Amrit Bindu Upanishad
अमृतबिन्दु उपनिषद
अमृत बिन्दु उपनिषद
Amrit Bindu Upanishad
अमृतबिन्दु उपनिषद
अमृत बिन्दु उपनिषद
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ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हरिः ॐ ॥
आओ, इस ब्रह्मविद्या की पवित्र यात्रा में हम एक चित्त होकर अग्रसर हों —
एक-दूसरे की छाया बनें, परस्पर तेजस्विता में वृद्धि करें।
हमारा चिन्तन तेजोमय हो, और हमारे मध्य कोई मतभेद, कोई विषमता न रहे।
श्लोक 1 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मन दो प्रकार का होता है — शुद्ध और अशुद्ध। जो कामनाओं और कल्पनाओं में फँसा रहता है, वह अशुद्ध मन है। और जो इनसे मुक्त हो गया है, वह शुद्ध मन कहलाता है।
यहाँ 'मन' आत्मा की यात्रा का केंद्रबिंदु बन जाता है। यह न तो पूर्णतः मित्र है, न शत्रु — वह जैसा हो, वैसा ही परिणाम देता है। कामनाओं का भार मन को अशुद्ध करता है, जबकि उनकी निवृत्ति उसे शुद्ध कर देती है।
श्लोक 2 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मनुष्य के बंधन और मोक्ष — दोनों का मूल कारण यही मन है। जब यह विषयों में आसक्त होता है, तो बंधन का कारण बनता है। जब यह विषयों से विरक्त हो जाता है, तो यही मन मोक्ष का द्वार खोलता है।
मन की दशा ही आत्मा की दिशा तय करती है। यह वह द्वार है जो नरक में भी ले जाता है और ब्रह्म के अमृत में भी डुबो सकता है।
श्लोक 3 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
क्योंकि विषयों से रहित मन ही मुक्त माना गया है, इसलिए जो मुक्ति चाहता है, उसे अपने मन को सदा निर्विषय बनाना चाहिए।
यह एक स्पष्ट आह्वान है — मुमुक्षु अर्थात मुक्ति के इच्छुक को विषय-वासना से परे मन बनाना ही होगा। वही प्रारंभिक साधना है।
श्लोक 4 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जब मन विषयों की आसक्ति से मुक्त होकर हृदय में स्थिर होता है, और आत्मा के स्वरूप को अनुभव करता है — तभी वह परमपद को प्राप्त होता है।
हृदय यहाँ केवल शरीर का अंग नहीं, वह बोध का केंद्र है। जब मन वहाँ जाकर शांत होता है, तब आत्मा की झलक मिलती है।
श्लोक 5 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मन को तब तक रोकना चाहिए, जब तक यह पूर्णतः हृदय में समाहित होकर शांत न हो जाए। यही वास्तविक ज्ञान है, यही ध्यान है। बाकी सब केवल शब्दों का विस्तार है।
इस श्लोक में उपनिषद् ने ज्ञान, ध्यान और तर्क की सीमाओं को पार कर, एकमात्र ध्यानस्थ मन को ही सार बताया है।
श्लोक 6 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
ब्रह्म को न तो सामान्य चित्त से जाना जा सकता है, न ही अचिन्त्य रहस्य मानकर छोड़ देना चाहिए। वह चिंतन योग्य है — पर पक्षपात और कल्पनाओं से रहित चिंतन के माध्यम से।
यहाँ ब्रह्म का साक्षात्कार एक ऐसी प्रक्रिया है, जो न केवल तर्क से, बल्कि निष्पक्ष गहन अनुभव से होती है।
श्लोक 7 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
स्वर में योग का अभ्यास करो, और स्वर से रहित उस परम सत्य का चिन्तन करो। जो अव्यक्त है, वही सबसे गहन अनुभूति बन जाता है।
यहाँ स्वर यानी ध्वनि और मौन — दोनों का महत्व है। अनुभव की दिशा वहीं जाती है, जहाँ स्वर भी मौन हो जाता है।
