bhagavad Gita Mahatmya: Padma Purana Divine Wisdom, Gita Gyan & Moksha.
Shrimad Bhagavad Gita Mahatmya, as described in the Padma Purana, glorifies the immeasurable significance and transformative power of the Bhagavad Gita. This sacred text reveals the path to Moksha (liberation) through Karma, Bhakti, and Jnana Yoga, emphasizing that devotion to the Gita purifies the mind and bestows divine blessings. It highlights how regular recitation, contemplation, and practice of the Gita’s teachings dissolve sins, ignorance, and bondage while leading the soul toward self-realization and eternal peace. The Padma Purana asserts that one who understands the true essence of the Gita attains divine grace, higher consciousness, and liberation (Moksha). This eternal wisdom of Sanatan Dharma continues to guide humanity toward spiritual enlightenment and ultimate bliss. 🕉️✨
पद्म पुराण के उत्तर खंड के अध्याय 175 से 192 तक 'गीता महात्म्य' का विस्तृत वर्णन मिलता है, जो श्रीमद्भगवद्गीता के महत्व और उसके पाठ से प्राप्त होने वाले लाभों पर प्रकाश डालता है। इन अध्यायों में गीता के प्रत्येक अध्याय के पाठ से संबंधित कथाएँ और उनके प्रभावों का उल्लेख किया गया है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
इन कथाओं के माध्यम से पद्म पुराण में यह संदेश दिया गया है कि श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ और उसके शिक्षाओं का पालन करने से व्यक्ति अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकता है, चाहे वह आध्यात्मिक हो या सांसारिक। गीता के प्रत्येक अध्याय का पाठ विशेष लाभ प्रदान करता है, जो व्यक्ति की स्थिति और आवश्यकताओं के अनुसार होता है।
श्रद्धा और भक्ति से किया गया श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ समस्त पापों का नाश कर मोक्ष प्रदान करता है। जो व्यक्ति विश्वासपूर्वक गीता का अध्ययन करता है, वह न केवल आत्मशुद्धि प्राप्त करता है, बल्कि जीवन के समस्त कल्याणकारी फलों का अधिकारी बनता है। गीता का हर श्लोक दिव्य प्रकाश से युक्त है, जो साधक को पुण्यमय जीवन की ओर अग्रसर करता है और उसे आध्यात्मिक उन्नति एवं परम शांति प्रदान करता है।
एक पापग्रस्त ब्राह्मण, जो अपने बुरे कर्मों के कारण अत्यंत दुखी था, वन में भटकते हुए एक महान संत के पास पहुंचा। संत ने उसकी दयनीय दशा देखकर उसे श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय का नित्य पाठ करने का निर्देश दिया। प्रारंभ में ब्राह्मण को यह समझ नहीं आया कि युद्धभूमि का यह संवाद उसके जीवन को कैसे बदल सकता है, लेकिन श्रद्धा और समर्पण से उसने नित्य पाठ करना आरंभ किया। धीरे-धीरे उसके भीतर शुद्धता आने लगी, चित्त की अशांति समाप्त हो गई, और उसमें आत्मज्ञान की ज्योति जाग्रत होने लगी। कुछ समय बाद, वह समस्त सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर हुआ।
प्रथम अध्याय केवल अर्जुन के विषाद को ही नहीं दर्शाता, बल्कि यह बताता है कि हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी ऐसा मोड़ आता है जब वह भ्रम, मोह और निर्णयहीनता से घिर जाता है। यह अध्याय यह संदेश देता है कि सही मार्गदर्शन और भगवद्गीता के ज्ञान से मनुष्य अपने भीतर के अज्ञान को दूर कर सकता है। जो भी श्रद्धा से गीता के प्रथम अध्याय का नित्य पाठ करेगा, उसके समस्त पाप समाप्त हो जाएंगे और उसे परमधाम की प्राप्ति होगी।
