Garbha Gita Divine Dialogue Between Shri Krishna and Arjuna, Garbh Geeta. Garbha Gita, an esoteric discourse from the Mahabharata, unfolds the mysteries of life, birth, and the journey of the soul in the womb. In this profound conversation, Lord Krishna imparts divine knowledge to Arjuna, revealing how the soul enters the body, experiences karma, and progresses through different stages of existence. It emphasizes the significance of righteous actions, spiritual awareness, and devotion to transcend the cycle of birth and death. Garbha Gita’s timeless wisdom guides seekers toward self-realization, liberation (Moksha), and divine consciousness. 🕉️✨
गर्भगीता, श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ एक दिव्य संवाद है, जिसमें मनुष्य के जन्म, कर्म, मोक्ष और आत्मज्ञान की गूढ़ रहस्यमयी बातें स्पष्ट की गई हैं। इसमें बताया गया है कि संसार में मनुष्य क्यों जन्म लेता है, वह किस कारण मोह और बंधन में पड़ता है तथा उसे इस चक्र से मुक्त होने का क्या उपाय करना चाहिए। यह गीता आत्मबोध, ज्ञान, और मोक्ष का संदेश देती है तथा यह स्पष्ट करती है कि केवल बाह्य कर्मकांड, यज्ञ, तपस्या, व्रत या दान से मोक्ष संभव नहीं, अपितु आत्मज्ञान ही अंतिम उपाय है। श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि जब तक मन शुद्ध नहीं होता और आत्मतत्त्व को नहीं जानता, तब तक संसार के समस्त क्रियाकलाप व्यर्थ हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
मैं उन श्रीकृष्ण को वंदन करता हूँ जो देवताओं के भी स्वामी हैं, संहार, सृष्टि और पालन के कारणभूत हैं, समस्त प्राणियों के मुक्तस्वरूप हैं, करुणामय हैं, गुणों से रहित हैं, योगियों द्वारा ध्यान के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं, द्वंद्वों से परे हैं, सत्यस्वरूप हैं, देवताओं द्वारा वंदित हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, भक्तों के अधीन हैं, चतुर्थ अवस्था में स्थित हैं, नवघन के समान सुंदर हैं तथा देवकी के पुत्र हैं।
अर्जुन बोले—
हे जनार्दन! मनुष्य गर्भवास, बुढ़ापा और मृत्यु को क्यों प्राप्त होता है? जन्म किस प्रकार बंधनस्वरूप होता है? कृपया इसका वर्णन कीजिए। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
भगवान बोले—
मनुष्य अज्ञानवश अंधकारमय संसार में लिप्त रहता है। वह अपनी इच्छाओं का परित्याग नहीं करता और इसी कारण जन्म-मरण के चक्र में पड़ा रहता है।
अर्जुन बोले—
हे प्रभु! मनुष्य अपनी इच्छाओं को किस प्रकार जीत सकता है? संसार और उसके विषयों से किस प्रकार मुक्त हो सकता है? किस प्रकार के कर्म से मनुष्य बंधन से छूट सकता है?
काम, क्रोध, लोभ, मद और मात्सर्य - ये मन के भीतर स्थित रहते हैं। मनुष्य इन कर्म-बंधनों को कैसे त्याग सकता है?
भगवान बोले—
ज्ञानरूपी अग्नि समस्त कर्मों को जला देती है, किंतु जब तक पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं होता, तब तक मनुष्य कर्म में लिप्त रहता है। जो विशुद्ध आत्मा को प्राप्त कर लेता है, वह पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता।
विष्णु और गुरु का चिंतन ही समस्त कर्मों का परिहार है। जब विकल्प और संकल्प समाप्त हो जाते हैं, तब पुनर्जन्म भी नहीं होता।
मनुष्य चाहे असंख्य शास्त्रों का अध्ययन कर ले, अनेक देवी-देवताओं की पूजा कर ले, किंतु आत्मज्ञान के बिना ये सब व्यर्थ हैं।
कोटि यज्ञों का अनुष्ठान करने से, पर्वत के समान स्वर्ण का दान करने से भी यदि कोई आत्मतत्त्व को नहीं जानता, तो उसे मुक्ति नहीं मिलेगी - इसमें कोई संशय नहीं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
कोटि यज्ञों से, कोटि दानों से, सहस्त्रों गोधानों से भी मोक्ष नहीं मिलता और न ही मनुष्य शुद्ध होता है।
तीर्थों में भ्रमण करने से, शरीर पर भस्म लगाने से, ब्रह्मचर्य का पालन करने से या इंद्रियों को वश में करने से भी मोक्ष नहीं मिलता।
कोटि यज्ञों के अनुष्ठान से, स्वर्ण दान करने से, वन में निवास करने से या भोजन का परित्याग करने से भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
मौन व्रत रखने से, शरीर को कष्ट देने से, गीत गाने से, मूर्तिकला में निपुणता प्राप्त करने से भी मोक्ष नहीं होता।
कर्मों में प्रवृत्त रहने से, मोक्ष की भावना मात्र करने से, जटाओं को बढ़ाने से या निर्जन में निवास करने से भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
नियमों के पालन से, ध्यान में स्थित रहने से, प्राणायाम से, कंद-मूल खाने से अथवा संपूर्ण विषयों का त्याग करने से भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब तक बुद्धि विकारमुक्त नहीं होती और आत्मतत्त्व का अनुभव नहीं होता, तब तक योग और संन्यास का भी कोई फल नहीं होता।
यदि अंतःकरण शुद्ध न हो और चिद्भाव से भिन्न हो, तो फिर तपस्या की करोड़ों विधियों से भी मन का मलिनपन दूर नहीं किया जा सकता।
अर्जुन बोले—
हे कृष्ण! अंतःकरण किस प्रकार शुद्ध होता है? चिद्भाव से पृथक किस प्रकार किया जा सकता है? यह मनोमल किस प्रकार निर्मल होता है? Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
भगवान बोले—
जो तपोनिष्ठ, पवित्र आत्मा वाला और ज्ञानाग्नि से समस्त पापों को भस्म कर चुका होता है, जो गुरु के वचन में पूर्ण श्रद्धा रखता है, वह पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता।
अर्जुन बोले—
हे कृष्ण! कर्म और अकर्म ये दोनों बंधनरूप हैं। किस प्रकार के कर्म से मनुष्य इस बंधन से मुक्त हो सकता है?
भगवान बोले—
कर्म और अकर्म के भेद को जो साधक योगाभ्यास और ज्ञान से समझता है, वह ब्रह्मरूपी अग्नि में समस्त बीजों को भस्म कर देता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
योगियों के लिए सहज आनंद ही जन्म और मृत्यु का विनाश करने वाला है। यह ज्ञानस्वरूप, निषेध और विधि से रहित तथा मुक्तिदायक है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
इसलिए समस्त विषयों से स्वयं को पृथक कर आत्मा में स्थित हो जाओ। मिथ्या जगत् को त्यागकर जो बुद्धिमान सदा आनंद में स्थित रहता है, वही मुक्त होता है।
इति श्रीगर्भगीता समाप्ता