Achaman Upanishad
आचमन उपनिषद
Achaman Upanishad
आचमन उपनिषद
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
॥ हरिः ॐ ॥
क्या कभी आपने सोचा है —
कि एक साधारण-सी जल ग्रहण की क्रिया, आचमन, वास्तव में ब्रह्मांडीय ऊर्जा से आत्मा को जोड़ने वाला एक रहस्यमयी द्वार हो सकती है?
यह उपनिषद न केवल हमें आचमन विधि सिखाता है,
बल्कि यह प्रकट करता है कि कैसे यह साधारण-सा कर्म,
वेदों की तृप्ति, देवताओं की प्रतिष्ठा और आत्मा की शुद्धि का माध्यम बनता है।
ॐ आचमनविधिं व्याख्यास्यामः Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
अब हम आचमन विधि का रहस्य प्रकट करेंगे — वह पवित्र प्रक्रिया, जो आत्मशुद्धि और देवताओं की तृप्ति का द्वार है।
ऋषियों ने कहा है — जब कोई आचमन करना चाहे, तो पहले वह अपने दोनों पाँव और हाथों को अच्छे से धो ले। फिर शांत भाव से आसन पर बैठे। मुख या तो पूर्व दिशा की ओर हो — जहाँ ज्ञान का उदय होता है — या उत्तर दिशा की ओर — जो मुक्ति का मार्ग है। सिर पर शिखा बंधी हो, और यज्ञोपवीत विधिवत् धारण किया गया हो — यही ब्राह्मण का आचरण है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
अब हम जानेंगे कि ब्राह्मण के दाहिने हाथ में ही क्यों किया जाता है आचमन — क्योंकि उसी में पञ्च तीर्थ विराजते हैं। अंगुलियों का अग्रभाग देवतीर्थ है, जहाँ देवता प्रतिष्ठित माने जाते हैं। कनिष्ठिका के मूल में आर्ष तीर्थ है, जो ऋषियों का स्थान है। अंगूठा और तर्जनी के बीच का भाग पैतृक तीर्थ कहलाता है, जो पितरों की स्मृति में है। अंगूठे का मूल भाग ब्रह्मतीर्थ है, जो स्वयं ब्रह्मा का प्रतीक है। हथेली का मध्य भाग अग्नितीर्थ है, जो यज्ञाग्नि और आत्मा की अग्नि का प्रतीक है।
अब जल को देखकर सावधानी रखनी चाहिए — न खड़े होकर जल ग्रहण करें, न हँसते हुए, न ऐसे जल से जिसमें बुलबुले हों, और न ही ऐसे जल से जिसमें बाल, धूल या कोई अपवित्रता हो। जल को इस प्रकार हाथ में लें कि वह गाय के कान के आकार, गोकर्ण की आकृति में हो। वह जल ऐसा हो जो अग्नि में चढ़ाया जा सके — माषमग्नजलं।
अब तीन बार आचमन करें। पहली बार, जल को ग्रहण करते हुए भीतर भावना करें — ऋग्वेद मुझे तृप्त करे। ऋग्वेद — जो जीवन का आदिस्वर है, जो चेतना का प्रथम प्रकाश है। दूसरी बार — यजुर्वेद मुझे तृप्त करे। यजुर्वेद — जो कर्म का मंत्र है, यज्ञ की अग्नि है। तीसरी बार — सामवेद मुझे तृप्त करे। सामवेद — जो स्वर का माधुर्य है, आत्मा की गूंज है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
अब, जब आचमन के पश्चात अधरों से जल बहता है, तब उसे पोंछते हुए अनुभूति करें — अथर्ववेद भी मुझे तृप्त करता है। क्योंकि वह जीवन के रहस्यों और उपचारों का वेद है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
अब वह अग्निसंस्कारित जल — सिर्फ पीने का नहीं, बल्कि अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को शुद्ध करने का माध्यम बनता है। उस जल को लेकर अपने मुख पर, पाँवों पर, आँखों पर, नाभि पर और सिर पर छिड़कें — और हर अंग के साथ एक देवता का आह्वान करें।
जब जल पाँवों पर गिरे, तब समझें — यह पृथ्वी को अर्पित है, जो स्थिरता और आधार है। जब यह आँखों पर छुए, तब जानें — यह चन्द्रमा और सूर्य को समर्पण है, जो ज्ञान और दृष्टि के प्रतीक हैं। जब यह नाभि पर पड़े, तब यह विष्णु को अर्पण होता है — जो पालनकर्ता और सम्पूर्ण सृष्टि के केन्द्र हैं। जब यह सिर पर डाला जाए, तब यह रुद्र की ज्वालामयी चेतना को जाग्रत करता है और कुबेर की दिशाओं की रक्षा प्राप्त होती है। और अंत में, यह जल सम्पूर्ण देवताओं को अर्पित होता है — जो शरीर के प्रत्येक भाग में निवास करते हैं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यह कोई साधारण क्रिया नहीं है। यह एक आंतरिक यज्ञ है। यह आत्मा को देवताओं के साथ जोड़ने की प्रक्रिया है।
जो इस रहस्य को समझता है, वह देवताओं का प्रिय बनता है। उसकी आत्मा शुद्ध और प्रकाशवान हो जाती है। वह उपनिषद् के ज्ञान का पात्र बन जाता है।
जो इस ज्ञान को जानता है — वह केवल जल नहीं पीता, Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
वह ब्रह्मांड को अपने भीतर प्रतिष्ठित करता है।
आचमनोपनिषद् हमें एक गहरा संदेश देता है —
कि जीवन का हर साधारण-सा कर्म भी,
यदि श्रद्धा और ज्ञान के साथ किया जाए,
तो वह दिव्यता का द्वार बन सकता है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
यह केवल शुद्धि नहीं — यह वेदों की संतुष्टि है।
यह केवल जल नहीं — यह अग्नि, पृथ्वी, आकाश, सूर्य और आत्मा का समागम है।
यही उपनिषद् का अमृत वचन है। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. Chandan
॥ इत्याचमनोपनिषत् समाप्ता ॥
हरिः ॐ तत्सत्
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः