Atmabodha Upanishad, or Atmaprabodha Upanishad, is a profound scripture that explores the awakened knowledge of the Self through direct realization. Rooted in Advaita Vedanta, it reveals how true wisdom is the understanding that Atman (Self) is Brahman (the Absolute). This text emphasizes the path of self-inquiry (atma-vichara), enlightenment, and the removal of ignorance. It serves as a crucial guide for those seeking moksha (liberation) and inner peace through deep meditation and awareness of the non-dual nature of reality. Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
॥ हरिः ॐ ॥
श्रीमन्नारायणाकारमष्टाक्षरमहाशयम् ।
स्वमात्रानुभवात्सिद्धमात्मबोधं हरिं भजे ॥
॥ ॐ वाङ्मे मनसीति शान्तिः ॥
क्या आपने कभी स्वयं को केवल शरीर मानकर ही देखा है? क्या आत्मा का बोध — आत्मा की साक्षी — केवल ग्रंथों तक सीमित है, या वह आपके अनुभव का हिस्सा बन चुकी है? यह प्रश्न जितना सरल लगता है, उत्तर उतना ही गहरा है। और इसी उत्तर की खोज में आज हम एक दिव्य और अत्यंत रहस्यमयी उपनिषद् में प्रवेश करने जा रहे हैं — आत्मबोधोपनिषद। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यह उपनिषद हमें आम ज्ञान से ऊपर उठाकर उस परम सत्य की अनुभूति कराना चाहता है, जिसे केवल स्वानुभव से जाना जा सकता है। न तो शास्त्र पढ़ने से, न दूसरों की बातों से — केवल अपने मौन अंतरतम से। और इसलिए, इसका हर श्लोक एक दीपक के समान है — जो आपके भीतर के अंधकार को चीरकर आत्मज्योति की दिशा में ले जाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मैं उस हरि का वंदन करता हूँ — जो श्रीमन नारायण के रूप में स्थित हैं, जिनका स्वरूप अष्टाक्षर महामंत्र से प्रकाशित होता है। वह आत्मबोध स्वयं की अनुभूति से सिद्ध है — मैं उसी आत्मस्वरूप भगवान हरि की उपासना करता हूँ।
ॐ — हे वाणी, तू मेरे मन में स्थित हो जाए।
वह जो भीतर विद्यमान आनंदस्वरूप ब्रह्म है, वही परम पुरुष है, वही प्रणवस्वरूप है, वही मेरा आत्मस्वरूप है।
उस प्रणव में तीन अक्षर हैं: अकार, उकार और मकार — यही 'ॐ' है।
मैं उस हरि को नमन करता हूँ, जो आत्मबोधस्वरूप हैं, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो ज्ञानदीप के समान तम को हर लेते हैं।
इस उपनिषद् का अध्ययन आत्मप्रकाश की ओर ले जाए —
बन्धन से मुक्ति की ओर, अज्ञान से दिव्यत्व की ओर।
जो योगी इस 'ॐ' का उच्चारण करता है, वह जन्म और संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है।
ॐ नमो नारायणाय। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
शंख, चक्र और गदा से विभूषित उस नारायण को नमस्कार।
जो इस मंत्र की उपासना करता है, वह वैकुण्ठधाम को प्राप्त करता है। वैकुण्ठ कोई स्थान नहीं — यह अंतर की निर्विकल्प शांति और दिव्यता की अवस्था है, जहाँ आत्मा पूर्ण संतोष में स्थित हो जाती है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
और यह जो ब्रह्मपुर है, यह ही पुण्डरीक है —
इसमें एक विद्युत सदृश, दीपक के समान प्रकाशमान बिंदु है। जहाँ चेतना केंद्रित होती है, वहाँ एक दिव्य प्रकाश प्रकट होता है, जैसे बिजली की चमक या दीपक की लौ। वह प्रकाश आत्मा का प्रकाश है — और वही आत्मबोध का अनुभव है।
जो देवकीपुत्र है — श्रीकृष्ण — वही ब्रह्म का स्वरूप है। वही मधुसूदन, वही पुण्डरीकाक्ष, वही विष्णु, वही अच्युत — जो कभी न गिरने वाला है। जब आत्मा उस स्थिति में पहुँचती है — तब वही आत्मा नारायण हो जाती है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
सभी प्राणियों में स्थित एकमात्र नारायण ही कारणों के कारण पुरुष हैं, जो स्वयं अकारण और परम ब्रह्म हैं।
जो मनुष्य शोक और मोह से मुक्त होकर विष्णु का ध्यान करता है, वह कभी दुखी नहीं होता।
द्वैत और अद्वैत से परे जाकर वह निर्भय हो जाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
जो इस संसार में अनेकता को ही सत्य मानता है, वह मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त होता है।
हृदयकमल के मध्य में जो भी है, वह सब ज्ञान में ही प्रतिष्ठित है।
