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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
क्या आपने कभी सोचा है, वह अदृश्य शक्ति, वह ब्रह्म, जो आधुनिक उपनिषद और अद्वैत वेदांत में बताया गया है, वह हमारे जीवन को किस तरह से प्रभावित करती है? अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों के अनुसार, ब्रह्म और आत्मा एक ही हैं, और इस गहरे ज्ञान को समझने से हम अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं। आज हम उपनिषद की गहराई में उतरेंगे, जहां अद्वैत वेदांत के सच्चे अर्थ को समझा जाएगा और देखेंगे कि कैसे यह हमें आत्मसाक्षात्कार और सच्चे ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करता है।
ॐ
ऋषियों ने ब्रह्म का उपासना करने के बाद आपस में परस्पर इस प्रकार कहा। वे ब्रह्म के विषय में आपस में संवाद कर रहे थे और इसे समझाने का प्रयास कर रहे थे। उनके बीच विश्वामित्र ने यह कहा, "यह ब्रह्म, जिसे हम जानते हैं, वह परम सत्य है।"
उन्होंने यह उदाहरण देते हुए बताया कि जिस प्रकार आकाश और पृथ्वी सभी पदार्थों को अपने भीतर समेटे हुए हैं, उसी प्रकार यह ब्रह्म भी समस्त जगत का कारण और कर्ता है। जब हम आकाश की विशालता को देखते हैं, तो हम समझ सकते हैं कि यह ब्रह्म की निराकार और अव्यक्त सत्ता का प्रतीक है। ब्रह्म सभी तत्त्वों में समाहित है और हर एक के भीतर मौजूद है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
विश्वामित्र ने ब्रह्म की व्याख्या करते हुए कहा, "देखो! जैसे अग्नि जल के द्वारा जलायी जाती है, जल के द्वारा शुद्ध होती है, और फिर जल में ही समाहित हो जाती है, वैसे ही यह ब्रह्म भी सर्वव्यापी है और उसकी शक्ति हर स्थान पर कार्य करती है।"
ऋषि ने यह भी कहा कि ब्रह्म वह शक्ति है, जो हमारे आसपास के सभी पदार्थों और तत्त्वों में समाहित है, लेकिन फिर भी वह उन सभी से निरपेक्ष और निर्लिप्त है। जैसे विभिन्न प्रकार की शक्तियाँ और तत्त्व अपने-अपने स्थान पर कार्य करते हैं, वैसे ही ब्रह्म हर पदार्थ में वास करता है और उसे उसके कार्य करने की क्षमता प्रदान करता है।
इसके बाद, जमदग्नि ऋषि ने कहा कि जो ब्रह्म के स्वरूप को नहीं जानता है, वह उसका सही अनुभव नहीं कर सकता। जैसे कोई व्यक्ति अपनी आँखों से आकाश को नहीं देख सकता है, वैसे ही वह ब्रह्म के स्वरूप को भी समझने में असमर्थ है। तब उन्होंने यह कहा कि जो ब्रह्म इस सृष्टि में सर्वव्यापी और समस्त तत्वों में व्यापी है, वही अपने में महिमान्वित है और वही प्रत्येक प्राणी का कारण है।
जमदग्नि ऋषि ने यह भी कहा कि जो व्यक्ति इस ब्रह्म के संबंध में गहरे ज्ञान से परिचित होता है, वह उसे सही प्रकार से जानकर उसकी उपासना करता है। वह उसे उसके अंदर ही अनुभव करता है, न कि केवल बाह्य रूप में। जो व्यक्ति इस प्रकार की उपासना करता है, वही उसकी वास्तविकता को सही रूप से जानता है और उसके द्वारा किए गए कर्म सिद्ध होते हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जमदग्नि ऋषि ने यह भी स्पष्ट किया कि जो व्यक्ति केवल बाहरी रूप से ब्रह्म का आदान-प्रदान करता है, बिना सही ज्ञान के, वह आर्त और दुखी होता है। केवल सही रूप से ब्रह्म की उपासना करने वाला ही संतुष्ट और शांत रहता है, क्योंकि वह ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को समझता है और उस पर विश्वास रखता है।
इसके बाद, एक अन्य व्यक्ति ने पूछा: "तुमने जो ब्रह्म का रूप बताया, क्या वह शरीर के रूप में अनुभव नहीं होता?" इस पर गुरु ने उत्तर दिया: "यह ब्रह्म ऐसा नहीं है जो सामान्य रूप से अनुभव किया जाए, जैसे पृथ्वी और आकाश। यह ब्रह्म किसी सीमा में बंधा हुआ नहीं होता, न ही इसे आसानी से देखा या समझा जा सकता है।"
गुरु ने आगे कहा: "यह ब्रह्म न तो किसी स्थान पर सीमित है, न ही इसका रूप भंगुर है। यह न तो गिरता है, न ही ठहरता है, न ही इधर-उधर घूमता है। जैसे आग में ज्वाला रहती है, वैसे ही यह ब्रह्म अपने स्थान से अप्रकट रहता है।"
गुरु ने फिर बताया: "जो व्यक्ति इस ब्रह्म के स्वरूप को सही रूप से समझता है, वही उसे सही तरीके से पूजा करता है। उसका जीवन सुखमय और समृद्ध हो जाता है। इस ब्रह्म की उपासना करने वाले व्यक्ति का जीवन उद्देश्यपूर्ण होता है, और वह आत्मज्ञान में स्थित रहता है।"
