Akshamalika Upanishad
अक्षमालिका उपनिषद
Akshamalika Upanishad
अक्षमालिका उपनिषद
Akshamalika Upanishad is a unique Sanskrit text that reveals the spiritual significance of the akshamala – the rosary of Sanskrit syllables used in mantra practice. Rooted in Tantric and Vedantic thought, it symbolizes how each letter is a form of divine energy (shakti), guiding the seeker through japa, dhyana, and inner transformation. The Upanishad emphasizes the power of sacred sound and how the vibrations of each syllable lead to higher consciousness and liberation.
मैं उस परम रामचन्द्र पद का ध्यान करता हूँ — जो सम्पूर्ण वर्णों से बना है, ‘अ’ से लेकर ‘क्ष’ तक सभी ध्वनियों का अधिष्ठान है। जिसका स्वरूप ही संपूर्ण वर्णमाला है, वही सत्यस्वरूप रामचन्द्र — योगियों का परम ध्येय है। उस अपार शरीर में ही कैवल्य स्थित है। वही मोक्ष है।
हे वाणी! तू मेरे मन में प्रतिष्ठित हो — और हे मन! तू मेरी वाणी में निवास कर। मैं ब्रह्मस्वरूप वाणी को अनुभव करूं, उसे जागृत करूं, उसे प्रकट करूं।
हे दिव्य वेदज्ञान! तू मुझमें जागृत हो, उज्ज्वल हो — मैं वेद का स्वाध्याय करता हूँ, उसे दृढ़ करता हूँ, उसे रात-दिन आत्मसात करता हूँ। मैं अमृत बोलूंगा, मैं सत्य बोलूंगा।
वह परम सत्य मेरी रक्षा करे। वह मेरी वाणी की रक्षा करे। वह मुझको भी सुरक्षित रखे और मेरे वचन को भी। वह मुझसे बोलवाए सत्य। वह मुझे और मेरे शब्द को, दोनों को संरक्षण दे। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
ॐ शांति। शांति। शांति।
"यह कोई साधारण माला नहीं — यह ज्ञान की सजीव देही है।
हर अक्षर एक दिव्य बीज है, हर ध्वनि एक ब्रह्म की स्पंदन।
यह अक्षमालिका नहीं, साक्षात् देवी मन्त्र-मातृका है —
जो सम्पूर्ण सृष्टि की गति, ऊर्जा और चेतना का मूल स्रोत है।
उसे जानना, आत्मा के रहस्यों को जानना है।
उसे छूना, ब्रह्म के हृदय को छू लेना है।
आईए — प्रवेश करें इस दिव्य उपनिषद् के अमृत में,
जहाँ मन्त्र, शक्ति, शब्द और शान्ति —
एक हो जाते हैं।" Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
एक दिन प्रजापति ने भगवान कार्तिकेय से पूछा —
“हे ब्रह्मस्वरूप! कृपा करके मुझे बताइए — इस अक्षमाला का रहस्य क्या है? इसका स्वरूप कैसा है, इसके भेद कितने हैं, इसके सूत्रों की संख्या क्या है, उनका विन्यास कैसे किया जाता है, कौन-कौन से अक्षर इसमें स्थित हैं, इसकी प्रतिष्ठा कहाँ होती है, इसके अधिदेवता कौन हैं और इससे प्राप्त होने वाला फल क्या है?”
