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भगवान शिव देवी पार्वती को अद्वैत भाव का गूढ़ ज्ञान प्रदान करते हुए बोले—
"अद्वैतभाव का वर्णन करता हूँ, सुनो हे कमलानन!
जिसका केवल विज्ञानमात्र से ही स्वयं गंगाधरत्व हो जाता है।"
Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
मैं स्त्री हूँ। मैं पुरुष हूँ। मैं सदाशिव हूँ। मैं परमप्रकृति हूँ।
मैं परमपुरुष हूँ। मैं नाद हूँ। मैं बिंदु हूँ। मैं कला हूँ।
मैं शब्दब्रह्म हूँ। मैं क्रियायाग हूँ। मैं ब्रह्मा हूँ। मैं विष्णु हूँ।
मैं सौर हूँ। मैं ब्राह्म हूँ। मैं वैष्णव हूँ। मैं शिव हूँ।
मैं नाना शक्तियाँ हूँ। मैं असुर हूँ। मैं सुर हूँ। मैं उच्चारण रहित हूँ।
मैं विद्या हूँ। मैं वेद हूँ। मैं वेदशाखा हूँ। मैं वेदक्रिया हूँ।
मैं कर्मयोग हूँ। मैं धर्मकर्म हूँ। मैं पिता हूँ। मैं माता हूँ।
मैं पुत्र हूँ। मैं गुरु हूँ। मैं आचार्य हूँ। मैं आगम हूँ।
मैं रामायण हूँ। मैं महाभागवत हूँ। मैं महाभारत हूँ।
मैं श्रीभागवत हूँ। मैं श्रुतिशास्त्र हूँ।
मैं मंत्र हूँ। मैं मंत्रार्थ हूँ। मैं स्तव हूँ। मैं कवच हूँ।
मैं सहस्रनाम हूँ। मैं गायत्री हूँ। मैं बीज हूँ।
मैं कूटाक्षर हूँ। मैं त्र्यक्षर हूँ। मैं पञ्चाशन्मातृका हूँ।
मैं पञ्चभूत हूँ। मैं पञ्चमहाभूत हूँ। मैं तत्त्व हूँ।
मैं स्थूल हूँ। मैं सूक्ष्म हूँ। मैं कुल और अकुल हूँ।
मैं कुलाचल हूँ। मैं प्रमाणादि षोडश पदार्थ हूँ।
मैं ऋषि हूँ। मैं मुनि हूँ। मैं लक्ष्मी हूँ।
मैं स्त्री हूँ। मैं श्री हूँ। मैं प्रिय हूँ। मैं गौरी हूँ।
मैं भूत हूँ। मैं कुष्माण्ड हूँ। मैं प्रेत हूँ।
मैं लोकपाल हूँ। मैं ग्रह हूँ। मैं दिग्गज हूँ।
मैं दसों दिशाएँ हूँ। मैं ऊपर हूँ। मैं नीचे हूँ।
मैं चतुर्दश भुवन हूँ। मैं उनमें स्थित हूँ। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
मैं उनके संप्रदाय से भिन्न श्रद्धारहित स्थिति के पश्चात् उसमें प्रविष्ट होता हूँ।
भगवान शिव कहते हैं:
मंत्र का विधिपूर्वक जप करें, संख्या का विधानपूर्वक पालन करें।
मानसिक जप में कोई दोष नहीं होता, ऐसा भगवान शिव ने कहा है।
इस प्रकार सदाशिव द्वारा प्रवर्तित अद्वैतभाव समाप्त हुआ।
यह पाठ अद्वैत वेदांत और अद्वैत भाव की परम स्थिति को दर्शाता है। यह शिव द्वारा प्रतिपादित एक गूढ़ सत्य है, जो यह स्पष्ट करता है कि समस्त ब्रह्मांड, प्रत्येक वस्तु, प्रत्येक तत्त्व और प्रत्येक जीव स्वयं शिवस्वरूप ही है। इसका गहरा अर्थ यह है कि आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है। जो यह विज्ञान (ज्ञान) प्राप्त कर लेता है, वह स्वयं शिवतत्त्व को उपलब्ध हो जाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
"अहं स्त्री। पुरुषोऽहम्। सदाशिवोऽहम्।"
यह वाक्य अद्वैत सिद्धांत की मूल भावना को दर्शाता है कि व्यक्ति स्त्री भी है, पुरुष भी है और परम शिव भी है।
यह स्पष्ट करता है कि जो सत्यस्वरूप है, वह किसी एक रूप या लिंग तक सीमित नहीं है।
"परमप्रकृत्योऽहम्। परमपुरुषोऽहम्।"
यहाँ प्रकृति (शक्ति) और पुरुष (शिव) दोनों का एकत्व बताया गया है।
यह दर्शाता है कि न केवल शिव, बल्कि उनकी शक्ति भी वही है—अर्थात शिव और शक्ति में भेद केवल दृष्टिगत (अपेक्षाकृत) है, वास्तव में वे एक ही हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
"नादोऽहम्। बिन्दुरहम्। कलाश्चाहम्। शब्दब्रह्माहम्।"
"नाद" (ध्वनि) और "बिंदु" (अणु) शिवतत्त्व के सूक्ष्मतम स्वरूप हैं।
"शब्दब्रह्म" अर्थात ओंकार भी शिवस्वरूप है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