ज्ञान ही नेत्र है, ज्ञान ही आधार है, और ज्ञान ही ब्रह्म है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यही ज्ञानस्वरूप आत्मा से युक्त होकर यह पुरुष इस लोक से ऊपर उठता है और स्वर्गलोक में जाकर समस्त कामनाओं की प्राप्ति कर अमर हो जाता है।
जहाँ नित्य ज्योति है, जिस लोक में सब कुछ प्रतिष्ठित है — उसी लोक में मुझे प्रतिष्ठित करो, उस अमर, अक्षुण्ण, अच्युत लोक में — जहाँ अमरत्व प्राप्त होता है — नमः।
मैं अपनी माया से रहित हूँ, अनुपम दृष्टि वाला, केवल साक्षात सत्यस्वरूप वस्तु मात्र हूँ।
मैं अहंकार से मुक्त हूँ, संसार, ईश्वर और जीव के भेद से परे हूँ। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मैं ही आंतरिक और परम तत्त्व हूँ, समस्त विधियों और निषेधों से रहित हूँ।
मैं श्रम और प्रयास से परे, पूर्ण सुख और ज्ञान की ही व्यापकता हूँ।
मैं साक्षीस्वरूप हूँ, किसी पर निर्भर नहीं, अपनी महिमा में स्थित अचल स्वरूप हूँ।
मैं न वृद्ध होता हूँ, न नष्ट होता हूँ, न पक्ष और विपक्ष के भेदों में पड़ता हूँ।
मैं केवल जागृति रसस्वरूप हूँ, मोक्ष और आनंद का एकमात्र महासागर हूँ।
मैं सूक्ष्म हूँ, अक्षर हूँ, गुणों से रहित केवल आत्मा हूँ। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मैं त्रिगुणों से परे हूँ, सब लोकों को अपने गर्भ में धारण करता हूँ।
मैं अचल चेतना हूँ, निष्क्रिय धाम हूँ, तर्क से परे हूँ।
मैं अकेला हूँ, अखण्ड हूँ, निर्मल निर्वाणस्वरूप ही हूँ।
मैं निरवयव, अजन्मा, केवल सत् स्वरूप का सार हूँ।
मैं अनंत आत्मज्ञानस्वरूप हूँ, शुभ भाव से युक्त, अभेद्य हूँ।
मैं व्यापक हूँ, निर्दोष हूँ, असीम और निरंतर तत्त्वस्वरूप ही हूँ।
मैं वही हूँ जिसे वेदों द्वारा जाना जाता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मैं आराध्य हूँ, समस्त लोकों के हृदय में प्रिय हूँ।
मैं परमानंद का घन स्वरूप हूँ, परमानंद की एकमात्र व्यापकता हूँ।
मैं शुद्ध हूँ, अद्वितीय हूँ, सतत भावस्वरूप हूँ, आदिशून्य हूँ।
मैं तीनों प्रकार के दुःखों से शांत हूँ, बंधन और मुक्ति में भेदरहित अद्भुत आत्मा हूँ।
मैं भीतर से शुद्ध हूँ, शाश्वत ज्ञानरसस्वरूप आत्मा हूँ। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मैं शुद्ध परम तत्त्वस्वरूप हूँ, ज्ञान और आनंद की ही मूर्ति हूँ।
विवेक, युक्ति और बुद्धि के द्वारा मैं स्वयं को अद्वैत आत्मा के रूप में जानता हूँ —
फिर भी संसार में बंधन, मुक्ति आदि का व्यवहार प्रतीत होता है।
यद्यपि यह प्रपंच मेरे लिए निवृत्त हो चुका है, फिर भी यह सत्य के समान प्रतीत होता है —
जैसे सर्प में रज्जु की सत्ता, वैसे ही यह समस्त जगत ब्रह्म की सत्ता से ही प्रकाशित होता है।
जिस प्रकार शर्करा में इक्षुरस व्याप्त होता है, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
उसी प्रकार मैं अद्वैत ब्रह्मस्वरूप होकर तीनों लोकों में व्याप्त हूँ।
ब्रह्मा से लेकर कीट तक सभी प्राणी मुझमें ही कल्पित हैं —
जैसे बुलबुले से लेकर लहर तक सब सागर में ही हैं।
जिस प्रकार समुद्र लहरों में स्थित जल को पाने की इच्छा नहीं करता,
उसी प्रकार मुझे विषयों के सुख की कोई इच्छा नहीं, क्योंकि मैं आनंदस्वरूप हूँ।
जिस प्रकार संपन्न पुरुष को दरिद्रता की आकांक्षा नहीं होती, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वैसे ही ब्रह्मानंद में निमग्न होने पर विषयों की कोई इच्छा नहीं रह जाती।
जो विष और अमृत को पहचानता है, वह विष को छोड़ देता है —
उसी प्रकार जब मैंने आत्मा को जाना, तो अनात्मा को त्याग दिया।
जैसे घट को प्रकाशित करने वाला सूर्य घट के नष्ट होने पर भी नहीं नष्ट होता,
उसी प्रकार देह को प्रकाशित करने वाला साक्षी देह के नष्ट होने पर भी बना रहता है।
न मुझे बंधन है, न मुक्ति, न कोई शास्त्र है, न गुरु — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
क्योंकि सब कुछ केवल माया का ही विकास है, और मैं तो माया से परे अद्वैत स्वरूप हूँ।
प्राण अपनी गति से चलते रहें, मन कामनाओं से अभिभूत हो जाए —
किन्तु जो आनंद और ज्ञान से पूर्ण है, उसे दुःख कैसे हो सकता है?