फिर गुरु ने यह भी कहा कि जो व्यक्ति इस ब्रह्म की उपासना बिना सही ज्ञान के करता है, वह दुखी होता है। वह न केवल मानसिक रूप से आर्त होता है, बल्कि उसे जीवन में असफलताएं भी मिलती हैं। ऐसे व्यक्ति का जीवन संपूर्ण रूप से व्यर्थ हो जाता है। जो व्यक्ति इस ब्रह्म की सच्ची उपासना करता है, वही सुखी, समृद्ध और पूर्ण रूप से ज्ञानी बनता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
फिर एक अन्य व्यक्ति ने पूछा: "तुम इस ब्रह्म को नष्ट नहीं मानते, बल्कि इससे कैसे जुड़ा जाता है?" इस पर गुरु ने उत्तर दिया: "यह ब्रह्म वैसा नहीं है जैसे सामान्य रूप से देखा जाए, जैसे जलते हुए दीपक या आकाश में जलती हुई ज्वाला। यह ब्रह्म उसी प्रकार प्रकाशित होता है जैसे दीपक जलता है, या आकाश में जगमगाती हुई रोशनी, और यह वही ब्रह्म है जिसे हमें समझना है।"
गुरु ने कहा: "जो इस ब्रह्म के रूप को जानता है, वह उसके सर्वोत्तम स्वरूप को देखता है। इस ब्रह्म की उपासना करने वाले व्यक्ति का जीवन सम्पूर्ण और संतुष्ट होता है, क्योंकि वह आत्मज्ञान में स्थित रहता है। जो इस ब्रह्म को सही रूप से पहचानता है, वह आत्मा को सही दिशा में पहचानता है।"
गुरु ने आगे बताया: "यह ब्रह्म न तो किसी विशेष स्थान पर होता है, न ही यह दूर होता है। इसके महिमानुसार कोई भी व्यक्ति इसे जानने की कोशिश करता है, तो वह तुरंत उसका अनुभव करता है। लेकिन जो इस ब्रह्म को अधूरा या अज्ञानता से देखता है, वह बर्बाद होता है, और उसकी संविदान (समझ) उलझ जाती है।"
फिर गुरु ने यह भी कहा: "जो व्यक्ति इस ब्रह्म की उपासना सही ढंग से करता है, वह सच्चे अर्थों में सफल होता है। उसके जीवन में सभी सुख-साधन और कर्म संपन्न होते हैं। यह ब्रह्म हर स्थान पर विद्यमान है, जैसे सूर्य और दीपक का प्रकाश। वह जो इस ब्रह्म की उपासना सही प्रकार से करता है, उसका जीवन समृद्ध और आनंदित होता है।"
फिर गुरु ने कहा: "यह ब्रह्म एक दिव्य रूप में व्यक्त होता है, जिसकी रंगत सोने जैसी होती है, और जो उसके आकाशीय रूप को प्रदर्शित करता है।"
गुरु ने समापन करते हुए कहा: "जो व्यक्ति इस ब्रह्म की उपासना बिना सही ज्ञान के करता है, वह दुखी होता है, लेकिन जो इसे सही रूप से समझकर पूजा करता है, वह अपने जीवन में हर प्रकार की सफलता प्राप्त करता है और उसकी आयु और सुख में वृद्धि होती है।"
तब एक अन्य व्यक्ति ने पूछा: "तुम इस ब्रह्म को नष्ट नहीं मानते, तो तुम इसे किस प्रकार मानते हो?" गुरु ने उत्तर दिया: "यह ब्रह्म ऐसी शक्ति के समान है, जो न जलती हुई आकाशीय ज्वाला की तरह स्थिर है, न गहरे अंधकार में लहराती है, न अधिक शक्ति से दबायी जाती है। यह उसी प्रकार है जैसे ज्वाला में दीप्तिमान प्रकाश पूरी तरह से उज्जवल और निर्बाध रहता है। यह ब्रह्म वही है जिसे हमें उपासना करनी चाहिए।"
गुरु ने कहा: "जो व्यक्ति इस ब्रह्म के महिम्न (महानता) को पहचानता है, वह इसे अपनी आत्मा के रूप में स्वीकार करता है और वह अनन्त जीवन की प्राप्ति करता है। जो इसके साथ सही उपासना करता है, वह यह ब्रह्म समझता है और उसे अपनी जीवन की समृद्धि का स्रोत मानता है।"
गुरु ने आगे कहा: "यह ब्रह्म ना तो किसी बाहरी रूप में बंधा है, न ही यह किसी परिधि में बंद होता है। इसके महान स्वरूप को पहचानकर ही हम सत्य की दिशा में बढ़ सकते हैं। जो इस ब्रह्म के बारे में गलत धारणा रखते हैं, उनका जीवन दुखी होता है, लेकिन जो इसे सही रूप में समझते हैं, उनका जीवन सुखी और समृद्ध होता है।"
फिर गुरु ने यह भी बताया: "यह ब्रह्म एक ऐसी आंतरिक ज्योति है जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है। यह हर तत्व में स्थित है, और इसके दर्शन से आत्मा की शुद्धता होती है।"
गुरु ने समापन करते हुए कहा: "जो व्यक्ति इस ब्रह्म की उपासना सही प्रकार से करता है, वह सत्य के मार्ग पर अग्रसर होता है, और उसका जीवन शांतिपूर्ण तथा सुखमय होता है।" Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
सभी देवताओं, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अग्नि, इन्द्र, और अन्य उच्च देवताओं को प्रणाम करते हुए गुरु ने यह उपनिषद् समाप्त किया।
नमो ब्रह्मणे।
नमो इन्द्राय।
नमो अग्नये।
नमः प्रजापतये।
इत्यार्षेयोपनिषत् समाप्ता ।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
॥ हरिः ॐ तत्सत् ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