Akshi Upanishad
अक्षि उपनिषद
अक्ष्युपनिषद
Akshi Upanishad
अक्षि उपनिषद
अक्ष्युपनिषद
Akshi Upanishad explores the mystical significance of the eyes as instruments of perception and divine awareness. Rooted in Vedantic and yogic wisdom, this sacred text reveals how true vision is not just physical, but the inner sight that perceives the Self beyond illusion. The Upanishad teaches that through refined perception, one can transcend the material world and realize the ultimate consciousness (Atman or Brahman). A profound guide to inner clarity, spiritual insight, and transcendental vision. Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यत्सप्तभूमिकाविद्यावेद्यानन्दकलेवरम् ।
विकलेवरकैवल्यं रामचन्द्रपदं भजे ॥
ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हरिः ॐ ॥
तब सांकृति ऋषि सूर्य लोक की ओर गए। उन्होंने आदित्य देव को प्रणाम किया और चाक्षुष्मती विद्या के द्वारा उनकी स्तुति की।
ॐ नमः — हे भगवन् सूर्य! आपको नमन, जो अक्षय तेज से युक्त हैं।
हे आकाश में विचरण करने वाले, आपको नमस्कार।
हे देवसेना के महान सेनानायक, आपको प्रणाम। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
हे तमोगुण स्वरूप, हे रजोगुण स्वरूप, हे सतोगुण स्वरूप — आप तीनों गुणों के आधार हैं, आपको नमन।
हे प्रभो, असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो।
आप ही वह हंस रूपी परमात्मा हैं, जो पवित्र हैं, अनेक रूपों में प्रकट होते हैं।
आप ही सम्पूर्ण विश्वरूप हैं, ज्ञानस्वरूप अग्नि हैं, स्वर्णमयी ज्योति से दीप्त हैं और तप्त तेजस्वरूप हैं।
आप सहस्रों किरणों से युक्त हैं, अनेकों रूपों में स्थित हैं, और समस्त प्राणियों के लिए प्रकट होते हैं — यही सूर्य हैं।
ॐ नमो भगवते — हे श्रीसूर्य, हे आदित्य, हे अक्षय तेजस्वी, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो अहोरात्र को वहन करते हैं, आपको बारंबार प्रणाम। स्वाहा।
इस प्रकार जब चाक्षुष्मती विद्या से श्रीसूर्य नारायण की स्तुति की गई,
तो वे प्रसन्न होकर बोले —
जो ब्राह्मण इस चाक्षुष्मती विद्या का नित्य अध्ययन करता है,
उसे नेत्ररोग कभी नहीं होता।
उसके वंश में कोई जन्म से अंधा नहीं होता।
और यदि वह इस विद्या को आठ ब्राह्मणों को सिखा देता है,
तो उसे विद्या की सिद्धि प्राप्त होती है।
जो इस ज्ञान को जानता है, वह निश्चय ही महान बनता है।
तब सांकृति ऋषि ने आदित्यदेव से प्रश्न किया — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
हे भगवन्! मुझे ब्रह्मविद्या बताइए।
आदित्यदेव बोले — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
हे सांकृति! सुनो, मैं तुम्हें वह तत्वज्ञान बताता हूँ जो अत्यंत दुर्लभ है।
जिसके केवल अनुभवमात्र से ही तुम जीवन में मुक्त हो जाओगे।
यह सम्पूर्ण जगत् वास्तव में एक ही है — अजन्मा, शांत, अनंत, अचल और अविनाशी।
जो इसको भूतों के सारभूत चैतन्यस्वरूप रूप में देखता है,
वह भीतर से पूर्ण शांत होता है और अपने भीतर ही परम सुख से स्थित रहता है।
सच्चा योग वह है, जो अव्याख्येय हो, शब्दातीत हो —
जहाँ चित्त का पूर्ण क्षय हो जाता है, और जो किसी कृत्रिम अभ्यास से नहीं आता।
ऐसे योगस्थ पुरुष को चाहिए कि अपने कर्तव्यों का निर्वाह करता रहे —
किन्तु उनके प्रति कोई आसक्ति या रस न रखे, या फिर उन्हें त्याग ही दे। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जिसके भीतर की वासनाएँ धीरे-धीरे क्षीण हो जाती हैं,
वह अंतर्मन में एक प्रकार की वैराग्य की स्थिति को प्राप्त करता है।
फिर वह बाह्य क्रियाओं में भी, उनकी सौंदर्यरूपता के बीच, प्रतिदिन आनंद से विचरण करता है।
जो सांसारिक, जड़ और स्थूल गतिविधियों में प्रवृत्त नहीं होता — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह उनमें सदैव संदेहशील रहता है।
वह कभी आडंबर नहीं करता, न मर्मस्थलों पर चोट करता है,
बल्कि पुण्यकर्मों का आश्रय लेकर अपने जीवन को पावन बनाता है।
