Ail Gita, Srimad Bhagavatam Teachings Unveiling Hidden Spiritual Wisdom and Divine Insights from Ancient Scriptures. This sacred dialogue, presented in the Bhagavatam, explores themes of Detachment, Self-Realization, and the Ultimate Nature of Truth, guiding seekers toward Inner Peace and Spiritual Enlightenment. Ail Gita’s profound message emphasizes the path of Vairagya (Renunciation) and Jnana (Wisdom), empowering aspirants to transcend worldly attachments and attain Moksha (Liberation). These timeless teachings, deeply rooted in Sanatan Dharma, illuminate the journey of the soul toward Divine Knowledge and Eternal Bliss. 🕉️✨
श्रीमद्भागवत महापुराण के ग्यारहवें स्कंध के छब्बीसवें अध्याय में ऐलगीता प्रस्तुत की गई है। यह गीता राजा पुरूरवा की गाथा को दर्शाती है, जिन्होंने स्वर्गीय अप्सरा उर्वशी के प्रेम में मोहग्रस्त होकर आत्मज्ञान की उपेक्षा कर दी थी। किन्तु अंततः वे भोग और मोह को त्यागकर ज्ञान और वैराग्य के पथ पर अग्रसर हुए। इस गीता में भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं यह उपदेश देते हैं कि किस प्रकार मनुष्य को विषय-वासनाओं से मुक्त होकर आत्मतत्त्व की प्राप्ति करनी चाहिए।
श्रीभगवान् ने कहा:
मनुष्य-जीवन के शुभ लक्षणों से युक्त इस शरीर को प्राप्त कर जो मेरे धर्म में स्थित हो जाता है, वह अपने आत्मा में स्थित परम आनंदस्वरूप मुझे प्राप्त कर लेता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जो ज्ञान में स्थित होकर प्रकृति के गुणमयी बंधनों से मुक्त हो जाता है, वह प्रकृति के गुणों को केवल माया का प्रभाव जानकर उनमें नहीं उलझता, यद्यपि वे दृश्य रूप में विद्यमान होते हैं, किन्तु वे वास्तव में अवास्तविक होते हैं।
जो लोग केवल पेट और इंद्रियों की तृप्ति के लिए जीवन जीते हैं, उनके संग से बचना चाहिए। ऐसा मनुष्य अंधकारमय अज्ञान में गिर जाता है, जैसे एक अंधा दूसरे अंधे का अनुसरण करते हुए गिर जाता है।
महान प्रतापी सम्राट् ऐल (पुरूरवा) ने, जो उर्वशी के वियोग में मोहग्रस्त और शोक से संतप्त था, इस प्रकार की गाथा का गायन किया। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब उर्वशी उसे छोड़कर जा रही थी, तब वह नग्न, विक्षिप्त और विकल होकर रोते हुए उसके पीछे दौड़ा और चिल्लाया— "हे प्रिये! ठहरो, ठहरो!"
अपने विषय-कामनाओं से कभी तृप्त न होने वाला राजा अनेक वर्षों तक उर्वशी के साथ विषय-भोग में लिप्त रहा। उर्वशी के प्रति आकर्षण के कारण वह यह भी नहीं जान सका कि रात्रियाँ बीत रही हैं और समय कैसे व्यतीत हो रहा है।
ऐल (पुरूरवा) बोले:
अहो! मेरी कितनी बड़ी मोहवृद्धि है! मैं काम के अज्ञान में पड़ा हुआ हूँ। उर्वशी ने जब मेरे गले में हाथ डालकर प्रेमपूर्वक वाणी बोली, तब मेरा जीवन काल खंडों में बंट गया, परंतु मैं अचेतन बना रहा।
उर्वशी के मोह में इतना मग्न था कि न तो मुझे सूर्य के उदय होने का भान था, न ही रात और दिन का ज्ञान। इस प्रकार वर्षों बीत गए और मेरे जीवन के दिन यूँ ही नष्ट हो गए। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
हाय! मेरे आत्मा का कितना बड़ा भ्रम है! स्त्री के प्रेम-जाल में फँसकर मैं केवल उसका क्रीड़ा-पशु बन गया। जो चक्रवर्ती सम्राट् और नरपतियों का मुकुटमणि था, वह अब केवल स्त्रियों का खिलौना बन गया।
अपनी पूरी समृद्धि और ऐश्वर्य को तिनके के समान छोड़कर मैं उर्वशी के पीछे नग्न और विक्षिप्त होकर रोता हुआ दौड़ा।
ऐसे व्यक्ति में कौन-सा तेज और प्रभावशाली ईश्वरीय गुण रह सकता है, जो स्त्री के पीछे दौड़े और घोड़े के समान पैरों से ठोकरें खाए? Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
विद्याध्ययन, तपस्या, त्याग, वेदों का श्रवण, एकांतवास, मौन—इनमें से कुछ भी उस व्यक्ति के लिए उपयोगी नहीं, जिसका मन स्त्रियों द्वारा हरण कर लिया गया हो।
धिक्कार है मुझ पर! मैं मूर्ख होकर अपने को पंडित मानता रहा। मैं परम ऐश्वर्य को प्राप्त होने के बाद भी स्त्रियों द्वारा इस प्रकार ठुकरा दिया गया जैसे कोई बैल या गधा।
मैंने वर्षों तक उर्वशी के अधर-सुधा (चुम्बन) का आस्वादन किया, फिर भी मेरी काम-वासना शांत नहीं हुई, जैसे अग्नि में घी की आहुति देने से वह और अधिक प्रज्वलित होती है।
कौन है जो स्त्री के आकर्षण से विमुक्त कर सकता है, सिवाय उस भगवान् अधोक्षज के, जो आत्मा में रमण करने वाले और समस्त ऐश्वर्यों के स्वामी हैं? Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
उर्वशी ने भी मुझे सत्य वचनों द्वारा उपदेश दिया था, परंतु दुर्बुद्धि होने के कारण मेरा मन फिर भी उस मोह-माया से मुक्त नहीं हो पाया। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
यह क्या, मुझे क्या लाभ हुआ? जैसे कोई सांप रस्सी को वास्तविक सांप समझकर भयभीत होता है, वैसे ही मैंने भी स्त्रियों के प्रति आसक्ति में अपना जीवन नष्ट कर दिया।
यह शरीर मल-मूत्र, रक्त, मांस, स्नायु, मज्जा और अस्थियों से बना है, जो अशुद्ध और दुर्गंधयुक्त है। इसमें सौंदर्य और कोमलता का जो अनुभव होता है, वह केवल अज्ञान का ही परिणाम है।
यह शरीर न माता-पिता का है, न पत्नी का, न स्वामी का, न अग्नि का, न कुत्ते और गीध का, न स्वयं आत्मा का और न मित्रों का—फिर इसमें आसक्ति कैसी? Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जो तुच्छ, अशुद्ध और नश्वर शरीर है, उसमें आसक्ति रखना आश्चर्यजनक है। और अहो! स्त्री का सुंदर मुख, सुंदर नासिका और मीठी मुस्कान कैसे मन को मोह लेती है!
