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आरुणिकाख्योपनिषत्ख्यातसंन्यासिनोऽमलाः ।
यत्प्रबोधाद्यान्ति मुक्तिं तद्रामब्रह्म मे गतिः ॥
॥ ॐ आप्यायन्त्विति शान्तिः ॥
क्या आप जानते हैं कि त्याग का अर्थ केवल वस्त्र या परिवार से मुक्ति नहीं, बल्कि सम्पूर्ण अहंकार और बंधनों से मुक्ति है?
आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं आरुणिकोपनिषद् — एक गूढ़ उपनिषद् जो संन्यास के वास्तविक रहस्य को उद्घाटित करता है।
यह ज्ञान केवल शब्दों में नहीं, जीवन की गहराइयों में उतरता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
आरुणिक नामक यह उपनिषद् संन्यासियों का निर्मल पथ प्रकट करता है। यह वही ज्ञान है, जिसके प्रबोधन से मुक्तिलाभ होता है। यही रामब्रह्म मेरी परम गति है।
प्रजापति का पुत्र आरुणि, अपने पिता के लोक में पहुँचा और प्रश्न किया — हे भगवन्! मैं समस्त कर्मों का त्याग कैसे करूँ?
प्रजापति ने उत्तर दिया — हे वत्स! अपने पुत्रों, भ्राताओं, संबंधियों, शिखा, यज्ञोपवीत, यज्ञ, स्वाध्याय और समस्त लोकों को — भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्य तक और नीचे के तल, अतल, वितल, सुतल, रसातल, पाताल तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक — सबको त्याग दे।
दण्ड, कौपीन और वस्त्र को ही रख ले, शेष सबका परित्याग कर दे। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो गृहस्थ, ब्रह्मचारी या वानप्रस्थ है, वह यज्ञोपवीत को भूमि या जल में त्यागे।
सामान्य अग्नियों को उदर की अग्नि में समर्पित करे, गायत्री मन्त्र को अपने वाणी के अग्नि में प्रतिष्ठित करे।
यदि ब्रह्मचारी है, तो गृह, पात्र, पवित्र और लोकों का भी त्याग कर दे।
अब से वह अमन्त्रवत आचरण करे — बिना किसी विशेष विधि के, सरल और स्वाभाविक जीवन अपनाए।
औषधि की भाँति भोजन करे — जैसा मिले, उसी में संतुष्ट रहे। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
तीनों संध्याओं का स्नान करे और संधि को आत्मा में समाधि रूप में स्थापित करे।
सभी वेदों में से केवल आरण्यक और उपनिषदों का ही अध्ययन करे — केवल आत्मा की दिशा में केंद्रित होकर।
अब मैं स्वयं यह उद्घोष करता हूँ — मैं ब्रह्मसूत्र, त्रिवृत सूत्र का परित्याग करता हूँ। जो जानता है, वह भी ऐसा ही कहे — संन्यास मुझसे किया गया, संन्यास मुझसे किया गया, संन्यास मुझसे किया गया। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मैं अब सम्पूर्ण प्राणियों से अभय हूँ, और मुझसे ही सब कुछ प्रवृत्त होता है।
हे मित्र! तू इन्द्र का वज्र है, तू वृत्सुर का विनाशक है — मेरा रक्षक बन।
जो पाप मुझसे हुआ, वह दूर हो जाए — इस मंत्र से मैं दण्ड, कौपीन आदि को धारण करता हूँ, और औषधि की भाँति भोजन करता हूँ।
मैं ब्रह्मचर्य, अहिंसा, अपरिग्रह और सत्य का यत्नपूर्वक पालन करता हूँ — बार-बार रक्षण करता हूँ।
अब परमहंस परिव्राजकों का जीवन — वे भूमि पर ही बैठते और सोते हैं, उनका पात्र मिट्टी या लकड़ी का होता है।
काम, क्रोध, हर्ष, रोष, लोभ, मोह, दम्भ, अभिमान, इच्छा, ईर्ष्या, ममता, अहंकार — इन सबका पूर्ण त्याग करते हैं।
वर्षा के दिनों में एक ही स्थान पर रहते हैं, आठ महीने एकाकी जीवन बिताते हैं, शेष समय भी संयमित रहते हैं।
Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो ज्ञानी उपनयन संस्कार के बाद या उससे पहले भी इनका त्याग करता है — वह पिता, पुत्र, अग्नि, यज्ञोपवीत, कर्म, पत्नी — सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है।
जब भिक्षा के लिए गाँव में प्रवेश करता है, तो हाथ या पेट ही उसका पात्र होता है।
वह "ॐ हि, ॐ हि, ॐ हि" — इस मंत्र से अपनी उपनिषद् की प्रतिष्ठा करता है।
जो यह आरुणिक उपनिषद् जानता है, वह शूरवीर बनकर पत्तों, यज्ञोपवीत, मौंजी, और दण्ड को त्यागता है।
और वह दिव्य विष्णु के परम पद को सदा देखता है — जैसे आकाश में सूर्य।
ज्ञानी पुरुष जागरूक रहते हुए उस परम पद को प्रकाशित करते हैं — यही है विष्णु का परम स्थान।
यही है निर्वाण का उपदेश, यही है वेदों का सार — वेदानुशासन। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
॥ हरिः ॐ तत्सत् ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
॥ इति सामवेदीयारुणिकोपनिषत्समाप्ता ॥