यह दर्शाता है कि समस्त सृष्टि शिव के नाद (ध्वनि) और बिंदु (ऊर्जा) से उत्पन्न हुई है।
"ब्रह्माहम्। विष्णुरहम्। सौरोऽहम्। ब्राह्मोऽहम्। वैष्णवोऽहम्। शिवाऽहम्।"
शिव ही ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, ब्राह्मण, वैष्णव और स्वयं शिव हैं।
यह दर्शाता है कि समस्त देवताओं में भेद करना केवल अज्ञान है—सभी देवता मूल रूप से एक ही हैं।
"नानाशक्त्यहम्। असुरोऽहम्। सुरोऽहम्।"
शिव ही विभिन्न शक्तियाँ हैं, शिव ही असुर (राक्षस) हैं, शिव ही देव (सुर) हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
यह अद्वैत का सबसे गूढ़ सत्य है कि जो भी अस्तित्व में है, वह शिव से अलग नहीं है।
"विद्याऽहम्। वेदाश्चाहम्। वेदशाखिनश्चाहम्। वेदक्रियाऽहम्।"
शिव स्वयं वेद हैं, वेद के अध्ययन करने वाले हैं, वेद के कर्मकांड भी हैं।
यह दर्शाता है कि जो भी ज्ञान और क्रिया है, वह शिवस्वरूप ही है।
"कर्मयोगोऽहम्। धर्मकर्मोऽहम्। पिताऽहम्। माताऽहम्। पुत्रोऽहम्।"
शिव ही कर्मयोग, धर्म, पिता, माता और संतान हैं।
यह दर्शाता है कि हर संबंध, हर कर्म और हर भूमिका शिव ही निभा रहे हैं।
"रामायणोऽहम्। महाभारतोऽहम्। श्रीभागवतोऽहम्। श्रुतिशास्त्राण्यहम्।"
शिव ही समस्त धार्मिक ग्रंथ हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
यह दर्शाता है कि धर्मग्रंथों का अध्ययन और पालन भी शिव का ही स्वरूप है।
"पञ्चभूतान्यहम्। पञ्चमहाभूतान्यहम्। तत्त्वान्यहम्। स्थूलोऽहम्। सूक्ष्मोऽहम्।"
शिव ही पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) हैं।
शिव ही स्थूल (स्थूल जगत) और सूक्ष्म (अंतर्जगत) हैं।
यह दर्शाता है कि जो भी भौतिक या आध्यात्मिक जगत में है, वह शिव से अलग नहीं है।
"ऋषयश्चाऽहम्। मुनयश्चाऽहम्। लक्ष्मीरहम्। स्त्रियोऽहम्।"
शिव ही ऋषि, मुनि, लक्ष्मी और स्त्री हैं।
यह समस्त विविधताओं को एकता में देखने की दृष्टि देता है।
"चतुर्दशभुवनान्यहम्।"
शिव ही चौदहों लोक हैं—भूत, भविष्य और वर्तमान सभी शिव में ही समाहित हैं।
"जपेन्मन्त्रं विधानेन सङ्ख्यां कुर्वन् विधानतः। न दोषो मानसे जापे इत्याह भगवान् शिवः॥"
शिव कहते हैं कि जो भी मंत्रजप श्रद्धा और विधिपूर्वक किया जाए, वह फलदायक होता है।
मानसिक जप (मन में किया गया जप) भी उतना ही प्रभावशाली है और उसमें कोई दोष नहीं है।
निष्कर्ष:
यह पाठ स्पष्ट करता है कि अद्वैत का अर्थ यह है कि सृष्टि में जो कुछ भी है, वह सब शिवस्वरूप है।
"अहं ब्रह्मास्मि" का विस्तार यहाँ शिवतत्त्व में दिखाया गया है।
शिव ही सब कुछ हैं, शिव से कुछ भी अलग नहीं है।
अद्वैत का अनुभव होते ही जीव स्वयं शिवस्वरूप को प्राप्त कर लेता है।
इसलिए, यह पाठ गूढ़ अद्वैत तत्त्व का प्रतिपादन करता है और शिव से एकत्व की अनुभूति कराता है। 🚩
गूढ़ व्याख्या:
"अद्वैतभाव" का अर्थ है द्वैत (भेदभाव) का अभाव, अर्थात् आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है।
"कमलानन" शब्द देवी पार्वती के लिए प्रयुक्त हुआ है, जो शिव को यह गूढ़ ज्ञान समझाने के लिए कहते हैं।
"विज्ञानमात्रेण" का अर्थ है शुद्ध ज्ञान, तत्त्वज्ञान या आत्मज्ञान, जो यह अनुभूति कराता है कि "मैं और शिव अलग नहीं हैं।"
"गंगाधरत्व" का अर्थ है स्वयं शिव बन जाना, अर्थात् जो इस ज्ञान को प्राप्त कर लेता है, वह स्वयं शिवभाव (परम स्थिति) को प्राप्त कर लेता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
सरल शब्दों में:
"जो व्यक्ति अद्वैत ज्ञान को प्राप्त कर लेता है, वह स्वयं शिवस्वरूप हो जाता है।"