वह व्यक्ति ऐसा होता है जो किसी को उद्वेग में नहीं डालता।
उसके कर्म मृदु होते हैं, कोमल होते हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह पाप से सदा डरता है और भोग की कोई अपेक्षा नहीं रखता।
उसकी वाणी स्नेह और प्रेम से भरी होती है —
वह मधुर, योग्य और अवसर के अनुकूल वचन ही बोलता है।
वह सज्जनों की सेवा मन से, कर्म से और वाणी से करता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
और वह सदा शास्त्रों का अध्ययन करता है, चाहे वह कहीं से भी उन्हें प्राप्त करे।
ऐसा व्यक्ति उस प्रथम अवस्था को प्राप्त करता है —
जिसे “भूमिका” कहा गया है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो भी संसार-सागर को पार करना चाहता है,
उसे ऐसे ही विचारशील और विवेकी बनना होता है।
जो इस पहली भूमिका को प्राप्त कर लेता है,
उसे “भूमिकावान” कहा गया है —
बाकी सब बस ‘आज्ञा का पालन करने वाले’ कहलाते हैं।
और जो इसके भी आगे बढ़ता है, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह “विचार” नामक अगली योगभूमि में प्रवेश करता है।
वह श्रुति, स्मृति, सदाचार, ध्यान और धार्मिक कर्तव्यों को समर्पित होता है।
वह श्रेष्ठ पंडितों की शरण लेता है — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो इनका सच्चा और गूढ़ अर्थ जानते हैं।
वह तत्वों का भेद जानता है,
क्या करना है और क्या नहीं करना — इसका निर्णय कर सकता है।
जैसे कोई गृहपति अपने घर का संचालन जानता है, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वैसे ही वह इस ज्ञान के क्षेत्र का स्वामी हो जाता है।
वह मद, अहंकार, ईर्ष्या, लोभ और मोह जैसी विकारपूर्ण अवस्थाओं को —
जिनसे वह पहले घिरा हुआ था — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
बाहरी स्तर पर भी ऐसे त्याग देता है जैसे कोई सर्प अपनी पुरानी केंचुली उतार देता है।
ऐसी परिपक्व बुद्धि, जब शास्त्र, गुरु और सज्जनों की सेवा में लगती है —
तब वह सम्पूर्ण रहस्यों को, पूर्णता के साथ, ठीक वैसे ही जान लेती है जैसे वे वास्तव में हैं।
इसके बाद वह तीसरी योगभूमि — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
“असंसर्ग” नामक अवस्था में प्रवेश करता है,
जहाँ वह बाह्य संसर्गों से पूर्णतः मुक्त हो जाता है।
और फिर वह उस निर्मल पुष्प-शय्या पर गिरता है —
जैसे किसी प्रियतम का मन मोहक विश्राम। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जब किसी साधक की बुद्धि शास्त्रवाक्यों के वास्तविक अर्थ में स्थिर हो जाती है,
और वह तपस्वियों के आश्रम में विश्राम करता हुआ
आध्यात्मिक संवाद के क्रम का अनुसरण करता है,
तो वह शिला पर बैठकर या आसन पर टिककर
अपने जीवनकाल को धीरे-धीरे तपस्या में क्षीण करता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह वनों और एकांत प्राकृतिक स्थानों में विचरण करता है,
जिससे उसका चित्त शांति और शोभा से भर उठता है।
वह निष्काम सुख में रमकर, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
संपूर्ण जीवन को नीति और सयंम से व्यतीत करता है।
शास्त्रों के अभ्यास और पुण्य कर्मों की निरंतरता के कारण,
उसके भीतर सत्य की दृष्टि प्रकट होती है — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
और वह वस्तु को जैसे वह है, वैसा ही देख पाता है।
तीसरी योगभूमि को प्राप्त कर लेने पर वह जागरूक हो जाता है —
और आत्मानुभूति को प्रत्यक्ष अनुभव करता है।
अब उसके सामने संसर्ग के दो प्रकार प्रकट होते हैं —
इन दोनों का भेद मैं तुम्हें बताता हूँ। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
असंसर्ग दो प्रकार का होता है —
एक सामान्य, और दूसरा श्रेष्ठ।
जब कोई यह जान लेता है —
कि ‘मैं न कर्ता हूँ, न भोगता, न बाधित होता हूँ, न किसी को बाधित करता हूँ’ —
तो यह सामान्य असंगता कहलाती है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह जानता है कि जो कुछ भी हो रहा है —
वह पूर्वकर्मों के कारण है या ईश्वर की इच्छा से है।
तो फिर उसमें मेरी क्या भूमिका है?