भगवान कार्तिकेय मुस्कुराकर बोले —
हे प्रजापति! अक्षमाला विविध रत्नों से निर्मित हो सकती है — प्रवाल, मोती, स्फटिक, शंख, चाँदी, अष्टधातु, चन्दन, पुत्रजीवा और कमल के बीजों से बने रुद्राक्ष ही इसकी आत्मा हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यह माला अकार से क्षकार तक के समस्त वर्णों का प्रतीक है — यह स्वयं संपूर्ण सृष्टि की प्रतीक मूर्ति है।
जब साधक इसे बनाता है, तो विशेष सावधानी और श्रद्धा आवश्यक होती है।
यदि माला स्वर्ण की हो — वह दिव्यता का प्रतीक है। यदि चाँदी की — शीतलता का। यदि तांबे की — ऊर्जा और तेज का संकेत देती है।
माला का मुखभाग 'मुख' कहलाता है, और अंतिम भाग 'पुच्छ'। दोनों को यथोचित रूप से विन्यस्त करना चाहिए।
माला के भीतर का सूत्र ही 'ब्रह्म' है — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
दक्षिण भाग 'शैव' है,
वाम भाग 'वैष्णव',
मुख 'सरस्वती' का प्रतीक है,
और पुच्छ 'गायत्री' की अभिव्यक्ति।
सूत्र का बीच का छिद्र — वह है 'विद्या'।
जहाँ गांठ लगाई जाती है — वहीं 'प्रकृति' प्रतिष्ठित होती है।
स्वरों का रंग 'श्वेत' माना गया है, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
स्पर्श वर्ण 'पीत',
और पर वर्ग 'रक्त' वर्ण का।
अब इस माला को शुद्ध करना आवश्यक है।
इसे पहले पाँच अमृत तुल्य गंधों से पवित्र किया जाता है, फिर पाँच गोद्रव्यों (गव्यों) से स्नान कराया जाता है।
इसके बाद गंधयुक्त जल से स्नान करवाया जाता है।
ओंकार का उच्चारण करते हुए पत्रों और पवित्र घास से इसे स्नान कराया जाता है,
फिर आठ प्रकार के दिव्य गंधों से अभिषेक करके, इसे सुमनों के आसन पर प्रतिष्ठित किया जाता है।
अक्षत और पुष्पों से इसकी पूजा होती है, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
और अकार से क्षकार तक के सभी वर्णों को ध्यान में रखकर —
माला को ब्रह्म का प्रतीक मानकर उसका ध्यान किया जाता है।
ओंकार ही इसकी आत्मा है... Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
अब हम प्रवेश करते हैं अक्षमाला के उन दिव्य अक्षरों की ओर, जहाँ प्रत्येक अक्ष ब्रह्मांड की एक गूढ़ शक्ति को धारण करता है।
प्रथम अक्ष पर प्रतिष्ठित हैं मृत्युञ्जय — जो सर्वव्यापक हैं, अमरता की ऊर्जा से युक्त हैं।
दूसरे अक्ष पर प्रतिष्ठा है ओमाङ्कार की — जो आकर्षण की शक्ति है, जो सर्वत्र व्याप्त है।
तीसरे अक्ष पर ओमिङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो पोषण देते हैं और अशांति को शांत करते हैं।
चौथे अक्ष में प्रतिष्ठा है ओमीङ्कार की — जो वाणी में मधुरता लाते हैं और मन को निर्मल करते हैं।
पाँचवें अक्ष में ओमुङ्कार विराजते हैं — जो समस्त बल प्रदान करते हैं और शक्ति का सार हैं।
छठे अक्ष पर ओमूङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो हर दुष्टता का उच्छाटन करते हैं, अत्यंत शक्तिशाली और कठोर हैं।
सातवें अक्ष में प्रतिष्ठा है ओमृङ्कार की — जो संक्षोभ उत्पन्न करते हैं और चंचलता में भी चेतना जगाते हैं।
आठवें अक्ष पर ओमॄङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जिनमें संमोहन की दिव्य शक्ति है और ओजस्विता का तेज है।
नौवें अक्ष पर ओम्लृङ्कार विराजते हैं — जो विद्वेष को समाप्त करते हैं और मोह की शक्ति से भरपूर हैं।
दसवें अक्ष में ओम्लॄङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो मोह उत्पन्न करते हैं और चेतना को आकर्षित करते हैं।
