Mahabharat Uttathya Gita, Secrets of Rajdharma Unveiling the Sacred Path of Vedic Justice. Delivered by Sage Utathya to guide kings and rulers, this divine discourse reveals the principles of Rajdharma (righteous governance), emphasizing justice, ethics, and moral integrity in leadership. Uttathya Gita highlights the importance of protecting Dharma, ensuring social harmony, and upholding truth in the kingdom. Its timeless teachings, rooted in Sanatan Dharma, inspire leaders to govern with wisdom, compassion, and fairness, leading society toward peace, prosperity, and spiritual growth. 🕉️✨
अंगिरा के दिव्य वंश में उत्पन्न, वेदों के मर्मज्ञ एवं ब्रह्मविद्या में निपुण महर्षि उतथ्य ने यौवनाश्व के प्रतापी पुत्र, महाराज मान्धाता को क्षात्र धर्म का गूढ़ उपदेश प्रदान किया। हे धर्मराज युधिष्ठिर! जिस प्रकार उतथ्य ऋषि ने राजा मान्धाता को राजधर्म के रहस्य समझाए, उसी प्रकार मैं तुम्हें इस परम ज्ञान का विस्तारपूर्वक वर्णन करूँगा। सुनो, कि जब मेघ अपने समय पर वर्षा करता है और राजा धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करता है, तभी यह पृथ्वी संतुलित और समृद्ध रहती है। जो राजा प्रजा की रक्षा में सजग रहता है, वही न केवल इस लोक में सुख और यश को प्राप्त करता है, अपितु परलोक में भी उत्तम गति को प्राप्त करता है। अतः क्षात्र धर्म का यह दिव्य उपदेश श्रवण करो और धर्ममार्ग में अडिग रहो!
राजा का जन्म केवल धर्म की रक्षा के लिए होता है, न कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए। हे मान्धाता! यह समझो कि राजा लोक का रक्षक होता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
यदि राजा धर्म के मार्ग पर चलता है, तो वह दिव्यता को प्राप्त करता है, लेकिन यदि वह धर्म का पालन नहीं करता, तो निश्चय ही वह नरक को प्राप्त होता है।
सभी प्राणियों का अस्तित्व धर्म पर टिका हुआ है, और धर्म राजा में प्रतिष्ठित होता है। जो राजा धर्म का उचित रूप से पालन करता है, वही वास्तव में पृथ्वी का अधिपति कहलाने योग्य है।
हे मान्धाता! यदि राजा अपने कर्तव्यों से च्युत हो जाता है, तो वह यशस्वी होते हुए भी पापी कहलाता है। देवता भी ऐसे राज्य की निंदा करते हैं और लोग कहना शुरू कर देते हैं कि अब धर्म का अस्तित्व नहीं रहा।
जब लोग अधर्म में प्रवृत्त होते हैं और उन्हें उसमें सफलता भी मिलती है, तब समस्त संसार उसे ही शुभ मानने लगता है और उसी का अनुसरण करने लगता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब धर्म के आचरण का नाश होने लगता है और अधर्म व्यापक रूप से फैल जाता है, तब दिन-रात भय का वातावरण बना रहता है, क्योंकि पाप को रोका नहीं जाता।
जब पाप की रोकथाम नहीं होती, तब धर्मनिष्ठ ब्राह्मण भी वेदों के अनुसार आचरण नहीं करते और न ही यज्ञादि शुभ कर्मों का अनुष्ठान करते हैं।
हे महाराज! जब पाप का दमन नहीं किया जाता, तब समस्त मनुष्यों का चित्त व्याकुल हो उठता है, जैसे किसी को वध के लिए ले जाया जा रहा हो।
ऋषियों ने लोक-कल्याण को ध्यान में रखते हुए स्वयं राजा की रचना की, ताकि यह महान धर्म बना रहे।
जिस राजा में धर्म का प्रकाश होता है, उसे ही सच्चा राजा माना जाता है। और जिसमें धर्म का नाश होता है, उसे देवता भी अधर्मी समझते हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
