Uddhava Gita Mastering the Art of Listening to the Soul, Sanatan Dharma reveals the Final Teachings of Lord Krishna to His beloved devotee Uddhava, imparting the essence of Detachment, Devotion (Bhakti), and Spiritual Wisdom. This sacred dialogue from the Bhagavata Purana emphasizes mastering Inner Listening, Self-Realization, and Surrender to the Divine. Uddhava Gita provides timeless guidance to navigate the path of Sanatan Dharma, leading seekers toward Moksha (Liberation) and eternal Inner Peace. 🕉️✨
🔱 उद्धव गीता का गहरा संदेश 🔱
"क्या भगवान हमारी मदद तभी करेंगे जब हम उन्हें बुलाएँगे?"
श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले—
"मैं साक्षी हूँ, सदा तुम्हारे निकट। जब तुम यह सच महसूस करोगे, तब कोई पाप कर ही नहीं सकोगे!"
सीख?
✨ ईश्वर बाहर नहीं, भीतर हैं!
✨ प्रार्थना बुलाने का नहीं, जागने का माध्यम है!
✨ जब अहंकार मिटेगा, तभी दिव्यता प्रकट होगी!
"तत्त्वमसि"— तू वही है! 🚩💫
उद्धव बचपन से ही सारथी के रूप में श्रीकृष्ण की सेवा में रहे, किंतु उन्होंने श्रीकृष्ण से कभी कोई इच्छा व्यक्त नहीं की और न ही कोई वरदान माँगा। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब श्रीकृष्ण अपने अवतार काल को पूर्ण कर गोलोक जाने को तत्पर हुए, तब उन्होंने उद्धव को अपने पास बुलाया और कहा—
"प्रिय उद्धव, मेरे इस अवतार काल में अनेक लोगों ने मुझसे वरदान प्राप्त किए, किंतु तुमने कभी कुछ नहीं माँगा! अब कुछ माँगो, मैं तुम्हें देना चाहता हूँ।
तुम्हारा भला करके मुझे भी संतोष होगा।"
उद्धव ने इसके बाद भी स्वयं के लिए कुछ नहीं माँगा। वे तो केवल उन शंकाओं का समाधान चाहते थे, जो उनके मन में श्रीकृष्ण की शिक्षाओं और उनके कृतित्व को देखकर उठ रही थीं।
उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा—
"भगवन्, महाभारत के घटनाक्रम में अनेक बातें मैं नहीं समझ पाया!
आपके 'उपदेश' अलग रहे, जबकि 'व्यक्तिगत जीवन' कुछ अलग तरह का दिखता रहा!
क्या आप मुझे इसका कारण समझाकर मेरी ज्ञान-पिपासा को शांत करेंगे?"
श्रीकृष्ण बोले—
"उद्धव, मैंने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन से जो कुछ कहा, वह 'भगवद्गीता' थी।
आज जो कुछ तुम जानना चाहते हो और जिसका मैं तुम्हें उत्तर दूँगा, वह
'उद्धव-गीता' के रूप में जानी जाएगी।
इसी कारण मैंने तुम्हें यह अवसर दिया है।
तुम बेझिझक पूछो।" Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
उद्धव ने पूछना शुरू किया—
"हे कृष्ण, सबसे पहले मुझे यह बताओ कि सच्चा मित्र कौन होता है?"
कृष्ण ने कहा—
"सच्चा मित्र वह है, जो जरूरत पड़ने पर बिना माँगे मित्र की मदद करे।"
उद्धव ने कहा—
कृष्ण, आप पांडवों के आत्मीय प्रिय मित्र थे। उन्होंने सदा आप पर पूरा भरोसा किया और आपको अपनी आज़ादी और सुरक्षा का आधार माना। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
कृष्ण, आप महान ज्ञानी हैं। आप भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हैं।
किन्तु, आपने सच्चे मित्र की जो परिभाषा दी है, क्या आपको नहीं लगता कि आपने उस परिभाषा के अनुसार कार्य नहीं किया?
आपने धर्मराज युधिष्ठिर को द्यूत (जुआ) खेलने से रोका क्यों नहीं?
चलो, ठीक है कि आपने उन्हें नहीं रोका, लेकिन आपने भाग्य को भी उनके पक्ष में नहीं मोड़ा!
आप चाहते तो युधिष्ठिर को जिता सकते थे!