श्लोक 8 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह ब्रह्म — जिसमें कोई भेद नहीं, कोई विकल्प नहीं, कोई कलुष नहीं — वही अंतिम सत्य है। जब साधक यह जान लेता है कि ‘मैं वही ब्रह्म हूँ’, तो वह निश्चय ही ब्रह्मरूप हो जाता है।
यह अद्वैत की उद्घोषणा है — केवल जानना नहीं, उस जानने में स्वयं ब्रह्म बन जाना।
श्लोक 9 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो ब्रह्म है — वह निर्विकल्प, अनंत, कारण और दृष्टांत से रहित, अप्रमेय और अनादि है। जो इसे जान लेता है, वह मुक्त हो जाता है।
इस श्लोक में उस अनुभव की महिमा है, जो किसी प्रमाण या तुलना की सीमाओं से परे है।
श्लोक 10 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
न कोई रोक है, न उत्पत्ति। न कोई बंधन है, न साधक। न कोई मुक्त होने की इच्छा करता है, न कोई वास्तव में मुक्त है। यही परम सत्य है।
यह श्लोक तर्क की सभी सीमाओं को तोड़ देता है — जहाँ सब कुछ मिथ्या हो जाता है, और केवल ब्रह्म ही शेष रहता है।
श्लोक 11 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
सभी अवस्थाओं — जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति — में केवल एक ही आत्मा है। जो उस त्रिकालातीत आत्मा को जान लेता है, उसे फिर जन्म नहीं लेना पड़ता।
यह आत्मा उस 'मैं' से परे है जो केवल शरीर के अनुभवों से बंधा होता है। यह अनुभव जन्म-मृत्यु के चक्र को समाप्त कर देता है।
श्लोक 12 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
सभी जीवों में केवल एक ही आत्मा स्थित है — वह एक ही सत्ता हर देह में व्याप्त है। पर वह एक होकर भी अनेक रूपों में प्रकट होती है, जैसे एक ही चंद्रमा अनेक जलपात्रों में प्रतिबिंबित होता है।
यह दृष्टि अद्वैत की परम गहराई से उद्भूत है — जहाँ विविधता में भी एकता की झलक दिखाई देती है। आत्मा अनेक शरीरों में भासती है, पर वास्तव में वह सदा एक ही है।
श्लोक 13 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जिस प्रकार एक घड़े में बंद आकाश को कहीं ले जाएँ, तो वास्तव में केवल घड़ा ही चलता है — आकाश नहीं। वैसे ही, यह जीव आत्मा के रूप में शरीर में प्रतीत होता है, पर वास्तव में वह आकाश के समान अचल और सर्वत्र है।
यह श्लोक देह और आत्मा के अंतर को अत्यंत सुंदर रूपक से दर्शाता है। आत्मा न कभी गति करती है, न बदलती है — वह सदा सर्वत्र व्याप्त है।
श्लोक 14 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
घड़े की तरह देह बार-बार टूटती है, बदलती है। पर आत्मा इन भेदों को न जानती है, न स्वीकार करती है। वह सदा जानती है, सदा एकरस है।
यहाँ आत्मा की नित्यता और देह की अस्थिरता का गूढ़ बोध कराया गया है। आत्मा किसी भी परिवर्तन से विचलित नहीं होती।
श्लोक 15 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जब आत्मा ध्वनि और शब्दों की माया से आच्छादित हो जाती है, तब वह अज्ञान के अंधकार में खो जाती है। पर जब यह तमस टूटता है, तब वही एकत्व का प्रकाश दीखता है — वह एक ही ब्रह्म सबमें दिखने लगता है।
यह श्लोक आध्यात्मिक अंधकार और प्रकाश के द्वंद्व को उजागर करता है। शब्द यहाँ भ्रम है, मौन ही सच्चा अनुभव है।
श्लोक 16 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
परब्रह्म शब्द और ध्वनि से परे है, पर उसी में अक्षर रूप में ब्रह्म की छाया भी है। जब वह अक्षर रूप समाप्त हो जाता है, तब जो शेष रहता है — वह ही शुद्ध ब्रह्म है।
