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"जब सत्य को शब्दों की ज़रूरत नहीं होती, तब उपनिषद् जन्म लेते हैं।
जब मौन भी परम रहस्य को छिपा नहीं सकता, तब ब्रह्म स्वयं वाणी बन जाता है।
और जब कोई आत्मा — मनुष्यता की सीमाओं को चीरकर — दिव्यता के आलोक में डूबती है, तब वह 'श्रीअरविन्द' कहलाती है।
यह कोई साधारण ग्रंथ नहीं...
यह कोई शास्त्रों की पुनरावृत्ति नहीं...
यह आत्मा की आँखों से देखे गए ब्रह्म की अमर वाणी है।
‘श्रीअरविन्दोपनिषद्’ — एक ऐसा प्रकाश है जो न केवल प्रश्नों का उत्तर देता है, बल्कि प्रश्नकर्ता को ही भस्म कर देता है।
यह वह दर्शन है जो तुम्हें ब्रह्म की खोज नहीं — ब्रह्म होने की याद दिलाता है।
तो अब — वाणी को मौन बन जाने दो... Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
और हृदय को सुनने दो वह स्पंदन — जो आदि से अनंत तक, केवल एक ही सत्य को पुकारता है…
ओंकार ब्रह्म एक ही है, अद्वितीय है। वह न सत है, न असत — बल्कि सत-असत से परे है। तीनों कालों में वह धारण किए रहता है, और काल से भी परे है। इस ब्रह्म के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी इस संसार में है — सूक्ष्म हो या विशाल, महान हो या नगण्य — सब ब्रह्म ही है। यही ब्रह्म सत्य है, मिथ्या कुछ नहीं।
वही ब्रह्म परात्पर पुरुष है — तीनों कालों से परे, समस्त लोकों से परे, फिर भी समस्त लोकों में व्याप्त। वह न सत में सीमित है, न असत में। वह सच्चिदानन्दमय है, आदि-अंत रहित, सनातन, और वही भगवान है।
वह निर्गुण है, फिर भी गुणों को धारण करता है। सगुण होकर भी अनंत गुणों से युक्त है। वह न केवल निर्गुणता में स्थित है, न केवल सगुणता में — बल्कि इन दोनों से परे केवल वही है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह लोकों से परे है, परन्तु लोकों को धारण करता है। वह स्वयं लोक-स्वरूप भी है और लोकों में प्रवेश भी करता है। वह काल से परे है, परन्तु स्वयं काल रूप भी बन जाता है। वह एक होते हुए भी अनेक है, अरूप होते हुए भी रूपवान है — अपनी चिद्-शक्ति के माध्यम से वह विद्या और अविद्या दोनों से खेलता है।
वह न किसी का आधार है, न स्वयं आधारित है। न वह अनंत है, न सीमित; न अकेला है, न अनेक। न वह रूपरहित है, न रूपवान — केवल वही है।
ये सब नाम, ये एकता और बहुतता, ये अनंतता और सीमाबद्धता — सब कुछ चैतन्यमय ब्रह्म के ही प्रकाश में उस चिदात्मा में प्रकट होते हैं।
ओं तत्सत् — वह जो सत् और चित् है, वही सत्य और वही ब्रह्म है। यह समस्त जगत उसी चैतन्यस्वरूप में प्रकाशित होता है — यह सत्यमय भगवान का प्रकाश है।
जैसे शांत जल में सूर्य का एक प्रतिबिम्ब होता है और चंचल जल में अनेक — परंतु सत्य तो सूर्य ही है, उसका प्रतिबिम्ब भी सत्य ही है, उसका प्रकाश भी सत्य है — यह कोई स्वप्न नहीं, अपितु सत्य का ही एक विस्तार है। वैसे ही जैसे सूर्य के प्रकाश से यह सौर-जगत अपनी गति से भर जाता है — यह भी सत्य का ही ज्योतिर्मय प्रकट रूप है।
फिर जैसे सूर्य की ज्वालाओं में उसका रूप दीखता है — पर वह ज्वालामय स्वरूप स्वयं सूर्य नहीं है। फिर भी वही सूर्यत्व उस रूप को प्रकाशित करता है। यह प्रकाश किसी माया का भ्रम नहीं, अपितु सत्य का ही प्रकाश है। उसी प्रकार यह जगत भी ब्रह्म का सत्य प्रकाश है, कोई स्वप्न या माया नहीं। यह सब उसकी ही लीला है — आनंदमयी चिद्-शक्ति की अभिव्यक्ति। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यह लीला ही परम माया है, यह ही योग की महिमा है, और यही योगेश्वर कृष्ण का रहस्यमय चमत्कार है। यह आनंद की लीला है, जो तर्कातीत है, परब्रह्म की गति है।
यह सब जगत वास्तविक रूप में सत्य है — और केवल एक सीमित दृष्टि से असत्य प्रतीत होता है। मन की संतुष्टि, विज्ञान की भाषा में हम उसे असत्य कहते हैं — पर ब्रह्म में असत्य जैसा कुछ भी नहीं होता।
इस प्रकार, जो कुछ भी इस संसार में प्रकाशित होता है — वह ब्रह्म का ही आनंद है।