भगवान धर्म ही इस संसार का आधार हैं, जो राजा धर्म का नाश करता है, उसे देवता अधार्मिक समझते हैं। इसलिए धर्म का कभी विनाश नहीं करना चाहिए।
धर्म के पालन से सभी प्राणियों की उन्नति होती है, और जब धर्म क्षीण होता है, तो सभी का पतन हो जाता है। इसलिए धर्म की वृद्धि करना आवश्यक है।
धन से धर्म की रक्षा होती है और धर्म ही संसार को धारण करता है। जो अनुचित कर्मों में लिप्त होता है, वह स्वयं अपने अंत को बुलाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
स्वयंभू ब्रह्मा ने समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए धर्म की रचना की। इसलिए राजा को प्रजा के हित में धर्म की वृद्धि करनी चाहिए।
हे राजन! इसी कारण धर्म को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। जो राजा न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करता है, वही सच्चा शासक होता है।
राजा को अपनी वासना और क्रोध को त्यागकर केवल धर्म का पालन करना चाहिए, क्योंकि धर्म ही राजाओं के लिए परम मंगलकारी है।
ब्राह्मण धर्म के आधार होते हैं, इसलिए उन्हें सदा सम्मान देना चाहिए। राजा को भी निष्कपट भाव से ब्राह्मणों की इच्छाओं का आदर करना चाहिए। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
ब्राह्मणों की अवहेलना करने से राजा को भय उत्पन्न होता है। न मित्रता बढ़ती है और न ही शत्रुता समाप्त होती है।
दैत्य राजा बलि ने बचपन से ही ब्राह्मणों का अपमान किया, जिससे उसकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई।
उसकी लक्ष्मी (समृद्धि) उसे छोड़कर देवराज इंद्र के पास चली गई। इंद्र ने जब देखा कि बलि दरिद्र हो गया है, तो वह प्रसन्न हुआ।
हे मान्धाता! यह अहंकार और अभिमान का परिणाम है। इसलिए इसे समझो और सतर्क रहो, जिससे तुम्हारी समृद्धि तुम्हें छोड़कर न जाए। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
श्रुतियों में वर्णित है कि अभिमान अधर्म का पुत्र है, और उसी के कारण देवता और असुर बार-बार संघर्ष में पड़े।
अनेक राजर्षियों ने इसे समझकर अभिमान को जीता, क्योंकि जो राजा अहंकार पर विजय प्राप्त करता है, वह विजेता होता है, अन्यथा वह पराजित होकर दास बन जाता है।
जो राजा अधर्म और अभिमान से दूर रहता है, वही दीर्घकाल तक राज्य करता है।
जो व्यक्ति मत्त, प्रमत्त, बालक, उन्मत्त और दुष्टजनों की संगति करता है, वह पतन की ओर बढ़ता है।
राजा को अपने मंत्रियों, स्त्रियों, पहाड़ी किलों, विषम मार्गों, हाथियों, घोड़ों और सर्पों से सावधान रहना चाहिए।
राजा को निशाचरों की संगति से बचना चाहिए और अत्यधिक आशा, अभिमान, छल-कपट तथा क्रोध का त्याग करना चाहिए।
राजा को अज्ञात स्त्रियों, किन्नरों, स्वेच्छाचारिणी स्त्रियों, अन्य पुरुषों की पत्नियों और कन्याओं के साथ अनुचित संबंध नहीं बनाने चाहिए। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
अधर्म के कारण वर्णसंकर संतानों का जन्म होता है, जिनमें विकलांगता, मंदबुद्धि और विकृति पाई जाती है।
जब राजा प्रमाद करता है, तो ऐसे अनर्थ जन्म लेते हैं। इसलिए राजा को विशेष रूप से प्रजा के हित में सावधान रहना चाहिए।
यदि क्षत्रिय राजा प्रमाद करता है, तो अनेक दोष उत्पन्न होते हैं और समाज में अधर्म फैल जाता है, जिससे प्रजा का पतन होता है।
जब वर्षा का अभाव या अत्यधिक वर्षा होती है, महामारी फैलती है, तब समझना चाहिए कि अधर्म बढ़ गया है।