यहाँ संकेत है — ओंकार या शब्द ब्रह्म की ओर ले जाता है, पर अन्त में उसे भी छोड़कर मौन में उतरना होता है।
श्लोक 17 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
दो प्रकार की विद्याएँ जानने योग्य हैं — एक है शब्दब्रह्म, और दूसरी है परब्रह्म। जो शब्दब्रह्म में पूर्णतया निपुण होता है, वही परब्रह्म को प्राप्त कर सकता है।
यहाँ शास्त्र और अनुभव दोनों की आवश्यकता कही गई है। केवल शास्त्र काफी नहीं, पर शास्त्र मार्गदर्शक अवश्य हैं।
श्लोक 18 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो मेधावी है और ज्ञान-विज्ञान में लीन है, वह शास्त्रों को धान्य से भूसी की तरह अलग कर देता है। अर्थ के लिए वह केवल सार लेता है, बाकी छोड़ देता है।
यह श्लोक स्पष्ट करता है कि केवल ग्रंथों को रटने से ज्ञान नहीं आता। विवेकपूर्ण साधक वही है जो सार ग्रहण कर शेष त्याग दे।
श्लोक 19 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
गायों के रंग भले ही अनेक हों, पर उनके दूध का रंग एक होता है। ज्ञानी व्यक्ति ठीक उसी प्रकार आत्मज्ञान को देखता है, जैसे लिंग की विविधता में एकरूपता का अनुभव करता है।
यहाँ आत्मा की समानता को विभिन्न शरीरों और रूपों में देखते हुए, एकत्व का बोध कराया गया है।
श्लोक 20 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जिस प्रकार घी दूध में छिपा होता है, उसी तरह आत्मज्ञान भी प्रत्येक जीव में अंतर्निहित है। साधक को चाहिए कि वह अपने मनरूपी मथनी से उस ज्ञान को मंथन करे।
यह एक अत्यंत सुंदर और प्रेरणादायी उपमा है। आत्मा कहीं बाहर नहीं — भीतर छिपा वह अमृत है, जो साधना से प्रकट होता है।
श्लोक 21 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
ज्ञान के नेत्रों को जागृत कर, उस परम ब्रह्म को अग्नि की तरह खींचो। वह निश्चल है, निराकारी है, शांत है — और यही है वह ब्रह्म जिसे जानकर कहा जाता है — ‘मैं वही हूँ।’
यह आत्मबोध का चरम है — जहाँ साधक ब्रह्म को केवल जानता नहीं, बल्कि स्वयं उसमें विलीन हो जाता है।
श्लोक 22 Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो समस्त जीवों में व्याप्त है, और प्रत्येक में वास करता है — वही वासुदेव मैं हूँ। वह जो सबको आशीर्वाद देता है, सबके कल्याण का कारण है — वही मेरा स्वरूप है।
यह अंतिम उद्घोषणा केवल एक आत्मज्ञान नहीं, बल्कि ब्रह्म की सर्वत्र उपस्थिति का स्वीकार है। साधक जब वहाँ पहुँचता है, तब वह अपने ‘मैं’ को ब्रह्म के ‘मैं’ में विलीन कर देता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
अमृतबिन्दु उपनिषद् केवल शब्दों का संग्रह नहीं, आत्मा की एक जीवंत धारा है। यह हमें मन की सूक्ष्मता से लेकर ब्रह्म की व्यापकता तक ले जाती है। यह उपनिषद् बताता है कि मुक्ति बाहर नहीं — विषयों से विरक्त, निर्विकल्प, मौन में स्थिर मन ही मुक्ति का द्वार है।
अब समय है — उस मौन में उतरने का, जहाँ अनुभव स्वयं बोलते हैं। भीतर उस अमृत का स्वाद लेने का, जो सदा से हमारे भीतर प्रतीक्षा कर रहा है।
ब्रह्म से ब्रह्म की ओर — यही है हमारी यात्रा।
ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हरिः ॐ ॥
॥ इति कृष्ण यजुर्वेदेऽमृतबिन्दूपनिषत् समाप्ता ॥