Ramana Gita is a profound spiritual text that encapsulates the Teachings of Bhagavan Ramana Maharshi, focusing on the path of Self-Inquiry (Atma Vichara) and Self-Realization. Composed by Ganapati Muni, this sacred dialogue explores deep questions about Consciousness, Ego, and the Nature of Reality, offering seekers a practical guide to attain Inner Peace and Liberation (Moksha). Ramana Gita illuminates the timeless wisdom that directs the soul toward Ultimate Truth and Enlightenment, making it a cornerstone of Advaita Vedanta Philosophy. 🕉️✨
श्री रमण महर्षि द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता से चुने गए 42 श्लोकों का चयन और उनका पुनर्संगठन एक साधक के लिए एक महान वरदान है। यह पुनर्संगठित श्लोक दिव्य शिक्षाओं के प्रवाह का निर्माण करते हैं, जो व्यक्ति को श्रीमद्भगवद्गीता के मूल दर्शन को समझने में सहायता करते हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
रामण गीता एक गूढ़ ग्रंथ है जो अद्वैत वेदांत की गहरी शिक्षाओं को सरल भाषा में प्रस्तुत करता है। इसे महर्षि रमण ने अपने शिष्यों के प्रश्नों के उत्तर के रूप में दिया था। इस ग्रंथ में आत्मा, ध्यान, मोक्ष और आत्म-ज्ञान की चर्चा की गई है। उन्होंने इन श्लोकों को इस प्रकार पुनर्संगठित किया कि यह मृत्यु के भय को सबसे पहले समाप्त कर देता है।
दुख, पीड़ा, घृणा, और संसार के सभी नकारात्मक अनुभवों के कारण:
शरीर से अत्यधिक तादात्म्य (Identification with the body)
मन को आत्मा मानने की भूल (Mistaking the mind for the Self)
मृत्यु का भय (Fear of death)
अस्थायी वस्तुओं से आसक्ति (Attachment to impermanent objects)
भ्रमित और अहंकारमय ‘मैं’ (Confused and egotistical ‘I’ concept)
गलत ईश्वर-धारणा (Wrong ‘God concept’)
एकाग्रता की कमी (Lack of focus)
किन्तु आत्मा दिव्य, शाश्वत और अविनाशी है।
इसलिए "स्वयं में लीन होना सीखो, शेष सब कुछ एक दिन तुम्हें छोड़कर चला जाएगा।"
श्री रमण महर्षि की शिक्षाओं को सरल रूप से समझाने के लिए, इन 42 श्लोकों को 10 भागों में विभाजित किया गया है।
संजय ने कहा: करुणा, दया और शोक से अभिभूत अर्जुन, जिनकी आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं, उन्हें भगवान कृष्ण (मधुसूदन) ने इस प्रकार संबोधित किया। (गीता 2:01)
भगवान ने कहा: हे अर्जुन! ज्ञानी लोग इस शरीर को "क्षेत्र" (खेत) कहते हैं और जो इसे जानता है, उसे "क्षेत्रज्ञ" (खेत का ज्ञाता) कहते हैं। (गीता 13:01) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
हे अर्जुन! तुम यह जान लो कि सभी शरीरों में स्थित क्षेत्रज्ञ "मैं" ही हूँ। क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ को जानना ही सच्चा ज्ञान है। (गीता 13:02)
हे गुडाकेश (अर्जुन)! मैं सभी जीवों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं सभी प्राणियों का जन्म, मध्य और अंत हूँ। (गीता 10:20)
जो जन्मा है, उसकी मृत्यु निश्चित है; और जो मरता है, उसका पुनर्जन्म भी निश्चित है। अतः इस अनिवार्य सत्य के लिए शोक मत करो। (गीता 2:27)
आत्मा न तो जन्मती है और न ही कभी मरती है। यह शाश्वत और अविनाशी है। शरीर के नष्ट होने पर भी यह नष्ट नहीं होती। (गीता 2:20) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
आत्मा अजर-अमर और अविनाशी है। इसे न जलाया जा सकता है, न काटा जा सकता है, न गीला किया जा सकता है, न सुखाया जा सकता है। यह अनंत काल से अस्तित्व में है। (गीता 2:24)
जो तत्व इस शरीर को व्याप्त करता है, उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता। आत्मा अविनाशी और अमर है। (गीता 2:17)
ज्ञानीजन कहते हैं: जो असत्य है, वह स्थायी नहीं है और जो सत्य है, वह कभी नष्ट नहीं होता। (गीता 2:16)