एक धनवान व्यक्ति, जिसने जीवनभर भौतिक सुखों में लिप्त रहकर धर्म से विमुख जीवन जिया था, मृत्यु के समय अत्यंत कष्ट भोगने लगा। उसके परिजन संतों के पास पहुंचे और उपाय पूछा। संत ने उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का पाठ करने की सलाह दी। जैसे ही परिवारजन श्रद्धापूर्वक इस अध्याय का नित्य पाठ करने लगे, उसके कष्ट धीरे-धीरे कम होने लगे। अंततः जब उसके प्राण निकले, तो उसका मुख तेजस्वी था और उसकी आत्मा शांतिपूर्वक परम धाम को प्राप्त हुई।
द्वितीय अध्याय गीता का सार है, जिसमें आत्मा की अमरता और नश्वर संसार की असारता का ज्ञान दिया गया है। यह अध्याय बताता है कि मनुष्य न जन्मता है, न मरता है—वह केवल शरीर बदलता है। यदि कोई गीता के द्वितीय अध्याय का नित्य पाठ करता है, तो उसे मृत्यु का भय नहीं सताएगा और अंत में वह मोक्ष प्राप्त करेगा।
एक पतिव्रता स्त्री का पति अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया, जिससे वह गहरे शोक में डूब गई। जीवन अंधकारमय लगने लगा, और वह किसी भी उपाय से अपने पति को पुनः प्राप्त करना चाहती थी। तभी एक संत ने उसे श्रीमद्भगवद्गीता के तृतीय अध्याय (कर्मयोग) का नित्य पाठ करने की सलाह दी। उसने पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस अध्याय का अध्ययन एवं पाठ प्रारंभ किया। कुछ ही समय बाद, दिव्य कृपा से उसका पति पुनः जीवित हो उठा और दोनों आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने लगे।
तृतीय अध्याय कर्मयोग का महत्व बताता है, जिसमें निष्काम कर्म की महिमा गाई गई है। यह अध्याय सिखाता है कि बिना किसी स्वार्थ के, केवल कर्तव्यभाव से किए गए कर्म परम फलदायी होते हैं। यदि कोई गीता के तृतीय अध्याय का नित्य पाठ करता है, तो उसके जीवन में कभी भी अभाव, शोक या असंतोष नहीं रहेगा, और वह अपने कर्मों से दिव्य कृपा प्राप्त करेगा।
एक पराजित राजा, जो अपने राज्य को पुनः प्राप्त करना चाहता था, अनेकों प्रयासों के बाद भी असफल हो रहा था। निराश होकर वह एक महान ऋषि के पास गया और अपनी व्यथा सुनाई। ऋषि ने उसे श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय (ज्ञान-कर्म-संन्यास योग) का नित्य पाठ करने की सलाह दी। राजा ने पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ इस अध्याय का पाठ आरंभ किया। कुछ ही समय में उसमें आत्मज्ञान और नीति की समझ विकसित हुई। वह न केवल अपनी भूलों को पहचान सका, बल्कि सही रणनीति अपनाकर अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और अपने राज्य की पुनः स्थापना की।
चतुर्थ अध्याय ज्ञान, कर्म और संन्यास के सही अर्थ को प्रकट करता है। यह सिखाता है कि सही ज्ञान के बिना कर्म अधूरे हैं, और सच्ची सफलता विवेकपूर्वक किए गए कर्मों से ही प्राप्त होती है। जो व्यक्ति इस अध्याय का नित्य पाठ करता है, वह अपने जीवन में सदैव सही मार्ग अपनाता है और विजय प्राप्त करता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
एक व्यापारी, जो निरंतर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, बार-बार घाटे में जा रहा था। निराश होकर वह एक संत के पास गया और अपनी समस्याएँ बताईं। संत ने उसे श्रीमद्भगवद्गीता के पंचम अध्याय (संन्यास योग) का नित्य पाठ करने की सलाह दी। व्यापारी ने श्रद्धा और भक्ति के साथ गीता का अध्ययन प्रारंभ किया। धीरे-धीरे उसकी सोच बदलने लगी, वह अपने व्यापार को निष्काम भाव से करने लगा, और उसके निर्णय अधिक स्पष्ट एवं प्रभावी हो गए। शीघ्र ही उसके व्यापार में उन्नति होने लगी और वह धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
