Gayatri Gita Secrets, Divine Power & Manifest Success with Ancient Wisdom. Gayatri Gita unveils the sacred essence of the Gayatri Mantra, illuminating the path to spiritual enlightenment, mental clarity, and divine protection. This profound scripture emphasizes that by meditating on the supreme light of the Creator (Savita), one can awaken higher consciousness and manifest success in all aspects of life. Through the vibration of Gayatri, seekers attain inner peace, wisdom, and strength to overcome obstacles and align with the cosmic order (Rta). Gayatri Gita inspires aspirants to unlock their hidden potential and realize their divine purpose, making it a treasury of ancient Vedic wisdom. 🕉️✨
गायत्री मंत्र को वेदों में परम पवित्र, दिव्य एवं सर्वकल्याणकारी मंत्र के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। यह मंत्र केवल उपासना का साधन ही नहीं, अपितु आत्मिक उन्नयन, मनःशुद्धि तथा ब्रह्मज्ञान का भी श्रेष्ठतम मार्गदर्शक है। इस मंत्र में 'ॐ' के साथ 'भूः', 'भुवः', 'स्वः' और 'तत्सवितुर्वरेण्यम्' जैसे तत्वदर्शी शब्द समाहित हैं, जो संपूर्ण ब्रह्मांड के रहस्यों को उद्घाटित करते हैं। प्रस्तुत गायत्री गीता का विस्तृत हिंदी अनुवाद इन गूढ़ तत्वों का सुंदर विवेचन करता है, जिससे साधक को धर्म, सत्य और आत्मज्ञान की अनुभूति होती है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
"ॐ" यह नाम ही परम पवित्र, निष्कलंक और शुभ है, जो समस्त ब्रह्माण्ड के आत्मस्वरूप परब्रह्म का मूल स्वरूप है। समस्त नामों में यही नाम परम प्रमुख और श्रेष्ठ माना गया है।
जिस परमात्मा का निरूपण वेद करते हैं, जो सदा न्यायशील, सत्य, चैतन्य एवं आनंदस्वरूप है; जो समस्त लोकों का स्वामी, समदर्शी, समस्त चराचर का नियामक, निराकार एवं सर्वसमर्थ परम प्रभु है — उसी का यह "ॐ" स्वरूप है।
‘भूः’ शब्द प्राण का प्रतीक है, ऐसा वेदांत के तत्वज्ञ मुनि कहते हैं। यह प्राण समस्त प्राणियों में समान रूप से व्यापक है, जैसे वायु सर्वत्र व्याप्त होती है। इसी प्राणतत्त्व के द्वारा सम्पूर्ण विश्व की गति, स्थिति एवं व्यवस्था सुनिश्चित होती है। अतः समस्त प्राणियों में आत्मवत् भाव रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति को उस ब्रह्म स्वरूप का दर्शन करना चाहिए, जो सर्वत्र व्याप्त है।
‘भुवः’ शब्द का तात्पर्य समस्त विघ्न-बाधाओं के नाशक तत्व से है। जो कार्य पूर्ण हो चुका है और जो किया जाना अभी शेष है — इन दोनों का भलीभांति विचार करके मन को सदा सत्कर्मों में प्रवृत्त रखना चाहिए। जो मनुष्य केवल कर्म के फल की इच्छा करते हैं, परंतु कर्म में प्रवृत्त नहीं होते, वे सज्जनों की कृपा एवं आशीर्वाद से सदा वंचित ही रहते हैं।
स्वर ही वह दिव्य ध्वनि है जो मन को स्थिरता प्रदान करती है। यही स्वर मन को संतोष एवं स्थिर चित्त की ओर प्रवृत्त करता है। स्वर ही अंतर्मन में स्थित शांति, स्वास्थ्य एवं आनंद का द्योतक है। यह मनुष्य को सत्यव्रत के परमसागर में निमग्न कर देता है, जिससे उसे त्रिविध शांति — आंतरिक, बाह्य और आध्यात्मिक — सहज ही प्राप्त हो जाती है।
इस प्रकार जो बुद्धिमान व्यक्ति इस रहस्य को भलीभांति जान लेता है, वह इस संसार में निर्विकारी एवं निर्भय होकर विचरण करता है। जीवन और मरण के गूढ़ रहस्यों को जानकर वह समस्त भय से मुक्त हो जाता है और इस नश्वर संसार में रहते हुए भी अपने कर्मों द्वारा सत्य का निर्माण करता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जो व्यक्ति सूर्य के समान प्रकाशवान और तेजस्वी हो जाता है, वह अपने कर्मों में स्थिर हो जाता है। ऐसा व्यक्ति बलवान बनकर अपने ज्ञान के तेज से अज्ञान का नाश कर देता है। जैसे सूर्य की किरणें समस्त दिशाओं में व्याप्त होती हैं, वैसे ही उसकी चेतना समस्त दिशाओं में फैल जाती है। संसारिक विषयों के अनुभवों से परे उसकी आत्मा शुद्धता को प्राप्त करती है और वह ज्ञानयोग में प्रवृत्त होकर श्रेष्ठता का वरण करता है।