मैं अपने आत्मस्वरूप को सहजता से जानता हूँ, और अब कोई अज्ञान शेष नहीं रहा —
मेरे भीतर अब न कर्तापन है, न ही कोई कर्तव्य कहीं शेष है।
ब्राह्मणत्व, कुल, गोत्र, नाम, सौंदर्य, जाति — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
ये सभी स्थूल देह से संबंधित हैं, और मैं उस स्थूल से भिन्न हूँ।
भूख, प्यास, अंधत्व, बहिरापन, काम, क्रोध आदि —
ये सब सूक्ष्म देह के धर्म हैं, और मैं निर्लिङ्ग आत्मा इनसे रहित हूँ।
जड़ता, प्रियता और सुख का जो अनुभव होता है —
वे कारण देह के धर्म हैं, और मैं नित्य, निर्विकार, शुद्ध चैतन्य हूँ।
जिस प्रकार उल्लू को सूर्य का प्रकाश अंधकार प्रतीत होता है, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
उसी प्रकार जो मूढ़ है, उसे परमात्मा का स्वप्रकाशित आनन्द अंधकार लगता है।
जब नेत्रों की दृष्टि को बादल ढँक देते हैं, तो मूर्ख सोचता है कि सूर्य ही अस्त हो गया —
उसी प्रकार अज्ञान से आच्छन्न देही ब्रह्म का अस्तित्व ही नकार देता है।
जिस प्रकार अमृत विष से भिन्न होकर भी विष के दोषों से लिप्त नहीं होता — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
उसी प्रकार मैं जड़ से भिन्न होकर भी उसके दोषों से अछूता हूँ, क्योंकि मैं प्रकाशस्वरूप हूँ।
जैसे एक छोटी-सी दीपशिखा भी घने अंधकार को नष्ट कर सकती है —
वैसे ही थोड़ा-सा आत्मबोध भी प्रबल अज्ञान को नष्ट कर सकता है।
तीनों कालों में जैसे रज्जु में कभी भी सर्प नहीं होता —
वैसे ही मैं अद्वैत आत्मा हूँ, और अहंकार से लेकर देह तक यह समस्त संसार मुझमें कभी था ही नहीं।
मैं चैतन्यस्वरूप हूँ, अतः मुझमें कोई जड़ता नहीं —
मैं सत्यस्वरूप हूँ, अतः मुझमें मिथ्या का कोई स्थान नहीं — Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
मैं आनन्दस्वरूप हूँ, अतः मुझमें दुःख का कोई अस्तित्व नहीं।
अज्ञान से ही यह मिथ्या जगत सत्यवत् प्रतीत होता है।
जो आत्मप्रबोध की इस उपनिषद् का थोड़ी देर भी अभ्यास करता है,
वह फिर जन्म-मरण के चक्र में नहीं लौटता —
वह फिर नहीं लौटता — यही उपनिषद का वचन है।
यही है आत्मबोधोपनिषद् की वास्तविक शिक्षा — कि तुम स्वयं को पहचानो, भीतर के दीपक को देखो, और उस प्रकाश में हर नाम, हर रूप, हर विचार विलीन हो जाए। यही आत्मप्रबोधन है — यही मोक्ष की शुरुआत है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
॥ ॐ वाङ्मे मनसीति शान्तिः ॥
॥ इति आत्मबोधोपनिषत्समाप्ता ॥
॥ हरिः ॐ तत्सत् ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