यह अध्याय बताता है कि सच्चा वैराग्य भौतिक संसार से पलायन नहीं, बल्कि कर्तव्यों का निष्काम भाव से पालन करना है। जब मनुष्य अपने कर्म को ईश्वर को अर्पित कर देता है और फल की चिंता छोड़ देता है, तब उसे शांति और सफलता दोनों प्राप्त होती हैं। यह अध्याय हमें सिखाता है कि व्यापार, नौकरी या कोई भी कार्य करते समय निष्काम भाव रखना ही सच्ची समृद्धि की कुंजी है।
जो भी गीता के पंचम अध्याय का नित्य पाठ करेगा, उसे भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि दोनों प्राप्त होंगी।
एक तपस्वी साधु, जो वर्षों से घोर तपस्या कर रहा था, फिर भी आत्मसाक्षात्कार से वंचित था, एक दिन एक ज्ञानी संत से अपनी समस्या कहता है। संत मुस्कुराकर उसे श्रीमद्भगवद्गीता के षष्ठ अध्याय (ध्यान योग) का नित्य पाठ करने का निर्देश देते हैं। साधु उनकी आज्ञा का पालन करता है और प्रतिदिन श्रद्धा और भक्ति के साथ इस अध्याय का अध्ययन करता है। कुछ समय पश्चात, उसकी ध्यान शक्ति प्रबल हो जाती है और वह गहरे ध्यान में प्रवेश कर आत्मा का वास्तविक स्वरूप पहचान लेता है। अंततः उसे परमात्मा के साक्षात्कार का दिव्य अनुभव प्राप्त होता है, और वह आत्मज्ञान की परम अवस्था को प्राप्त कर लेता है।
गीता का षष्ठ अध्याय ध्यान की महिमा को प्रकट करता है और यह सिखाता है कि एकाग्रता, संयम और आत्मनिवेदन से ही सच्चे आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति संभव है। जो व्यक्ति श्रद्धा और निष्ठा के साथ इस अध्याय का नित्य पाठ करता है, वह परमात्मा के साक्षात्कार का अधिकारी बनता है और जीवन-मरण के बंधनों से मुक्त हो जाता है।
एक जिज्ञासु विद्यार्थी, जो शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को समझने में असमर्थ था, अपने गुरु के पास जाकर ज्ञान प्राप्ति का उपाय पूछता है। गुरु उसे श्रीमद्भगवद्गीता के सप्तम अध्याय (ज्ञान-विज्ञान योग) का नित्य पाठ करने की आज्ञा देते हैं। विद्यार्थी श्रद्धा और निष्ठा के साथ इस अध्याय का नियमित रूप से अध्ययन करता है। धीरे-धीरे उसकी बुद्धि प्रखर हो जाती है, उसकी स्मरण शक्ति तीव्र हो जाती है और वह शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को सरलता से समझने में सक्षम हो जाता है। समय के साथ, वह एक महान विद्वान बनता है और उसके ज्ञान की ख्याति दूर-दूर तक फैल जाती है।
गीता का सप्तम अध्याय यह प्रकट करता है कि ज्ञान और विज्ञान का वास्तविक स्रोत स्वयं भगवान हैं। जो व्यक्ति इस अध्याय का नित्य पाठ करता है, वह आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों प्रकार के ज्ञान में निपुण होता है और उसके जीवन में अज्ञानता का अंधकार सदा के लिए समाप्त हो जाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
एक वृद्ध भक्त, जो संपूर्ण जीवन भगवद्भक्ति में लीन रहा था, मृत्यु के समीप आने पर अत्यंत भयभीत हो जाता है। उसके मन में मृत्यु के पश्चात के रहस्यों को लेकर अनेक प्रश्न उठते हैं। एक संत उसे श्रीमद्भगवद्गीता के अष्टम अध्याय (अक्षर ब्रह्म योग) का नित्य पाठ करने की सलाह देते हैं। जैसे-जैसे वह श्रद्धा से इस अध्याय का अध्ययन करता है, उसके भीतर मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और आत्मा के अमरत्व का रहस्य स्पष्ट हो जाता है। अंततः जब उसका अंतिम समय आता है, वह पूर्ण शांति और विश्वास के साथ भगवान के दिव्य धाम को प्राप्त कर लेता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जो श्रीमद्भगवद्गीता के अष्टम अध्याय का निष्ठा से पाठ करता है, वह मृत्यु के भय से मुक्त होकर परम धाम को प्राप्त करता है।