ग्यारहवें अक्ष में ओमेङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो सबको वश में करनेवाले हैं और शुद्ध सत्त्व से परिपूर्ण हैं।
बारहवें अक्ष पर ओमैङ्कार की प्रतिष्ठा है — जो सात्त्विक पुरुषों को भी वश में कर लेते हैं।
तेरहवें अक्ष पर ओमोङ्कार विराजते हैं — जो सम्पूर्ण वाङ्मय के स्वामी हैं, नित्य शुद्ध और दिव्य हैं।
चौदहवें अक्ष में ओमौङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो वाणी को नियंत्रित करने की अद्भुत शक्ति से युक्त हैं।
पंद्रहवें अक्ष पर ओमङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो गजराज जैसे शक्तिशाली जीवों को भी मोहित कर लेते हैं।
सोलहवें अक्ष पर ओमःकार विराजते हैं — जो मृत्यु को भी नष्ट कर देते हैं, रौद्र और तेजस्वी हैं।
सत्रहवें अक्ष पर ॐ कङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो समस्त विषों का नाश करते हैं और कल्याणकारी हैं।
अठारहवें अक्ष पर ॐ खङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो समस्त संसार को हिला देनेवाले व्यापक प्रभाव के स्वामी हैं।
उन्नीसवें अक्ष पर ॐ गङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो हर विघ्न को शांत करते हैं और महानतम शुभता प्रदान करते हैं।
बीसवें अक्ष में ॐ घङ्कार विराजते हैं — जो सौभाग्यदायक हैं और स्तम्भन की शक्ति से युक्त हैं।
इक्कीसवें अक्ष पर प्रतिष्ठित हैं ॐ ङकार — जो समस्त विषों का विनाश करनेवाले हैं, उग्र और प्रचंड शक्ति से युक्त।
बाईसवें अक्ष पर ॐ चङ्कार विराजते हैं — जो अभिचार जैसे काले क्रियाओं का नाश करते हैं, और अत्यंत क्रूर हैं।
तेईसवें अक्ष में प्रतिष्ठित हैं ॐ छङ्कार — जो भूतप्रेतों का नाश करते हैं, भयावह और रक्षक स्वरूप हैं।
चौबीसवें अक्ष पर ॐ जङ्कार का वास है — जो कृत्य, टोटके और तांत्रिक शक्तियों को नष्ट करते हैं, अजेय और प्रबल हैं।
पच्चीसवें अक्ष में ॐ झङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो सभी भूत शक्तियों को समाप्त करते हैं।
छब्बीसवें अक्ष पर विराजते हैं ॐ ञकार — जो मृत्यु को पराजित करते हैं और प्राणों को उन्नत करते हैं।
सत्ताईसवें अक्ष में प्रतिष्ठा है ॐ टङ्कार की — जो समस्त व्याधियों का नाश करते हैं और शुभ सौंदर्य प्रदान करते हैं।
अट्ठाईसवें अक्ष पर ॐ ठङ्कार विराजते हैं — जो चन्द्र के समान शीतल, शांत और सौंदर्यदायक हैं।
उनतीसवें अक्ष में ॐ डङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो गरुड़ के समान विषों का नाश करते हैं और प्रकाशमय शोभा से युक्त हैं।
तीसवें अक्ष पर ॐ ढङ्कार विराजते हैं — जो समस्त प्रकार की संपदाएं देनेवाले और अत्यंत शुभ हैं।
इकतीसवें अक्ष में प्रतिष्ठित हैं ॐ णङ्कार — जो सभी सिद्धियों के दाता हैं और मोह की शक्ति से परिपूर्ण हैं।
बत्तीसवें अक्ष पर ॐ तङ्कार विराजते हैं — जो धन, अन्न और वैभव की सम्पत्ति प्रदान करते हैं, प्रसन्नता के स्रोत हैं।
तैंतीसवें अक्ष में ॐ थङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो धर्म प्राप्ति में सहायक हैं, निर्मल और पावन हैं।
चौंतीसवें अक्ष पर ॐ दङ्कार विराजते हैं — जो पोषण और वृद्धि प्रदान करते हैं, प्रियदर्शी और सौम्य हैं।
पैंतीसवें अक्ष में प्रतिष्ठा है ॐ धङ्कार की — जो विष-ज्वर जैसे रोगों का नाश करते हैं और अपार ऊर्जा देते हैं।
छत्तीसवें अक्ष में ॐ नङ्कार विराजते हैं — जो भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करते हैं, शांतिप्रद और शांत हैं।