‘वरेण्य’ शब्द का अर्थ है — श्रेष्ठतम। मनुष्य को सदा सर्वश्रेष्ठ का चिंतन करना चाहिए, श्रेष्ठ कर्मों का ही अवलंबन करना चाहिए, और मनन में भी श्रेष्ठता को अपनाना चाहिए। इस प्रकार जो व्यक्ति सरल मन, सत्य आचरण एवं श्रेष्ठ कर्मों को धारण करता है, वही वास्तव में महानता को प्राप्त करता है।
‘भर्गो’ शब्द का अर्थ है — पाप का नाशक तेज। जो व्यक्ति इस तेज का अनुसरण करता है, उसके भीतर से समस्त पाप-दोष जलकर भस्म हो जाते हैं। उसे चाहिए कि वह सदैव अपने मन को पवित्रता में स्थिर रखे और पापाचरण का त्याग करे। जो व्यक्ति दुष्कृतियों एवं दुराचार के विकट परिणामों को जानकर उनसे घृणा करता है तथा उनके विनाश के लिए सतत संघर्ष करता है, वही इस तेजस्विता का अधिकारी बनता है।
‘देवस्य’ शब्द का तात्पर्य है — दिव्यत्व का आह्वान। मनुष्य यदि अपनी दृष्टि को शुद्ध बनाए, सेवा एवं उपकार का जीवन अपनाए और निःस्वार्थ कर्म में प्रवृत्त हो जाए, तो वह मृत्युलोक में रहते हुए भी देवत्व को प्राप्त कर सकता है। निःस्वार्थ सेवा, परोपकार, दीन-दुखियों को दान देने तथा बाह्य एवं आंतरिक पवित्रता को धारण करने से उसका जीवन देवत्व के तेज से चमक उठता है।
‘धीमहि’ का अर्थ है — हम ध्यान करें। वेद कहते हैं कि जो व्यक्ति सत्य के स्वरूप का ध्यान करता है, वही सुख और शांति को प्राप्त करता है। ध्यान ही वह माध्यम है जिससे मानव का मन सत्त्वगुण में स्थिर होता है और वह मानसिक दुर्बलताओं को त्यागकर परम आनंद का अनुभव करता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
‘धियो’ शब्द का तात्पर्य है — बुद्धि। जो व्यक्ति वेदों के गूढ़ रहस्यों को जानकर अपनी बुद्धि को निर्मल बनाता है, वही सत्य की अनुभूति करता है, जैसे दही मथने पर उसमें से शुद्ध मक्खन प्रकट होता है। इस संसार में जहाँ सैकड़ों संशयजनक विषय हैं, वहाँ शुद्ध बुद्धि ही मनुष्य को सत्य का दर्शन कराती है।
‘योनः’ का अर्थ है — शक्ति का स्रोत। मनुष्य के भीतर जितनी भी शक्तियाँ हैं, चाहे वे न्यूनतम हों या अत्यधिक, उसे चाहिए कि उन सबका उपयोग आत्मिक शांति के लिए करे। जो व्यक्ति अपने पास की शक्तियों का सदुपयोग कर परमार्थ में प्रवृत्त होता है और निर्बलों को बल प्रदान करता है, वही वास्तव में श्रेष्ठ पुरुष कहलाता है।
‘प्रचोदयात्’ का अर्थ है — प्रेरणा देना। मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं सत्य के मार्ग पर चले और दूसरों को भी उस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे। जो व्यक्ति इस दिव्य संदेश का अनुसरण करता है, वही संसार में धर्म, सत्य और कर्तव्य की स्थापना करता है।
गायत्री गीता का यह पवित्र ज्ञान प्रत्येक साधक को आत्मिक जागरण की प्रेरणा देता है। जो व्यक्ति इस गीता के तत्वों का अनुसरण करता है, वह जीवन के समस्त संकटों से मुक्त होकर आनंद, शांति और परम ज्ञान का अधिकारी बनता है। गायत्री मंत्र केवल एक साधारण प्रार्थना नहीं, बल्कि समस्त विश्व के कल्याण का महामंत्र है। इसके गूढ़ अर्थ को आत्मसात् करने वाला साधक स्वयं परमात्मा के दिव्य स्वरूप का साक्षात्कार कर सकता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
गायत्री गीता का यह रहस्य जानने वाला व्यक्ति समस्त भय से मुक्त हो जाता है और जीवन के प्रत्येक क्षण में आनंद का अनुभव करता है। इस दिव्य ज्ञान का पालन करने वाला साधक सदा धर्म के मार्ग पर अग्रसर रहते हुए आत्मिक शांति को प्राप्त करता है।