ग्रह-नक्षत्र विपरीत हो जाते हैं, भयंकर ग्रहों का प्रभाव बढ़ जाता है और विनाशकारी अपशकुन दिखाई देने लगते हैं।
जो राजा स्वयं की रक्षा नहीं करता और न ही अपनी प्रजा की रक्षा करता है, उसकी प्रजा का नाश होता है और अंततः वह स्वयं भी विनष्ट हो जाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब एक व्यक्ति दो का धन हड़प लेता है, दो लोग कई लोगों का धन हड़प लेते हैं, और कन्याओं का अपहरण होने लगता है, तो इसे राजधर्म का दोष कहा जाता है।
जब राजा धर्म को छोड़कर अपने स्वार्थ में लिप्त हो जाता है, तब कोई भी चीज़ किसी एक की नहीं रहती और राज्य में अराजकता फैल जाती है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब वर्षा उचित समय पर होती है और राजा धर्म के अनुसार आचरण करता है, तब राज्य समृद्ध होता है और प्रजा सुखी रहती है।
जो व्यक्ति यह नहीं जानता कि कपड़ों से मैल कैसे हटाया जाए, या रत्नों को कैसे शुद्ध किया जाए, वह अपनी जिम्मेदारी निभाने में असमर्थ होता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
उसी प्रकार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र—चारों वर्ण अलग-अलग कर्तव्यों में स्थित हैं, और प्रत्येक का अपना धर्म निर्धारित है।
शूद्र का कर्तव्य सेवा करना, वैश्य का कृषि एवं व्यापार, राजा का शासन और न्याय तथा ब्राह्मण का कर्तव्य तप, वेद अध्ययन एवं सत्य का पालन करना है।
जो राजा अपने राज्य में दोषों को दूर करता है और सद्गुणों को बढ़ावा देता है, वह प्रजा का पिता और सच्चा पालक होता है।
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग—ये चारों युग राजा के आचरण से निर्धारित होते हैं। राजा का आचरण ही युग को परिभाषित करता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
वर्ण व्यवस्था, वेद और आश्रम व्यवस्था तब नष्ट होने लगते हैं, जब राजा अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाता है।
राजा ही सृष्टि का रचयिता और संहारक होता है। यदि वह धर्म का पालन करता है, तो रक्षक बनता है, और यदि अधर्म की ओर बढ़ता है, तो विध्वंसक बन जाता है।
जब राजा अपने कर्तव्यों में चूक करता है, तो उसकी पत्नी, पुत्र, बंधु-बांधव और मित्र सभी शोक में डूब जाते हैं।
यदि राजा अधर्म का आचरण करता है, तो हाथी, घोड़े, गाय, ऊँट, गदहे और अन्य सभी जीव कष्ट भोगते हैं।
राजा का धर्म दुर्बलों की रक्षा करना है। यदि वह दुर्बलों का तिरस्कार करता है, तो राज्य में असंतोष और अशांति फैल जाती है।
दुर्बल भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जितने शक्तिशाली लोग। यदि राजा दुर्बलों पर अत्याचार करता है, तो राज्य का पतन निश्चित होता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
मुनियों और सर्पों का क्रोध असहनीय होता है। इसलिए कभी भी दुर्बलों को कष्ट मत दो, क्योंकि उनका आक्रोश विनाशकारी हो सकता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
हे राजन! सदैव दुर्बलों की रक्षा करो और उनका अपमान मत करो, अन्यथा उनका शाप तुम्हारे पूरे कुल को नष्ट कर सकता है।
दुर्बलों का आक्रोश मूल से जलाने वाला होता है। इसलिए उनसे सावधान रहो और अन्याय मत करो।
अत्यधिक बलवान व्यक्ति भी यदि दुर्बल के क्रोध से जल जाता है, तो उसका समस्त बल व्यर्थ हो जाता है।