जैसे सूर्य पूरे संसार को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार आत्मा शरीर रूपी क्षेत्र को प्रकाशित करता है। (गीता 13:33)
न सूर्य, न चंद्रमा, न अग्नि, मेरी परम धाम को प्रकाशित कर सकते हैं। जो वहाँ पहुँचता है, वह फिर कभी लौटकर नहीं आता। (गीता 15:06)
12. जिसे अव्यक्त और अविनाशी कहा जाता है, वही परम लक्ष्य है। जो लोग इसे प्राप्त कर लेते हैं, वे पुनः जन्म-मरण के चक्र में नहीं आते। वही मेरा परम धाम है। (श्रीमद्भगवद्गीता 8:21)
13. जो लोग अहंकार और मोह से मुक्त हो चुके हैं, आसक्ति के दोष पर विजय प्राप्त कर चुके हैं, आत्मस्वरूप में स्थित रहते हैं, जिनकी समस्त इच्छाएँ समाप्त हो चुकी हैं, और जो सुख-दुःख की द्वंद्व भावनाओं से मुक्त हैं, वे निश्चित रूप से परम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। (श्रीमद्भगवद्गीता 15:05) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
14. जो व्यक्ति शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करता है और अपनी इच्छाओं के वशीभूत होकर कार्य करता है, वह न तो सिद्धि प्राप्त करता है, न आनंद और न ही परम लक्ष्य। (श्रीमद्भगवद्गीता 16:23)
15. जो व्यक्ति वास्तव में देखता है, वह उस परमात्मा को सभी प्राणियों में समान रूप से विद्यमान देखता है—नश्वर शरीरों में अविनाशी आत्मा को देखता है। (श्रीमद्भगवद्गीता 13:27)
16. केवल अनन्य भक्ति और प्रेमपूर्वक समर्पण के द्वारा ही मैं इस रूप में जाना और अनुभव किया जा सकता हूँ, और वास्तव में, इस प्रकार कोई मेरे साथ एकात्म भी हो सकता है। (श्रीमद्भगवद्गीता 11:54)
17. प्रत्येक व्यक्ति की श्रद्धा उसके स्वभाव के अनुसार होती है, हे अर्जुन! व्यक्ति वही बन जाता है, जो उसकी श्रद्धा होती है। (श्रीमद्भगवद्गीता 17:03) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
18. जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से युक्त है, जिसने अपनी इंद्रियों को वश में कर लिया है, वह ज्ञान प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति तुरंत ही परम शांति को प्राप्त कर लेता है। (श्रीमद्भगवद्गीता 4:39)
19. जो सदा प्रेमपूर्वक मेरी पूजा में लगे रहते हैं, उन्हें मैं वह योग प्रदान करता हूँ, जिससे वे मुझ तक पहुँचते हैं। (श्रीमद्भगवद्गीता 10:10)
20. अपने भक्तों पर केवल दया से मैं उनके हृदय में स्थित होकर उनके अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश से नष्ट कर देता हूँ। (श्रीमद्भगवद्गीता 10:11)
21. परंतु जिनका अज्ञान आत्मज्ञान द्वारा नष्ट हो जाता है, उनका ज्ञान सूर्य के समान उस परम सत्य को प्रकाशित करता है। (श्रीमद्भगवद्गीता 5:16) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
22. इंद्रियाँ, इंद्रिय-विषयों से श्रेष्ठ हैं; मन, इंद्रियों से श्रेष्ठ है; बुद्धि, मन से श्रेष्ठ है; और आत्मा या परमात्मा बुद्धि से भी श्रेष्ठ है। (श्रीमद्भगवद्गीता 3:42)
23. इसलिए, स्वयं को इंद्रियों, मन और बुद्धि से श्रेष्ठ मानकर, इस कठिन विजेय शत्रु—वासना और इच्छाओं—को आध्यात्मिक शक्ति द्वारा जीतना चाहिए। (श्रीमद्भगवद्गीता 3:43)
24. जिस प्रकार जलती हुई अग्नि ईंधन को राख में बदल देती है, उसी प्रकार ज्ञान की अग्नि समस्त कर्मों को भस्म कर देती है। (श्रीमद्भगवद्गीता 4:37) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
25. जिस व्यक्ति के सभी कर्म इच्छाओं से रहित होते हैं और जिसके कर्म ज्ञान की अग्नि से भस्म हो चुके हैं, वह ज्ञानी और महाज्ञानी कहलाता है। (श्रीमद्भगवद्गीता 4:19)
26. वे मुनि जो राग और क्रोध से मुक्त हैं, जिनका मन नियंत्रण में है, जिन्होंने आत्मबोध प्राप्त कर लिया है और जो सदा पूर्णता प्राप्त करने की चेष्टा में लगे रहते हैं, वे इस लोक में और परलोक में निश्चित रूप से मुक्ति को प्राप्त करते हैं। (श्रीमद्भगवद्गीता 5:26)