एक किसान, जो कठिन परिश्रम करने के बावजूद निरंतर आपदाओं और अकाल से पीड़ित रहता था, जीवन से निराश हो चुका था। एक दिन, एक महात्मा उसके गांव में आते हैं और उसे श्रीमद्भगवद्गीता के नवम अध्याय (राजविद्या राजगुह्य योग) का नित्य पाठ करने की सलाह देते हैं। किसान पूरे समर्पण और श्रद्धा के साथ इस अध्याय का पाठ करना शुरू करता है। धीरे-धीरे उसके खेतों की उर्वरता बढ़ने लगती है, फसलें लहलहाने लगती हैं और उसका जीवन धन-धान्य से भर जाता है। गीता के ज्ञान से उसमें संतोष और आत्मविश्वास भी जागृत होता है, जिससे उसका जीवन आनंदमय और समृद्ध बन जाता है।
जो श्रीमद्भगवद्गीता के नवम अध्याय का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है, वह दैवी कृपा से संपन्न होकर जीवन में अपार समृद्धि प्राप्त करता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
एक साध्वी महिला, जो अपने परिवार की सुख-शांति के लिए सदा चिंतित रहती थी, एक दिन एक संत के पास गई और अपने कष्टों का समाधान जानना चाहा। संत ने उसे श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय (विभूति योग) के नित्य पाठ का उपदेश दिया। महिला ने पूरे श्रद्धा-भाव से इस अध्याय का पाठ करना प्रारंभ किया। धीरे-धीरे उसके जीवन में सकारात्मक बदलाव आने लगे, उसके परिवार में प्रेम, सुख और समृद्धि का संचार हुआ। इस अद्भुत परिवर्तन को देख उसकी भक्ति और भी गहरी हो गई, और अंततः वह भगवत्साक्षात्कार प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त हुई।
जो श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय का निष्ठापूर्वक पाठ करता है, उसके जीवन में सुख-शांति का वास होता है और वह परमात्मा की कृपा का पात्र बनता है। यह अध्याय भगवान की विभूतियों को प्रकट करता है और मनुष्य को आत्मा के परम स्वरूप का बोध कराता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
एक व्यापारी, जो व्यापार में निरंतर हानि उठा रहा था, उसे एक संत ने श्रीमद्भगवद्गीता के एकादश अध्याय (विश्वरूप दर्शन योग) के पाठ की सलाह दी। उसने नित्य इस अध्याय का पाठ प्रारंभ किया। धीरे-धीरे उसके विचारों में स्पष्टता आई, निर्णय क्षमता विकसित हुई और व्यापार में समृद्धि आने लगी। उसकी भक्ति और निष्ठा इतनी गहरी हो गई कि अंततः भगवान श्रीकृष्ण ने उसे अपने विराट स्वरूप के दर्शन दिए, जिससे उसे अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त हुआ।
जो श्रीमद्भगवद्गीता के एकादश अध्याय का नित्य पाठ करता है, वह व्यापार, जीवन और आध्यात्मिक उन्नति में सफलता प्राप्त करता है। यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि भगवान का विराट स्वरूप समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त है और उनकी शरण में जाने से समस्त भय दूर हो जाते हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
एक संत, जो सच्ची भक्ति की खोज में था, उसने श्रीमद्भगवद्गीता के द्वादश अध्याय (भक्ति योग) का नित्य पाठ करना शुरू किया। धीरे-धीरे उसकी आत्मा भगवान की भक्ति में पूर्णत: समर्पित हो गई। एक दिन, भगवान स्वयं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपने दिव्य स्वरूप का अनुभव कराते हैं। वह संत इस अनुभव से इतना भावविभोर हो जाता है कि अपने शिष्यों को भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जो श्रीमद्भगवद्गीता के द्वादश अध्याय का पाठ करता है, वह सच्ची भक्ति को प्राप्त कर परम आनंद और शांति का अनुभव करता है। यह अध्याय हमें निष्काम भक्ति और समर्पण का महत्व सिखाता है, जिससे आत्मा को परम शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।
एक वृद्ध ब्राह्मण, जो सदैव ज्ञान की खोज में रहता था, उसे आत्मा और परमात्मा के रहस्यों को समझने की तीव्र जिज्ञासा थी। एक दिन एक ऋषि ने उसे श्रीमद्भगवद्गीता के त्रयोदश अध्याय (क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग) का पाठ करने का परामर्श दिया। ब्राह्मण ने नियमित रूप से इस अध्याय का पाठ किया और शीघ्र ही उसे आत्मा के स्वरूप का साक्षात्कार हुआ।
जो श्रीमद्भगवद्गीता के त्रयोदश अध्याय का नित्य पाठ करता है, वह आत्मा के रहस्य को जानकर मोक्ष प्राप्त करता है।
एक संत, जो सदा शुद्ध आचरण और सतोगुण में स्थित रहता था, अपने शिष्यों को गीता के ज्ञान का उपदेश देता था। उसने चतुर्दश अध्याय (गुणत्रय विभाग योग) के महत्व को समझाते हुए बताया कि जो इस अध्याय का पाठ करता है, वह रजोगुण और तमोगुण से मुक्त होकर सतोगुण में स्थित होता है और अंततः मोक्ष को प्राप्त करता है।
जो श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्दश अध्याय का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है, वह तीनों गुणों से परे उठकर मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है।
एक महान योगी, जो आत्मा के रहस्यों को जानने की इच्छा रखता था, उसने गीता के पंद्रहवें अध्याय (पुरुषोत्तम योग) का अध्ययन किया। इसके निरंतर पाठ से उसे आत्मा और परमात्मा के बीच का गूढ़ संबंध स्पष्ट हुआ और वह परम पद को प्राप्त हुआ। धीरे-धीरे उसके भीतर वैराग्य और आत्मज्ञान की ज्वाला प्रज्वलित हो गई। एक दिन ध्यान में लीन होकर उसने परमात्मा के दिव्य प्रकाश का साक्षात्कार किया, जिससे उसे जीवन के परम सत्य का अनुभव हुआ।
जो श्रीमद्भगवद्गीता के पंद्रहवें अध्याय का निष्ठापूर्वक पाठ करता है, वह आत्मा की शाश्वतता को समझकर ईश्वर से एकरूप हो जाता है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि संसार वृक्ष की जड़ों को समझना और ईश्वर के शरणागत होकर मोक्ष प्राप्त करना ही जीवन का परम लक्ष्य है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
एक व्यक्ति, जो सदैव पाप कर्मों में लिप्त था, एक संत के संपर्क में आकर गीता के सोलहवें अध्याय (दैवासुर संपद विभाग योग) का अध्ययन करने लगा। पहले वह अपने कुकर्मों से दुखी था, लेकिन गीता का नियमित पाठ करने से उसके मन में शुद्धता का संचार हुआ। धीरे-धीरे उसके भीतर दैवी गुणों का उदय हुआ और उसने समस्त आसुरी प्रवृत्तियों को त्यागकर एक सत्कर्मी जीवन जीया। उसके जीवन में संयम, दया और सत्य का संचार हुआ, जिससे उसे समाज में सम्मान प्राप्त हुआ और आत्मिक संतोष की अनुभूति हुई। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जो श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय का पाठ करता है, वह दैवी गुणों से विभूषित होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। यह अध्याय हमें दैवी और आसुरी गुणों में भेद बताकर सत्कर्मों की ओर प्रेरित करता है, जिससे मनुष्य परमगति को प्राप्त कर सकता है।
एक श्रद्धालु भक्त, जो भक्ति में लीन था, गीता के सत्रहवें अध्याय (श्रद्धात्रय विभाग योग) के नियमित पाठ से अटूट श्रद्धा प्राप्त करता है और भगवान की कृपा प्राप्त करता है। प्रारंभ में वह संदेहों से घिरा हुआ था, लेकिन इस अध्याय के पाठ से उसकी श्रद्धा दृढ़ हो गई। उसने तीन प्रकार की श्रद्धा—सात्त्विक, राजसिक और तामसिक—का भेद समझा और सात्त्विक श्रद्धा के मार्ग को अपनाया। उसके जीवन में विश्वास, समर्पण और भक्ति की धारा प्रवाहित होने लगी, जिससे वह भगवद्कृपा का अधिकारी बन गया।