यदि कोई असहाय व्यक्ति अत्याचार से पीड़ित होकर सहायता नहीं पा सकता, तो उसका शाप स्वयं राजा के विनाश का कारण बनता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
हे तात! यदि तुम शक्तिशाली होकर दुर्बलों को पीड़ित करोगे, तो उनका क्रोध अग्नि की तरह तुम्हें जलाकर नष्ट कर देगा।
जो लोग झूठे आरोप लगाकर निर्दोषों को दुखी करते हैं, उनके आंसू उनके बच्चों और पशुओं के विनाश का कारण बनते हैं।
यदि किए गए पाप का फल तुरंत न मिले, तो भी वह भविष्य में पुत्रों, पौत्रों या आगे की पीढ़ियों को अवश्य मिलता है।
हे राजन! जैसे गाय के गर्भ में बछड़ा अपने समय पर जन्म लेता है, वैसे ही पाप का फल भी समय आने पर अवश्य प्राप्त होता है।
यदि दुर्बल व्यक्ति पर अत्याचार हो और वह किसी रक्षक को न पा सके, तो उस अन्यायी पर परमात्मा का कठोर दंड निश्चित रूप से पड़ता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब जनता भूख से पीड़ित होकर भिक्षा मांगने लगे, तो समझना चाहिए कि राजा का पाप बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में जनता का कष्ट ही राजा का विनाश कर सकता है।
जब राजा के सेवक अन्यायपूर्वक व्यवहार करते हैं, तो उसका सारा दोष राजा पर ही आता है।
जो अधिकारी लोभ, क्रोध, या अन्य अनुचित कारणों से राजस्व का दुरुपयोग करते हैं और याचकों की सहायता नहीं करते, वे राजा के महापाप का कारण बनते हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
राजा एक विशाल वृक्ष के समान होता है, जिसकी छाया में समस्त प्रजा सुरक्षित रहती है। जब वह वृक्ष कट जाता है या जल जाता है, तो उसके आश्रित सभी जीव अनाथ हो जाते हैं।
जब राज्य में धर्म का पालन किया जाता है और राजा उचित संस्कारों एवं गुणों का पालन करता है, तब वह राष्ट्र समृद्ध होता है। परंतु यदि वही राजा अधर्म का मार्ग अपनाता है, तो वह अपने पूर्वजों के पुण्य कर्मों को भी नष्ट कर देता है।
यदि दुष्ट व्यक्ति राज्य में प्रमुखता प्राप्त कर लेते हैं, तो सत्पुरुषों का अपमान होने लगता है। ऐसी स्थिति में राज्य का पतन निश्चित हो जाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जो राजा योग्य मंत्रियों का सम्मान करता है और उन्हें उचित स्थान पर नियुक्त करता है, वह अपने राज्य को दीर्घकाल तक समृद्ध बनाए रखता है।
राजा को सदैव अच्छे कर्मों और उत्तम वाणी का सम्मान करना चाहिए। ऐसा करने से वह अनुत्तम धर्म को प्राप्त करता है।
जो राजा न्यायपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करता है, परंतु अहंकार से दूसरों का अपमान नहीं करता और उद्दंड को दंडित करता है, वही सच्चा धर्मात्मा राजा कहलाता है।
जो राजा अपनी वाणी, शरीर और कर्मों से सभी की रक्षा करता है और अपने पुत्र तक के अन्याय को सहन नहीं करता, वही धर्म का पालन करता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जो राजा अपने संरक्षित नागरिकों की पुत्रवत रक्षा करता है और न्याय की मर्यादा को भंग नहीं करता, वही धर्म के अनुरूप शासन करता है।
जो राजा श्रद्धा एवं निष्कपटता से यज्ञ करता है और लोभ तथा द्वेष से रहित रहता है, वह धर्मानुसार शासन करता है।
जो राजा वृद्धों, असहायों और दीन-दुखियों के आँसू पोंछता है और प्रजा में आनंद उत्पन्न करता है, वही धर्मराज कहलाता है।
जो राजा अपने मित्रों को बढ़ाता है, शत्रुओं को दबाता है और साधुजनों का सम्मान करता है, वही न्यायप्रिय राजा होता है।