आप कम से कम तब तो उन्हें रोक सकते थे, जब उन्होंने धन, राज्य, और यहाँ तक कि स्वयं को भी हारने के बाद भी खेल जारी रखा! Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब उन्होंने अपने भाइयों को दाँव पर लगाना शुरू किया, तब तो आप सभा कक्ष में पहुँच सकते थे! लेकिन आपने वह भी नहीं किया।
उसके बाद, जब दुर्योधन ने पांडवों को सदैव अच्छी किस्मत वाला बताते हुए द्रौपदी को दाँव पर लगाने के लिए उकसाया और यह प्रलोभन दिया कि जीतने पर सब कुछ वापस कर दिया जाएगा, कम से कम तब तो आप हस्तक्षेप कर सकते थे!
अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा आप पाँसे धर्मराज के अनुकूल कर सकते थे, लेकिन आपने वह भी नहीं किया!
इसके स्थान पर आपने तब हस्तक्षेप किया, जब द्रौपदी लगभग अपना शील खो चुकी थी। तब आपने उसे वस्त्र देकर उसके सम्मान की रक्षा करने का दावा किया! Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
लेकिन आप यह दावा कैसे कर सकते हैं?
उसे एक पुरुष घसीटकर सभा में लाता है और इतने सारे लोगों के सामने निर्वस्त्र करने के लिए छोड़ देता है!
क्या किसी स्त्री का सम्मान तभी बचता है, जब वह इस स्थिति तक पहुँच जाए?
आपने वास्तव में क्या बचाया?
यदि आपने संकट के समय अपने अपनों की मदद नहीं की, तो आपको ‘आपाद-बांधव’ (संकट में सहायक) कैसे कहा जा सकता है?
बताइए, यदि संकट के समय सहायता नहीं मिली, तो उसका क्या लाभ?
क्या यही धर्म है? Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
इन प्रश्नों को पूछते-पूछते उद्धव का गला रुंध गया और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।
ये अकेले उद्धव के प्रश्न नहीं थे। महाभारत पढ़ते समय हर व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में ये सवाल उठते हैं!
उद्धव ने हम सभी की ओर से ही श्रीकृष्ण से ये कठिन प्रश्न किए।
भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए बोले—
"प्रिय उद्धव, यह सृष्टि का नियम है कि प्रवेचक (चतुर और विवेकी) ही जीतता है।
उस समय दुर्योधन के पास प्रवेक (चतुराई) थी, लेकिन धर्मराज के पास नहीं।
यही कारण रहा कि धर्मराज पराजित हुए।" Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
भगवान श्रीकृष्ण उद्धव की उलझन देखकर आगे बोले—
दुर्योधन के पास जुआ खेलने के लिए पैसा और धन तो बहुत था, लेकिन उसे पासों का खेल खेलना नहीं आता था।
इसलिए उसने अपने मामा शकुनि का द्यूत-क्रीड़ा के लिए उपयोग किया। यही चतुराई है।
धर्मराज भी इसी प्रकार सोच सकते थे। वे भी अपने चचेरे भाई से यह प्रस्ताव रख सकते थे कि उनकी ओर से मैं खेलूँगा।
अब ज़रा विचार करो—
यदि शकुनि और मैं खेलते, तो कौन जीतता?
पासों के अंक उसके अनुसार आते या मेरे अनुसार?
चलो, इस बात को जाने दो कि उन्होंने मुझे खेल में शामिल नहीं किया।
इस गलती के लिए उन्हें क्षमा किया जा सकता है।
लेकिन उन्होंने एक और बड़ी गलती की— Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
उन्होंने अपनी प्रवेेक-शून्यता से मुझसे यह प्रार्थना कर दी कि मैं तब तक सभा-कक्ष में न आऊँ, जब तक कि मुझे बुलाया न जाए!
क्योंकि वे अपने दुर्भाग्य से यह खेल मुझसे छुपाकर खेलना चाहते थे।
वे नहीं चाहते थे कि मुझे मालूम पड़े कि वे जुआ खेल रहे हैं!
इस प्रकार, उन्होंने मुझे अपनी ही प्रार्थना से बाँध दिया!
मुझे सभा-कक्ष में आने की अनुमति नहीं थी!
इसके बाद भी मैं कक्ष के बाहर इंतजार कर रहा था कि कोई मुझे बुलाए।
भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव—सब मुझे भूल गए!
बस अपने भाग्य और दुर्योधन को कोसते रहे!
जब दुर्योधन के आदेश पर दुःशासन ने द्रौपदी को बाल पकड़कर घसीटते हुए सभा-कक्ष में लाया, तब भी वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार संघर्ष करती रही।
लेकिन उसने तब भी मुझे नहीं पुकारा! Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
उसकी बुद्धि तब जागृत हुई, जब दुःशासन ने उसे निर्वस्त्र करना प्रारंभ किया!