सैंतीसवें अक्ष पर ॐ पङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो विष और विघ्नों का नाश करते हैं और जीवन को भव्य बनाते हैं।
अड़तीसवें अक्ष में ॐ फङ्कार विराजते हैं — जो अणिमा, लघिमा जैसी सिद्धियाँ देते हैं और स्वयं प्रकाशरूप हैं।
उनतालीसवें अक्ष पर ॐ बङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो सभी दोषों को नष्ट करते हैं, शुभता और सौंदर्य से परिपूर्ण हैं।
चालीसवें अक्ष में ॐ भङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो भय को शांत करते हैं और भूतशक्तियों पर नियंत्रण रखते हैं।
इकतालीसवें अक्ष पर ॐ मङ्कार का वास है — जो शत्रु का मोह उत्पन्न करते हैं और विद्वेष को मिटाते हैं।
बयालीसवें अक्ष में ॐ यङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो सर्वव्यापक हैं और पावनता प्रदान करते हैं।
तैंतालीसवें अक्ष पर ॐ रङ्कार विराजते हैं — जो दाह, ताप और विषाद का विनाश करते हैं और गहन प्रभावकारी हैं।
चवालीसवें अक्ष पर ॐ लङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो विश्व का पोषण करते हैं और भासुर तेज से प्रकाशित हैं।
पैंतालीसवें अक्ष में ॐ वङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो सबका पोषण करते हैं, निर्मल और अमृतमय हैं।
छियालीसवें अक्ष में ॐ शङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो सभी फल देनेवाले, पवित्र और मन को प्रसन्न करनेवाले हैं।
सैंतालीसवें अक्ष पर ॐ षङ्कार विराजते हैं — जो धर्म, अर्थ, काम की प्राप्ति कराते हैं और शुद्ध धवल स्वरूप हैं।
अड़तालीसवें अक्ष में ॐ सङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो सबके मूल कारण हैं और सभी वर्णों के आधार हैं।
उनचासवें अक्ष पर ॐ हङ्कार विराजते हैं — जो सम्पूर्ण वाणी के स्वामी हैं, निर्मल और प्रकाशमय हैं।
पचासवें अक्ष में ॐ ळङ्कार प्रतिष्ठित हैं — जो समस्त शक्तियों के दाता हैं, प्रधान और प्रमुख हैं।
और अंत में — अक्षमाला के शिखर पर प्रतिष्ठित हैं ॐ क्षङ्कार — जो परा और अपरा तत्त्व के ज्ञापक हैं, परम प्रकाशस्वरूप हैं और शिखामणि की तरह सबसे ऊपर विराजमान हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
हे पृथ्वी पर प्रतिष्ठित समस्त देवों, आपको नमन है।
हे भगवन्तों, आप हमारी इस शोभायुक्त ज्ञानमयी अक्षमालिका की स्थापना में अनुमति दें।
हे पितरों, आप भी इस दिव्य कार्य के लिए अनुमोदन दें — यह ज्ञान, यह प्रकाश, सब आपकी कृपा से ही संभव है।
हे अन्तरिक्ष में स्थित समस्त देवों, आपको भी प्रणाम है।
हे दिव्य शक्ति सम्पन्न भगवन्तों, कृपया इस ज्ञानमयी अक्षमालिका को अपनी सहमति से आलोकित करें।
हे पितरों, आप भी इस पवित्रता को स्वीकारें। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
हे दिविलोक में स्थित देवों, आपको बारम्बार नमस्कार है।
हे भगवन्, आप इसकी शोभा बढ़ाएं। हे पितरों, इसे अपने आशीर्वाद से पूरित करें।
यह केवल माला नहीं, यह तो ज्ञान की मूर्तिमान अभिव्यक्ति है — अक्षररूपी साक्षात् देवी।
हे समस्त मन्त्रों और विद्याओं, आपको प्रणाम है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
आपकी शक्ति ही इस माला में प्रतिष्ठित होती है — आपके तेज से यह प्रकाशित होती है।
हे ब्रह्मा, विष्णु, और रुद्र — हे सगुण ब्रह्मस्वरूपों —
आपका वीर्य, आपकी शक्ति ही इस अक्षमालिका को चैतन्यमयी बनाता है। आपको नमन।
हे सांख्यादि तत्त्वों, आप विरोध को छोड़, समरसता में स्थित हों।
हे शैव, वैष्णव, शाक्त — आप सबको नमस्कार है।