जो राजा सत्य का पालन करता है, उचित रूप से भूमि का दान करता है और अतिथियों तथा सेवकों का सत्कार करता है, वही धर्म में स्थित रहता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जहाँ राजा दंड और अनुग्रह का उचित संतुलन बनाए रखता है, वहाँ वह इस लोक और परलोक में श्रेष्ठ फल प्राप्त करता है।
राजा यम के समान धर्म के रक्षक और दंड के प्रवर्तक होते हैं। यदि वे संयम से शासन करते हैं, तो प्रजा सुखी रहती है, अन्यथा उनका शासन अग्नि के समान विनाशकारी बन जाता है।
जो राजा पुरोहितों और आचार्यों का उचित सम्मान करता है, वह धर्म का पालन करने वाला होता है।
यमराज सभी प्राणियों को समान रूप से न्याय देते हैं। उसी प्रकार, राजा को भी अपने राज्य की प्रजा का उचित रूप से पालन और संचालन करना चाहिए।
राजा इंद्र के समान होता है, जो समस्त धर्म का पालन करता है। यदि वह धर्म का अनुसरण करता है, तो वह सच्चा पुरुषश्रेष्ठ कहलाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
राजा को चाहिए कि वह सजग रहे, क्षमा, बुद्धि और धैर्य को धारण करे, तथा सदैव भूतों के कल्याण और सत्कर्मों की पहचान करे।
राजा को सभी जीवों का संरक्षण करना चाहिए, दान देना चाहिए, मधुर वाणी बोलनी चाहिए, तथा नगर और ग्रामवासियों की उसी प्रकार रक्षा करनी चाहिए, जैसे वह अपनी संतान की रक्षा करता है।
यदि राजा अयोग्य हो, तो वह प्रजा की रक्षा नहीं कर सकता। राज्य का शासन एक महान भार है, जिसे केवल योग्य, बुद्धिमान और पराक्रमी राजा ही संभाल सकता है।
जो राजा दंड देने में सक्षम नहीं, जो निर्बल और मूर्ख है, वह राज्य की रक्षा नहीं कर सकता।
राजा को चाहिए कि वह अच्छे कुल में जन्मे, निपुण, निष्ठावान और विद्वान व्यक्तियों को अपनी सेवा में रखे। उसे मुनियों और तपस्वियों से भी नीति का ज्ञान लेना चाहिए।
यदि राजा धर्म के मर्म को समझ लेता है, तो वह किसी भी देश में रहे, उसका धर्म कभी नष्ट नहीं होता।
धर्म, अर्थ और काम में भी धर्म को ही सर्वोपरि माना गया है। जो व्यक्ति धर्म को जानता है, वह इस लोक और परलोक में सुखी रहता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जो व्यक्ति सम्मानपूर्वक व्यवहार करता है, दान देता है, और मधुर वाणी बोलता है, उसके लिए लोग अपने प्राण तक त्यागने को तैयार रहते हैं।
हे मान्धाता! कभी प्रमाद मत करो, क्योंकि अप्रमाद, शुद्धता और अनुशासन से ही समृद्धि प्राप्त होती है।
राजा को सदैव सतर्क रहना चाहिए और अपनी तथा दूसरों की कमियों को पहचानने में सक्षम होना चाहिए। उसे चाहिए कि कोई और उसकी कमजोरियों को न देख सके, बल्कि वह दूसरों की कमजोरियों को समझे।
यह नीति इंद्र, यम, वरुण और समस्त राजर्षियों द्वारा अपनाई गई है। अतः हे राजन्! तुम भी इस नीति का अनुसरण करो।
हे भरतश्रेष्ठ! तुम उन राजर्षियों के आचरण का पालन करो, जिन्होंने दिव्य पथ का अनुसरण किया।
जो राजा धर्मपूर्वक शासन करता है, उसके निधन के बाद भी देवता, ऋषि, पितर और गंधर्व उसकी कीर्ति का गुणगान करते हैं।
उतथ्य मुनि द्वारा इस प्रकार उपदेश दिए जाने के बाद, महान राजा मान्धाता ने निर्भय होकर इन नीतियों का पालन किया और संपूर्ण पृथ्वी का शासन प्राप्त किया। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
हे राजन्! यदि तुम भी इसी प्रकार धर्मपूर्वक पृथ्वी का पालन करोगे, तो निश्चित ही स्वर्गलोक प्राप्त करोगे।
॥ इति उतथ्यगीता समाप्ता ॥