जब उसने स्वयं पर निर्भरता छोड़कर
'हरि, हरि! अभयं कृष्ण! अभयं!'
की गुहार लगाई, तब मुझे उसके शील की रक्षा का अवसर मिला।
जैसे ही उसने मुझे पुकारा, मैं तुरंत पहुँचा।
अब इस स्थिति में मेरी क्या गलती थी?
उद्धव बोले— Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
"कान्हा, आपका स्पष्टीकरण प्रभावशाली अवश्य है, किंतु मुझे पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई!
क्या मैं एक और प्रश्न पूछ सकता हूँ?"
श्रीकृष्ण की अनुमति से उद्धव ने पूछा—
"तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप तभी आओगे, जब आपको बुलाया जाएगा?
क्या संकट में पड़े अपने भक्त की सहायता करने के लिए आप स्वतः नहीं आएंगे?"
श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले—
"उद्धव, इस सृष्टि में प्रत्येक का जीवन उसके स्वयं के कर्मों के आधार पर संचालित होता है।
न तो मैं इसे चलाता हूँ, और न ही इसमें कोई हस्तक्षेप करता हूँ।
मैं केवल एक 'साक्षी' हूँ।
मैं सदा तुम्हारे निकट रहकर जो हो रहा है, उसे देखता हूँ।
यही ईश्वर का धर्म है।" Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
उद्धव ने व्यंग्य भरे शब्दों में कहा—
"वाह-वाह, बहुत अच्छा कृष्ण!
तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप हमारे निकट खड़े रहकर हमारे सभी दुष्कर्मों का निरीक्षण करते रहेंगे?
हम पाप पर पाप करते रहेंगे, और आप मात्र साक्षी बनकर देखते रहेंगे?
क्या आप चाहते हैं कि हम गलतियाँ करते रहें?
पाप की गठरी बाँधते रहें और फिर उसका दंड भोगते रहें?"
उद्धव के उलाहना भरे शब्द सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले—
*"उद्धव, तुम शब्दों के गहरे अर्थ को समझो।
जब तुम इस सत्य को पूर्ण रूप से अनुभव कर लोगे कि मैं हर क्षण तुम्हारे निकट साक्षी रूप में विद्यमान हूँ,
तो क्या तुम कोई भी गलत या बुरा कार्य कर सकोगे?
निश्चित रूप से नहीं। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
जब तुम यह सत्य भूल जाते हो और यह मानने लगते हो कि मुझसे छिपकर कुछ भी किया जा सकता है,
तभी तुम स्वयं को मुसीबत में डालते हो!
धर्मराज युधिष्ठिर की भूल यही थी कि उसने यह मान लिया कि वह मेरी जानकारी के बिना जुआ खेल सकता है!
यदि उसने यह समझ लिया होता कि मैं प्रत्येक के साथ हर समय साक्षी रूप में उपस्थित हूँ,
तो क्या द्यूत-क्रीड़ा की स्थिति कुछ और नहीं होती?"*
भक्ति से अभिभूत उद्धव तृप्त और मुग्ध हो गए और बोले—
*"कितना गहरा दर्शन है! कितना महान सत्य!
'प्रार्थना' और 'पूजा-पाठ' के माध्यम से ईश्वर को अपनी सहायता के लिए बुलाना तो महज़ हमारी 'पर-भावना' है।
मगर जैसे ही हम यह विश्वास करना शुरू करते हैं कि 'ईश्वर के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता',
तब हमें साक्षी के रूप में उनकी उपस्थिति अनुभव होने लगती है।
गड़बड़ तब होती है, जब हम इसे भूलकर सांसारिकता में डूब जाते हैं।
पूरी श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसी जीवन-दर्शन का ज्ञान दिया है।
'सारथी' का अर्थ है— मार्गदर्शक। Astro Motive: Philosophy, Spirituality & Astrology by Acharya Dr. C. K. Singh
अर्जुन के लिए सारथी बने श्रीकृष्ण वस्तुतः उसके मार्गदर्शक थे।
वह अपनी सामर्थ्य से युद्ध नहीं कर पा रहा था,
लेकिन जैसे ही उसने परम साक्षी के रूप में भगवान कृष्ण का अनुभव किया,
वह ईश्वर की चेतना में विलीन हो गया!
यह अनुभूति थी— शुद्ध, पवित्र, प्रेममय, आनंदमय, परम चेतना की!
'तत्त्वमसि'
अर्थात.... 'वह तुम ही हो!'