ओं तत्सत् — जो सत् है, चित् है, वही आनंद है। और जो कुछ निरानंद, दुःख या दुर्बलता जैसा प्रतीत होता है — वह भी उसी आनंद की एक छाया है, उसकी लीला है।
जो जीव है, वह भी आनंदमय ब्रह्म का ही एक रूप है — छिपा हुआ, लेकिन भगवान स्वरूप। यह जगत उस भगवान का भोग है — स्वयं उस आनंदमय ब्रह्म द्वारा रचित और भोगा गया। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यह दुःख जिसे हम अनुभव करते हैं — वास्तव में आनंदमयी सत्ता की एक भिन्न छाया है। आनंदमय ब्रह्म ही उसे भोगता है, आनंद के ही रूप में।
कौन निरानंद को भोगना चाहेगा? केवल वही, जो सर्वानंदस्वरूप है — वही निरानंद में भी प्रवेश कर सकता है। जो स्वयं दुर्बल हो, वह दुर्बलता सह नहीं सकता। शक्ति के बिना वह नष्ट हो जाएगा। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
कौन अज्ञान में प्रवेश करने का सामर्थ्य रखता है? केवल वही जो सर्वज्ञ है। अज्ञानी अंधकार में स्थायी नहीं हो सकता — ज्ञान के बिना वह नष्ट हो जाएगा।
अज्ञान, दुर्बलता, दुःख — ये सब उसी आनंद, शक्ति और ज्ञान की क्रीड़ाएँ हैं — जैसे वह स्वयं को छिपाकर स्वयं का ही अनुभव करता है।
जीव हँसता है — आनंद से। रोता है — फिर भी आनंद की ही अभिव्यक्ति है। वह तम में दीखता है, परंतु भीतर से आनंद ही फूटता है — यातनाओं में भी वही आनंद चेष्टित होता है।
पूर्ण भोग की कामना से वह तामस आनंद को भी अपनाता है — और आनंद को छिपाकर उसे अनुभव करता है।
इस समस्त भ्रांति की जड़ है — अज्ञान। "मैं दुर्बल हूँ", "मैं दुःखी हूँ", "मैं जानना चाहता हूँ", "प्रयास करूँगा", "तप करूँगा", "मृत्यु आएगी" — यह सब सीमित अहं का विचार है। "वह तुम हो, मैं नहीं", "जो तेरा लाभ, वह मेरा हानि", "तुझे मारकर मैं सुखी हो जाऊँगा" — यह सब मन की मिथ्या वृत्तियाँ हैं।
इसलिए अहंकार ही जड़ है — और अहंकार के समाप्त होने पर अज्ञान समाप्त होता है। अज्ञान से मुक्ति मिलते ही दुःख से भी मुक्ति मिलती है — और तब ज्ञानी को यह अनुभव होता है: "मैं ही आनंदमय हूँ। मैं ही वह हूँ। मैं ही एक हूँ, अनंत हूँ, सर्व हूँ।"
यही मुक्ति है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मुक्त व्यक्ति समस्त भोगों का अनुभव करता है — सभी प्रकार के आनंदों को भोगता है। सीमित का अनुभव करते हुए भी वह अनंत से वियुक्त नहीं होता। वह जन्म लेता हुआ प्रतीत होता है, पर जन्म नहीं लेता — न वह बंधन में पड़ता है, न उसका कोई जन्म होता है।
वह आत्मा में आत्मा को प्रकाशित करता है — "मैं स्वयं को आत्मा में प्रकट करता हूँ।" इस ज्ञान से मुक्त होकर वह क्रीड़ा करता है।
यह सम्पूर्ण सृष्टि उसकी लीला है — आनंद के लिए। इसलिए, हे आत्मन, आनंदमय बनो। भगवान के पुत्रों की भाँति, लीला करो। उस एक ही को भोग्य समझो — जो भगवान है — और समस्त वस्तुओं में उसी को अनुभव करो। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
हे आत्मजों! मैं अब तुम्हें वही आनंद बताऊँगा — जो स्वयं भगवान द्वारा उद्घाटित है। अंधकार से ढका वह आनंद, अब तुम्हारे भीतर प्रकाशित हो ।
यह वही दिव्य गूढ़ता है जो युगों से मनीषियों के हृदय में स्फुरित होती रही — आत्मा की पराकाष्ठा, ब्रह्म की लीला, और आनन्द की दिव्यता। श्रीअरविन्दोपनिषद् का यह रहस्योद्घाटन हमें उस चिरंतन सत्य की ओर ले जाता है, जहाँ "मैं" और "तू" का भेद विलीन हो जाता है, और केवल ब्रह्म ही शेष रह जाता है — आनन्दमय, चैतन्यमय, परमस्वरूप। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यह कोई दर्शन मात्र नहीं — यह एक आह्वान है…
अपने भीतर छिपे उस दिव्य को पहचानने का,
उस चिरप्रकाश को जगाने का,
उस आनन्द को सम्पूर्णता से जीने का।
तो चलो — स्वयं को जानो, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
स्वरूप को पहचानो,
और उस भगवत्सत्ता में विलीन हो जाओ,
जो न जन्मती है, न मरती — केवल आनन्द में खेलती है।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
हरि ॐ तत्सत्