अगर सुख है या दुःख है — तो वह किसके कारण? उसमें मेरा क्या कर्तृत्व?
भोग हों या अभाव, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
समृद्धि हो या गहरी विपत्ति,
मिलन हों या वियोग,
शारीरिक रोग हों या मानसिक कष्ट —
ये सब केवल बीतने के लिए हैं।
काल निरंतर परिवर्तनशील है —
हर वस्तु को क्षण-क्षण में बदलता जा रहा है।
इन सब पर जो श्रद्धा नहीं रखता — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
और जिनमें मन नहीं रमाता —
उसे ही सामान्य असंग की अवस्था प्राप्त होती है।
इस क्रमिक योगमार्ग और महापुरुषों की संगति से
वह इस भाव को दृढ़ता से धारण करता है —
कि ‘मैं कर्ता नहीं हूँ, ईश्वर ही कर्ता है, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
या फिर सब कुछ पूर्वकर्मों द्वारा निर्धारित है।’
जब साधक यह विवेक कर लेता है कि “यह शब्द, अर्थ, और भाव सब मुझसे दूर हैं” —
और मौन, स्थिरता और शांति में स्थित हो जाता है —
तो उसे श्रेष्ठ असंगता की अवस्था कहा जाता है।
तब भीतर एक संतोष और मधुर आनंद की लहर उठती है —
यह पहली योगभूमि है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यह भूमि जैसे भीतर अमृत की एक छोटी सी कली प्रस्फुटित कर देती है।
यह अवस्था भीतर की पूर्ण निर्मलता का संकेत है —
यह संन्यास की जन्मभूमि है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यहां से साधक क्रमशः दूसरी और तीसरी भूमियों को सहज ही प्राप्त कर सकता है।
पर तीसरी भूमि ही सर्वश्रेष्ठ है —
जहाँ साधक संकल्प और कल्पनाओं को पूर्णतः त्याग देता है।
तीनों भूमियों के अभ्यास से
जब अज्ञान का क्षय हो जाता है — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
तब साधक हर वस्तु को समभाव से देखने लगता है —
और चौथी भूमि में प्रवेश करता है।
जब अद्वैत में स्थिरता आती है,
और द्वैत का पूरी तरह प्रशमन हो जाता है — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
तब यह जगत उसे स्वप्न के समान प्रतीत होता है —
और वह चौथी भूमि में स्थित हो जाता है।
तीनों भूमियाँ 'जाग्रत' के समान हैं,
चौथी भूमि 'स्वप्न' के तुल्य मानी जाती है।
जब चित्त शरद् ऋतु के स्वच्छ आकाश-से निर्मल हो जाता है,
और सब विचार उसमें लय हो जाते हैं — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
तब केवल सात्त्विक शुद्धता ही बचती है —
यह पाँचवीं भूमि है।
इस अवस्था में चित्त पूरी तरह विलीन हो जाता है —
इसलिए जगत की कोई कल्पना नहीं उठती।
यह 'सुषुप्त पद' कहलाती है — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जहाँ कोई विशेषता शेष नहीं रहती,
और केवल अद्वैत का अनुभव होता है।
द्वैत के समस्त प्रतिबिम्ब गल जाते हैं,
और साधक पूर्ण आंतरिक उल्लास और आत्मज्ञान से भर उठता है —
वह जागृत होते हुए भी
सुषुप्त अवस्था में स्थित रहता है —
यह पाँचवीं भूमि है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह बाहर की वृत्तियों को जानता है,
पर भीतर पूरी तरह अंतर्मुख होता है।
यह स्थिति बाहर से देखने पर Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
किसी गहन निद्रालु की भाँति प्रतीत होती है।
इस अवस्था में निरंतर अभ्यास करते हुए —
साधक छठी भूमि में प्रविष्ट होता है,
जिसे 'तुर्य' कहा गया है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जहाँ न सत् का बोध होता है, न असत् का —
न “मैं” रहता हूँ, न अहंता का कोई भाव।