27. मन को धीरे-धीरे आत्मा में स्थिर करना चाहिए, और बुद्धि के द्वारा इसे नियंत्रित करना चाहिए। इसे किसी और चीज़ में नहीं लगाना चाहिए। (श्रीमद्भगवद्गीता 6:25) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
28. जब भी और जहाँ भी मन चंचल हो और भटकने लगे, तब इसे संयमित कर आत्मा के वश में लाना चाहिए। (श्रीमद्भगवद्गीता 6:26) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
29. जिसकी इंद्रियाँ, मन और बुद्धि सदा नियंत्रण में हैं, जिसका परम लक्ष्य मुक्ति है, जो इच्छा, भय और क्रोध से मुक्त है—वह सदा के लिए मुक्त रहता है। (श्रीमद्भगवद्गीता 5:28)
30. जो योगी आत्मा के साथ एक हो जाता है, वह आत्मा को सभी प्राणियों में और सभी प्राणियों को आत्मा में देखता है। ऐसा व्यक्ति सब जगह एकता को देखता है। (श्रीमद्भगवद्गीता 6:29)
31. जो लोग केवल मेरी भक्ति करते हैं और किसी अन्य के बारे में नहीं सोचते, मैं स्वयं उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करता हूँ और उनकी रक्षा करता हूँ। (श्रीमद्भगवद्गीता 9:22)
32. उन सभी में, जो ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं और भक्ति में लगे रहते हैं, वे श्रेष्ठ हैं। वे मुझे अत्यंत प्रिय हैं, और मैं उन्हें अत्यंत प्रिय हूँ। (श्रीमद्भगवद्गीता 7:17) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
33. अनगिनत जन्मों के बाद, जो व्यक्ति सच्चे ज्ञान को प्राप्त करता है, वह मेरी सार्वभौमिक सत्ता को समझकर मेरे शरण में आता है। ऐसा आत्मा अत्यंत दुर्लभ है। (श्रीमद्भगवद्गीता 7:19)
34. श्रीभगवान ने कहा: जो व्यक्ति सभी इच्छाओं को त्याग देता है, जिसका मन आत्मा में स्थिर रहता है, और जो आत्मा के शुद्ध स्वरूप में स्थित होता है, उसे स्थितप्रज्ञ कहा जाता है। (श्रीमद्भगवद्गीता 2:55)
35. जो व्यक्ति सभी सांसारिक आसक्तियों से मुक्त है, जो स्वयं को किसी भी भौतिक वस्तु का स्वामी नहीं मानता और जो अभिमान से रहित है, वह शांति प्राप्त करता है। (श्रीमद्भगवद्गीता 2:71)
36. जो न किसी को कष्ट देता है, न ही स्वयं किसी से विचलित होता है, जो प्रसन्नता, ईर्ष्या, भय और चिंता से मुक्त है—वह मुझे प्रिय है। (श्रीमद्भगवद्गीता 12:15) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
37. जो मान-सम्मान और अपमान में समान रहता है, जो मित्र और शत्रु को समान मानता है, और जिसने स्वयं को अहंकार से मुक्त कर लिया है—वह तीनों गुणों से ऊपर उठ चुका होता है। (श्रीमद्भगवद्गीता 14:25)
38. जो आत्मा में आनंदित रहता है, जो आत्मा में प्रकाशित रहता है, और जो आत्मा में पूर्ण रूप से संतुष्ट रहता है, उसके लिए कोई कर्तव्य शेष नहीं रह जाता। (श्रीमद्भगवद्गीता 3:17)
39. ऐसे व्यक्ति को न तो किसी कार्य में कोई रुचि होती है, न ही किसी कर्म में कोई आसक्ति होती है, और न ही उसे किसी अन्य प्राणी पर निर्भर रहने की आवश्यकता होती है। (श्रीमद्भगवद्गीता 3:18)
40. जो व्यक्ति आत्मसंतुष्ट होता है, जो अपने आप ही प्राप्त होने वाले फल में संतुष्ट रहता है, जो द्वंद्वों से परे है और ईर्ष्या से मुक्त है, वह कर्म करते हुए भी कभी बंधन में नहीं पड़ता। (श्रीमद्भगवद्गीता 4:22)
41. परम भगवान सभी जीवों के हृदय में स्थित हैं, हे अर्जुन! वे प्रत्येक व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार घुमा रहे हैं, जैसे कोई मशीन चल रही हो। (श्रीमद्भगवद्गीता 18:61) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
42. हे अर्जुन! भगवान की शरण लो और स्वयं को पूर्ण रूप से उन्हें समर्पित करो। उसकी कृपा से, तुम परम शांति और मेरे शाश्वत धाम को प्राप्त करोगे। (श्रीमद्भगवद्गीता 18:62) Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
💠 श्रीकृष्णं वंदे जगद्गुरुम् 💠
(मैं भगवान श्रीकृष्ण को नमन करता हूँ, जो संपूर्ण जगत के गुरु हैं।)