Utathya Gita
उतथ्यगीता
उतथ्यगीता
Utathya Gita, Lost Hindu Wisdom: Revealing Ancient Secrets from Sacred Scriptures. This profound discourse, delivered by Sage Utathya, explores the timeless principles of Dharma, Detachment, and Spiritual Discipline, guiding seekers toward Self-Realization and Enlightened Living. Utathya Gita unveils the hidden mysteries of cosmic order (Rta), ethical conduct, and the importance of righteous living. Its teachings, deeply rooted in Sanatan Dharma, empower aspirants to transcend worldly illusions, cultivate inner purity, and align with the Divine Truth, ultimately leading to Moksha (Liberation). 🕉️✨
उतथ्यगीता: क्षेमेन्द्रकृत भारतमंजर्यां
उतथ्य गीता राजा मान्धाता और महर्षि उतथ्य के बीच का संवाद है, जिसमें धर्म, नीति, आत्मज्ञान और मोक्ष का उपदेश दिया गया है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
प्राचीन काल में, जब राजा मान्धाता ने पृथ्वी पर अपना शासन स्थापित किया, तब महर्षि उतथ्य ने उन्हें एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपदेश दिया। यह उपदेश न केवल एक राजा के लिए, बल्कि प्रत्येक शासक और समाज के सभी लोगों के लिए उपयोगी है। इसमें न्याय, प्रशासन, प्रजा की रक्षा और सच्चे नेतृत्व के गुणों पर प्रकाश डाला गया है।
महर्षि उतथ्य का उपदेश:
इसलिए, राजा को शासन में योग्य निरीक्षकों की नियुक्ति करनी चाहिए, जो राज्य की भलाई के लिए ईमानदारी और निष्ठा से कार्य करें। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो अधिकारी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करेंगे, जिससे शासन में अराजकता फैल जाएगी और प्रजा का शोषण होने लगेगा। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
एक सौ सेवकों का एक निरीक्षक होना चाहिए, और एक हजार सेवकों के लिए एक अध्यक्ष होना चाहिए, जो राजा को सभी मामलों की सूचना दे।
यदि योग्य एवं विवेकी अधिकारी नियुक्त नहीं किए जाते, तो प्रशासनिक अधिकारी गाँव, नगर और पूरे राष्ट्र को हानि पहुँचाने लगते हैं। जिस प्रकार मल से दूषित पदार्थों को साफ करने के लिए तीव्र अग्नि की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार प्रशासन में भी कठोर अनुशासन आवश्यक है।
जो अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, जिनकी नीति विकृत है, और जो धोखाधड़ी के माध्यम से शासन को हानि पहुँचाते हैं, उनके दुष्कर्मों को उजागर करने में कौन सक्षम होगा?
उनकी लूटमार की प्रवृत्ति के कारण नगर और राज्य संकट में पड़ जाते हैं। ऐसे अधिकारी अपनी कपटपूर्ण वाणी से जनता को भ्रमित करते हैं और शासन व्यवस्था को बिगाड़ देते हैं।
जो पृथ्वी को इस प्रकार संकट में डालते हैं, राजा को चाहिए कि वह उचित अनुशासन लागू कर ऐसे दुष्टों से रक्षा करे। अन्यथा, वे अपने कर्मों के कारण अंततः नारकीय यातनाओं को भोगने के लिए विवश होंगे।
राजा यौवनाश्व को पहले मुनि उतथ्य ने उपदेश दिया था कि वह अपने राज्य की रक्षा के लिए भ्रष्टाचार को समाप्त करे और अनुशासन स्थापित करे।
राजा को अनाथों, दुर्बलों और दीन-दुखियों की रक्षा करनी चाहिए और उनकी देखभाल करनी चाहिए। यदि राजा गरीबों की पुकार को अनसुना कर देता है, तो उसकी समृद्धि नष्ट हो जाती है।
राजा का धन भी अनर्थ का कारण बन सकता है यदि वह अपनी प्रजा पर अत्याचार करता है। जिस प्रकार एक लता कुल्हाड़ी की चोट सहन नहीं कर सकती, उसी प्रकार जनता की निंदा और शोषण को सहकर भी समृद्धि नहीं टिक सकती।
एक आदर्श राजा वही होता है जो उदार, शिष्ट, वीर, कृतज्ञ, सत्यवादी और कुशाग्रबुद्धि हो। प्रजा की सेवा और धर्म पालन से ही वह महान बनता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
मुनि उतथ्य के इन उपदेशों को सुनकर राजा मान्धाता ने धर्मानुसार शासन किया और ऐसा यशस्वी बना मानो अमर ही हो गया हो।
महर्षि उतथ्य के इन उपदेशों से यह स्पष्ट होता है कि राजा का धर्म केवल शासन करना नहीं, बल्कि न्याय, सत्य और करुणा के साथ प्रजा की रक्षा करना है। यदि राजा धर्म और नीति के अनुसार कार्य करता है, तो राज्य में शांति और समृद्धि बनी रहती है। यह उपदेश आज के युग में भी शासन-प्रशासन से जुड़े व्यक्तियों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना प्राचीन काल में था।
उतथ्य गीता की दिव्य शिक्षाएँ:
शासन धर्म: राजा को प्रजा के हित में योग्य, निष्ठावान और धर्मपरायण निरीक्षकों को नियुक्त करना चाहिए, जो राज्य की भलाई के लिए कार्य करें और अन्याय का नाश करें। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
अधिकारियों का नियंत्रण: यदि अधिकारी अनियंत्रित रहेंगे और उन पर उचित दृष्टि नहीं रखी जाएगी, तो वे अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर प्रजा का शोषण करेंगे और राज्य को क्षीण कर देंगे।
निर्बलों की रक्षा: अनाथ, दीन-हीन, दुर्बल और पीड़ितों की रक्षा करना ही सच्चे राजधर्म का मूल है, क्योंकि प्रजा की पुकार से ही राजा की समृद्धि और यश टिके रहते हैं।
अन्याय का परिणाम: अन्यायपूर्ण शासन केवल धन और सत्ता को ही नहीं, बल्कि राज्य की आत्मा को भी नष्ट कर देता है, जिससे राजा की प्रतिष्ठा और कुल की कीर्ति मिट जाती है।
शासन में विवेक: आदर्श राजा वही होता है जो सत्यनिष्ठ, उदार, पराक्रमी, कृतज्ञ, धर्मपरायण और न्याययुक्त हो, क्योंकि ऐसा राजा ही लोक में पूज्य होता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
काल का प्रभाव: समय चक्र अनवरत गति से चलता रहता है; जो राजा समय की महत्ता को समझकर धर्मपूर्वक शासन करता है, उसका यश अमर रहता है और वह चिरस्थायी कीर्ति प्राप्त करता है।
संपत्ति और शक्ति का क्षय: अन्यायपूर्ण धन, अत्याचारी शासन और प्रजा के आंसुओं से अर्जित वैभव शीघ्र ही नष्ट हो जाता है, क्योंकि अधर्म के आधार पर खड़ा राज्य अधिक समय तक नहीं टिकता।
राजा का उत्तरदायित्व: राजा केवल शासन करने वाला नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक, संरक्षक और प्रजा के सुख-दुःख का सहभागी होता है। उसका कर्तव्य केवल राज्य का विस्तार करना नहीं, बल्कि धर्म और न्याय की स्थापना करना भी है।
इस प्रकार क्षेमेन्द्रकृत भारतमंजर्या में वर्णित "उतथ्यगीता" समाप्त हुई।
(शांति पर्व में राजधर्म विषयक श्लोक)