परंतु यह त्वचा, माँस, रक्त, नसें, मेद, मज्जा, हड्डियाँ और मल-मूत्र से भरी हुई देह है। इसमें रमण करने वाले पुरुष और उसमें उत्पन्न कीटाणुओं में क्या अंतर है?
इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को स्त्रियों और स्त्री-आसक्त पुरुषों से दूर रहना चाहिए, क्योंकि इंद्रियों के विषयों के संपर्क से ही मन में विक्षोभ उत्पन्न होता है, अन्यथा नहीं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब तक किसी विषय को देखा और सुना नहीं जाता, तब तक उस विषय में आसक्ति उत्पन्न नहीं होती। अतः जिसने इंद्रियों का संयम कर लिया, उसका चित्त शांत हो जाता है।
इस कारण स्त्रियों और स्त्री-परायण पुरुषों से संग नहीं करना चाहिए। विद्वानों का भी मन इस विषय में अस्थिर हो सकता है, तो फिर हम जैसे अज्ञानी लोगों की बात ही क्या?
श्रीभगवान् ने कहा:
इस प्रकार राजा पुरूरवा उर्वशी के मोह को त्यागकर, आत्मस्वरूप को जानकर मुझमें स्थित हो गया और समस्त अज्ञान से मुक्त होकर संसार-बंधन से निवृत्त हो गया।
इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को दूषित संग छोड़कर सत्संग में रहना चाहिए। संतजनों के संग से ही चित्त के बंधनों का नाश होता है।
संतजन किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखते, वे मेरे प्रति चित्त लगाए रहते हैं, शांत, समदर्शी, ममतारहित, अहंकारशून्य, द्वंद्वहीन और परिग्रह से मुक्त होते हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
हे महाभाग्यशाली! संतों के संग में निरंतर मेरी लीलाओं की चर्चा होती है। जो लोग इनका श्रवण, कीर्तन और स्मरण करते हैं, वे पापों से मुक्त हो जाते हैं।
जो मेरे परायण होकर श्रद्धा से इन कथाओं को सुनते, गाते और आदरपूर्वक स्वीकार करते हैं, वे मुझमें भक्ति प्राप्त कर लेते हैं।
जिस साधु ने भक्ति प्राप्त कर ली, उसके लिए और क्या शेष रह जाता है? मैं ही अनंत गुणों वाला ब्रह्म हूँ, जो आनंदस्वरूप और आत्मानुभव का साक्षात् स्वरूप है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जिस प्रकार सूर्य की शरण में आने से शीत, भय और अंधकार दूर हो जाते हैं, वैसे ही संतजनों की सेवा से अज्ञान नष्ट हो जाता है।
जो संसार-सागर में डूबते-उतराते हैं, उनके लिए संतजन ब्रह्मविद्या के शांत स्वरूप में स्थित होकर दृढ़ नौका के समान हैं, जो उन्हें सुरक्षित पार कराते हैं।
जैसे भोजन सभी प्राणियों का जीवन-स्रोत है, दुखी जनों का शरण मैं हूँ, धर्म मनुष्यों के लिए मृत्यु के बाद का धन है और संतजन भयभीत लोगों के लिए आश्रय हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
संतजन बाहर से सूर्य के समान दृष्टि प्रदान करते हैं, वे ही सच्चे देवता, सच्चे बंधु और आत्मस्वरूप होते हैं।
इस प्रकार राजा पुरूरवा उर्वशी से पूरी तरह विमुक्त होकर संसार की कामनाओं से निर्लिप्त हो गया और मुक्त संग रहकर आत्मरति में स्थित होकर पृथ्वी पर विचरण करने लगा।
इस गाथा से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को विषय-वासना और आसक्ति से मुक्त होकर आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होना चाहिए। भोग और इंद्रिय-सुख क्षणिक हैं, किन्तु संतजनों का संग एवं भगवद्भक्ति ही वास्तविक कल्याण का मार्ग है। ऐलगीता हमें यह भी सिखाती है कि अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर निकलने के लिए संतों का संग, भगवद्-भजन, एवं आत्मविचार परम आवश्यक हैं।
॥ श्रीमद्भागवतान्तर्गत ऐलगीता समाप्त ॥