केवल विचाररहित शुद्ध अस्तित्व शेष रह जाता है —
जो अद्वैत में स्थित और सर्वथा निर्भय होता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह सभी गांठों से मुक्त हो जाता है,
संदेह शांत हो जाते हैं,
और वह जीवन्मुक्त के रूप में प्रकाशित होता है —
जो निर्वाण में न होते हुए भी Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
एक सजीव दीपक की भाँति चमकता है।
जब वह छठी भूमि में स्थिर हो जाता है —
तो अगले चरण में Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
सप्तमी भूमि को प्राप्त करता है।
सप्तवीं योगभूमि ही विदेहमुक्ति की भूमि है —
यह शब्दों की पहुँच से परे है,
पूर्ण शांति की सीमारेखा है — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जहाँ सभी भूमियाँ समाप्त हो जाती हैं।
यह वह स्थिति है जहाँ साधक
लोक-व्यवहार को त्याग देता है, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
शरीर के साथ अपना तादात्म्य छोड़ देता है,
यहाँ तक कि शास्त्रों का सहारा भी त्याग देता है —
और स्वयं के साक्षात् अनुभव में रम जाता है।
अब वह जानता है कि सम्पूर्ण जगत्, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
प्राज्ञ और अन्य अवस्थाएँ —
सभी केवल ओंकार की ध्वनि में स्थित हैं।
‘ओं’ की वाणी और अर्थ के बीच
कोई भेद नहीं है — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यह अनुभव इंद्रियों से परे है।
अकार में है यह स्थूल विश्व,
उकार में है स्वप्नवत् तैजस सत्ता,
मकार में है गहन प्राज्ञ अवस्था —
इन तीनों को क्रमशः दृष्टा बनकर पहचानो।
लेकिन यह केवल बौद्धिक विचार नहीं —
अपनी चेतना में, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा करो —
और फिर इन सबको चिदात्मा में विलीन करो।
वह चिदात्मा — जो सदा शुद्ध है,
बुद्ध है, मुक्त है, अद्वितीय है,
परमानन्दमय है — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वही ‘ओं’ है, वही वासुदेव है, वही "मैं" हूँ।
इस संसार के आदि, मध्य और अंत —
सभी में दुःख ही है।
इसलिए, हे निर्दोष साधक! Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
इस संपूर्ण दुःखमय भ्रम को त्याग कर
तत्त्व में स्थित हो जा।
जहाँ अविद्या का अंधकार पार हो चुका है,
जहाँ कोई भी दृश्य शेष नहीं —
वहाँ केवल आनंद है, निर्मलता है,
और वह जो मन और वाणी की पहुँच से बाहर है।
अब केवल यह भाव दृढ़ करो — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
"मैं हूँ ब्रह्म" —
जो साक्षात् प्रज्ञानघन, शुद्ध आनंदस्वरूप है।
इस प्रकार यह अक्षमालिकोपनिषद् समाप्त होती है,
जो आत्मा की सात भूमियों के माध्यम से Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जीवन्मुक्ति और विदेहमुक्ति की परम यात्रा को प्रकट करती है।
इस उपनिषद का गूढ़ संदेश यह है कि आत्मा के अद्वितीय सत्य को जानने के बाद,
हम अपने भीतर के ब्रह्म को पहचानकर,
सभी भेदों से मुक्त होकर सच्ची शांति और आनंद की प्राप्ति कर सकते हैं।
यह ज्ञान केवल हमारे जीवन को नहीं बदलता, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
बल्कि हमें आत्मा की वास्तविकता और ईश्वर के साथ एकात्मता का अनुभव कराता है।
आध्यात्मिक साधना की इस यात्रा में,
जो व्यक्ति सच्चे मन से इस मार्ग पर चलता है,
वह संसार के भ्रम और बंधनों से मुक्त होकर परम सत्य की ओर बढ़ता है।
ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् ॥
॥ इत्यलक्ष्युपनिषत् ॥