जो श्रीमद्भगवद्गीता के सत्रहवें अध्याय का पाठ करता है, उसकी श्रद्धा दृढ़ होती है और वह मोक्ष को प्राप्त करता है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि सच्ची श्रद्धा और समर्पण से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।
एक साधक, जिसने गीता के अठारहवें अध्याय (मोक्ष संन्यास योग) का गहन अध्ययन किया, उसे संपूर्ण गीता के सार का बोध हुआ और उसने जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति प्राप्त कर ली। पहले वह सांसारिक मोह में बंधा हुआ था, लेकिन इस अध्याय के अध्ययन से उसे त्याग, कर्तव्य और भक्ति का गूढ़ रहस्य समझ आया। उसने निष्काम कर्मयोग का अनुसरण किया और अंततः भगवद्साक्षात्कार को प्राप्त किया। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जो श्रीमद्भगवद्गीता के अठारहवें अध्याय का पाठ करता है, वह संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त करता है। यह अध्याय हमें समर्पण, त्याग और निष्काम कर्म की महत्ता सिखाता है, जिससे मनुष्य अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
श्रीमद्भगवद्गीता केवल शास्त्रीय ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मकल्याण का दिव्य मार्ग है। पद्म पुराण (उत्तर खंड) में वर्णित गीता माहात्म्य दर्शाता है कि इसके नियमित पाठ से मनुष्य के जीवन में चमत्कारी परिवर्तन होता है। यह मोह को मिटाकर ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करता है, अज्ञान से मुक्त कर आत्मस्वरूप का साक्षात्कार कराता है और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है। पहला अध्याय अर्जुन के संशय का प्रतीक है, जबकि दूसरा अध्याय आत्मा की अमरता का ज्ञान देता है। तीसरा निष्काम कर्मयोग सिखाता है, और चौथा अवतार तथा दिव्य ज्ञान के रहस्य प्रकट करता है। पाँचवा कर्म और संन्यास के गूढ़ अर्थ को समझाकर मन के त्याग को श्रेष्ठ बताता है, जबकि छठा ध्यानयोग का महत्व उजागर करता है। सातवां अध्याय परमात्मा की विभूतियों का बोध कराता है, और आठवां मृत्यु के समय ईश्वर स्मरण की महिमा बताता है। नवां अध्याय परम रहस्य प्रकट कर भक्ति को सर्वोच्च मार्ग घोषित करता है, जबकि दसवां अध्याय भगवान की दिव्य विभूतियों का ज्ञान देता है। ग्यारहवें में विराट रूप के दर्शन होते हैं, और बारहवां भक्ति योग की महिमा बताता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
तेरहवां अध्याय आत्मा और शरीर के भेद को स्पष्ट करता है, चौदहवां तीन गुणों के प्रभाव को समझाकर उनसे परे उठने की प्रेरणा देता है, और पंद्रहवां पुरुषोत्तम योग के माध्यम से परमात्मा से संबंध स्थापित कराता है। सोलहवां दैवी व आसुरी गुणों का भेद बताकर सत्कर्मों की ओर प्रेरित करता है, सत्रहवां श्रद्धा और आचरण के प्रभाव को दर्शाता है, और अठारहवां संपूर्ण गीता का सार प्रस्तुत कर समर्पण में मोक्ष का रहस्य बताता है।
भगवान कहते हैं कि जो संपूर्ण भाव से उन्हें समर्पित हो जाता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर परम शांति और मोक्ष को प्राप्त करता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
इस प्रकार, श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का दैवी मार्गदर्शन है, जो हमें अज्ञान से ज्ञान, मोह से भक्ति, और बंधन से मोक्ष की ओर ले जाता है। जो भी श्रद्धा और निष्ठा से इसके उपदेशों को अपने जीवन में धारण करता है, वह सांसारिक मोह से मुक्त होकर परम सत्य को प्राप्त करता है।