आप सब इसे स्वीकारें, और हमें आशीर्वाद दें। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो प्राणवती शक्तियाँ मृत्यु के उपरांत भी विद्यमान रहती हैं,
उन सबको नमन है — कृपया इसे शुभता और मृदुता प्रदान करें।
अब साधक, सम्पूर्ण जगत की आत्मा को अनुभव करता है।
इस गहन भाव से, पूर्ववत् अक्षमालिका को फिर उत्पन्न करता है।
तत्पश्चात उसे समर्पित करता है — उच्चतम आदर और महोपहारों के साथ।
फिर सम्पूर्ण अक्षरों को आद्यंत स्पर्श करता है — जप करता है।
और तब वह पुनः माला को उठाता है,
दक्षिणावर्त प्रदक्षिणा कर उसे प्रणाम करता है।
नमस्ते भगवति, मन्त्र-मातृका अक्षमाले — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
तुम सबको वश में करनेवाली हो, नमस्ते।
तुम शेषों को स्थिर करनेवाली हो, नमस्ते।
तुम उच्चाटन करनेवाली हो, नमस्ते।
तुम विश्वमृत्यु की विनाशक, मृत्युञ्जयस्वरूपिणी हो —
सकल लोकों को प्रकाशित करनेवाली, रक्षक, उत्पत्तिकारिणी हो।
दिन को तुम प्रवाहित करती हो, रात्रि को तुम गतिशील करती हो।
नदी, देश, द्वीप, लोक — सबमें तुम भ्रमण करती हो।
तुम सदा-सर्वदा चमकती हो,
सभी हृदयों में निवास करती हो। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
तुम परारूपा हो, पश्यन्ती रूपा हो, मध्यमारूपा हो, वैखरीरूपा हो।
सर्व तत्त्वों की आत्मा, सभी विद्याओं की आत्मा, समस्त शक्तियों की आत्मा —
तुम समस्त देवों की आत्मा हो।
तुम्हें वसिष्ठ ऋषि ने पूजा, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
तुम्हारे सहारे विश्वामित्र ने तप किया।
तुम्हें बारंबार नमस्कार है।
जो इस अक्षमालिकोपनिषद् का प्रातःकाल अध्ययन करता है,
वह रात्रि में किए गए पापों से मुक्त हो जाता है।
जो सायं इसका पाठ करता है, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह दिन में हुए दोषों से मुक्त होता है।
जो प्रातः और सायं दोनों समय इसका प्रयोग करता है,
वह निष्पाप हो जाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
और जो इस अक्षमालिका के द्वारा मन्त्र का जाप करता है,
वह मन्त्र तुरंत फल देने वाला सिद्ध होता है।
इस प्रकार भगवान कार्तिकेय ने प्रजापति को उपदेश दिया — यही उपनिषद् है।
ईश्वर मुझे और इस ज्ञान को बोलनेवाले को सुरक्षित रखें।
मुझे भी, और वक्ता को भी — त्रिकाल में रक्षा करें। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
अब इस आकाशमालिका उपनिषद् के पवित्र यात्रा को समाप्त करते हुए,
हम यह याद रखें कि ये मंत्र केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि हमारे मानसिक और आत्मिक रूप से गहरे आयामों को खोलने की कुंजी हैं।
इन दिव्य ध्वनियों की ऊर्जा हमारे भीतर गूंज रही है, जो हमें परम शांति, ज्ञान और मुक्ति की ओर मार्गदर्शित करती है।
यह दिव्य ज्ञान का आशीर्वाद आप पर हमेशा बना रहे, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
और आप इस ज्ञान के प्रकाश को हमेशा अपने साथ रखते हुए आगे बढ़ें।
ॐ वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता मनो मे वाचि Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
प्रतिष्ठितमाविरावीर्म एधि ॥ वेदस्य म आणीस्थः
श्रुतं मे मा प्रहासीरनेनाधीतेनाहोरात्रा-
न्सन्दधाम्यृतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि ।
तन्मामवतु तद्वक्तारमवतु अवतु मामवतु
वक्तारमवतु वक्तारम् ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
॥ हरिः ॐ तत्सत् ॥
इति अक्षमालिकोपनिषद् समाप्तम्